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रविवार, नवम्बर 10, 2024
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किसान अभी जारी वर्षा से सोयाबीन की फसल को कैसे बचाएँ एवं कब करें कटाई

अगस्त महीने में सूखे का सामना करने के बाद सितम्बर महीने में लगातार हो रही बारिश का सामना सोयाबीन की फसल को करना पड़ रहा है। बीते कुछ दिनों में सोयाबीन उत्पादक प्रमुख राज्यों जैसे मध्य प्रदेश, राजस्थान एवं महाराष्ट्र राज्य में लगातार बारिश का दौर जारी है। लगातार जारी इस बारिश से खेतों में खड़ी सोयाबीन की फसल को नुकसान होने की संभावना है जिसको देखते हुए इंदौर स्थित सोयाबीन अनुसंधान संस्थान ने इससे बचाने हेतु सोयाबीन किसानों के लिए सलाह जारी की है।

सोयाबीन अनुसंधान संस्थान ने अपनी सलाह में बताया है कि लगातार बारिश होने वाले क्षेत्रों में जहां खेतों में पानी भरा हुआ है उन किसानों को जल्द से जल्द पानी की निकासी के लिए उचित व्यवस्था करना चाहिए। इसके साथ ही संस्थान ने सोयाबीन की फसल को नुकसान से बचाने के लिए निम्न सलाह दी है:-

किसान उचित समय पर करें फसल की कटाई

कई किसानों ने अपने खेतों में सोयाबीन की शीघ्र पकने वाली किस्में लगा रखी है। जिसमें सोयाबीन की फलियों में दाने भरने या परिपक्वता की अवस्था में फसल पर होने वाली लगातार बारिश से गुणवत्ता में कमी आ सकती है या फलियों में दाने अंकुरित होने की भी संभावना बनी रहती है। ऐसे में किसानों को उचित समय पर फसल की कटाई कर लेनी चाहिए। जिससे फलियों के चटकने से होने वाले नुकसान या फलियों के अंकुरित होने से बीज की गुणवत्ता में आने वाली कमी से बचा जा सके।

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किसान कब करें सोयाबीन की कटाई?

सोयाबीन की शीघ्र पकने वाली किस्मों में 90 प्रतिशत फलियों का रंग पीला पड़ने पर फसल की कटाई की जा सकती है जिससे बीज के अंकुरण में विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है। वहीं किसानों को सोयाबीन फसल की कटाई से पहले मौसम का पूर्वानुमान देख लेना चाहिए की आने वाले 4-5 दिनों में वर्षा की संभावना तो नहीं है। यदि 4-5 दिनों तक वर्षा की संभावना है तो किसानों को सोयाबीन की फसल की कटाई नहीं करनी चाहिए क्योंकि कटाई के बाद होने वाली वर्षा से फसल पर फफूँद लग सकती है।

सोयाबीन की कटी हुई फसल को धूप में सुखाने के बाद ही गहाई करनी चाहिए। तुरंत गहाई करना संभव नहीं हो तो कटी हुई फ़सल को वर्षा से बचाने के लिए सुरक्षित स्थान पर इकट्ठा करके रखें। जो किसान अगले वर्ष बीज के रूप में सोयाबीन का उपयोग करते हैं तो किसानों को सोयाबीन फसल की गहाई 350-400 आर.पी.एम. पर करनी चाहिए जिससे बीज की गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता।

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