खेती के लिए जल का संग्रहण एवं प्रबंधन कैसे करें
खेती के लिए जल अतिआवश्यक है इससे न सिर्फ खेती की लागत कम होती है साथ ही उत्पादन में भी वृधि होती है | भारत में विश्व के मात्र 4 प्रतिशत जल संसाधन की उपलब्धता है जबकि वैश्विक आबादी का 16 प्रतिशत हिस्सा यहीं बसता है। ऐसे में जल संरक्षण और इसके दक्ष उपयोग के महत्त्व को भलीभाँति समझा जा सकता है। जल संरक्षण मोटे तौर पर तीन तरीकों से सम्भव है- वर्षाजल संरक्षण, नहरी जल प्रबन्धन और भूजल संरक्षण।
वर्षाजल संरक्षण
इसमें खेती योग्य क्षेत्र में संचित वर्षाजल के अन्तःसरण (इंफिल्ट्रेशन) में सुधार के द्वारा मृदा में जल संरक्षण को बढ़ाया जाता है। इस प्रक्रिया में 100 सेमी चौड़ी क्यारियाँ, 50 सेमी गहरे कुंड/कंटूर के साथ बनाई जाती हैं। अमूमन 5 प्रतिशत की मृदा ढलान एवं वर्षा जहाँ 350-750 मिमी होती है, उस जगह को इसके लिये चुना जाता है। कुंड के दोनों तरफ फसलों को लगाया जाता है। इसी तरह से कंटूर ट्रेंचिंग पद्धति के माध्यम से खाइयों को कृत्रिम रूप से फसल क्षेत्र में कंटूर पंक्तियों के साथ तैयार किया जाता है।
यदि वर्षाजल पहाड़ी के नीचे की ओर बह रहा है तो इन खाइयों द्वारा जल को संग्रहित किया जा सकता है। बाद में यह जल मृदा की ऊपरी सतही परतों में फसल विकास एवं उपज वृद्धि के लिये अन्तःसरित हो जाता है। इसी तरह से सीढ़ीदार खेत एवं कंटूर मेड़बन्दी पद्धति के अन्तर्गत पहाड़ी ढलान को कई छोटे-छोटे ढलानों में बाँटते हैं और जल-प्रवाह को रोककर मृदा में जल अवशोषण को बढ़ा दिया जाता है।
माइक्रो कैचमेंट या सूक्ष्म जलग्रहण तकनीक के जरिए बारानी क्षेत्रों से वर्षाजल को संग्रहित किया जाता है, ताकि उस क्षेत्र की मृदा में सुधार हो सके। इसके तहत मुख्यतः पेड़ों या वृक्षों को उगाया जाता है। एक्स सीटू जल संरक्षण तकनीकों में वर्षाजल अपवाह को फसल क्षेत्र से बाहर संरक्षित किया जाता है। इसके लिये खेत तालाब, चेक डैम आदि का निर्माण किया जाता है।
नहरी जल संरक्षण
नहरी सिंचाई का कुल सिंचाई में लगभग 29 प्रतिशत योगदान है। कुछ नहरें वर्ष भर सिंचाई जल उपलब्ध करवाती हैं जिससे जब भी फसलों को सिंचाई जल की जरूरत हो, तुरन्त उपलब्ध करवाया जा सकता है। इस तरह से सूखे की स्थिति से फसलों का बचाव किया जा सकता है। कहीं-कहीं पर नहरों के जल को संरक्षित रखने के लिये सहायक जल संचयन संरचनाओं का निर्माण भी किया जाता है।
भूजल प्रबन्धन
भूजल हमारे देश में सिंचाई, घरेलू एवं औद्योगिक क्षेत्रों की जल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये बहुत ही महत्त्वपूर्ण संसाधन है। भूजल की 91 प्रतिशत खपत कृषि कार्यों में तथा शेष 9 प्रतिशत घरेलू और औद्योगिक उपयोग में होती है। भूजल की प्राकृतिक आपूर्ति बढ़ने के लिये भूभरण अत्यन्त आवश्यक है। यह प्राकृतिक अथवा कृत्रिम तौर पर भी हो सकता है। प्राकृतिक पुनःजल आपूर्ति एक अत्यन्त ही धीमी प्रक्रिया है, इसलिये कृत्रिम पुनःभरण को भी प्रभावी ढंग से इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके अन्तर्गत जल विस्तार, गड्ढों एवं कुओं से पुनःभरण एवं सतही जल निकायों से पम्पिंग आदि का सहारा लिया जा सकता है।
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