पाला एवं शीतलहर से बचाव हेतु उपाय
देश के उत्तरी राज्यों में दिसम्बर एवं जनवरी माह में शीत लहर चलती है जिसके चलते फसलों में पाला लगने की सम्भावना बहुत अधिक हो जाती है | शीत लहर एवं पाले के मौसम में सभी फसलों को नुकसान होता है | पाले के प्रभाव से पौधों की पत्तियां एवं फूल झुलस कर गिर जाते हैं एवं आधे पके हुए फल सिकुड़ जाते हैं | फलियों एवं बालियों में दाने नहीं बनते हैं एवं जो दाने बन चुके हैं वो दाने सिकुड़ जाते हैं |
ऐसे में जिन क्षेत्रों में शीत लहर चलने की सम्भावना अधिक होती है वैसे क्षेत्रों में किसानों को अपनी फसल की सुरक्षा के लिए कई उपाय करना चाहिए | फसलों को शीत लहर से बचाने के लिए किसानों को रासायनिक एवं अन्य उपाय कर फसलों को पाला लगने से बचा सकते हैं | किसान समाधान ऐसे ही कुछ उपायों की जानकारी आपके लिए लेकर आया है, जिससे आप अपनी फसलों का पाले से बचाव कर सकते हैं:-
शीत लहर एवं पाले से फसल की सुरक्षा के उपाए
पौधशालाओं के पौधों एवं सीमित क्षेत्र वाले उद्यानों/नगदी सब्जी वाली फसलों में भूमि के तापमान को कम न होने देने के लिये फसलों को टाट, पोलीथिन अथवा भूसे से ढक दें | वायुरोधी टाटियां, हवा आने वाली दिशा की तरफ यानि उत्तर–पश्चिम की तरफ बांधे\ नर्सरी, किचन गार्डन एवं कीमती फसल वाले खेतों में उत्तर पश्चिम की तरफ टाटियां बांधकर क्यारियों के किनारों पर लगायें तथा दिन में पुन: हटायें |
हल्की सिंचाई करें
जब पाला पड़ने की सम्भावना हो तब फसलों में हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए | नमीयुक्त जमीन में काफी देर तक गर्मी रहती है तथा भूमि का तापक्रम एकदम कम नहीं होता है | जिससे तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं गिरेगा और फसलों को पाले से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है |
घुलनशील गंधक का छिड़काव
जिन दिनों पाला पड़ने की सम्भावना हो उन दिनों फसलों पर घुलनशील गन्धक 0.2 प्रतिशत (2 ग्राम प्रति लीटर पानी) में घोल बनाकर छिडकाव करें | ध्यान रखें कि पौधों पर घोल की फुहार अच्छी तरह लगे | छिड़काव का असर दो सप्ताह तक रहता है | यदि इस अवधि के बाद भी शीत लहर व पाले की सम्भावना बनी रहे तो छिडकाव को 15–15 दिन के अन्तर से दोहरातें रहें या थायो यूरिया 500 पी.पी.एम. (आधा ग्राम) प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिडकाव करें |
सरसों, गेहूं, चना, आलू, मटर जैसी फसलों को पाले से बचाने में गंधक का छिडकाव करने से न केवल पाले से बचाव होता है, बल्कि पौधों में लौहा तत्व की जैविक एवं रासायनिक सक्रियता बढ़ जाती है जो पौधों में रोग रोधिता बढाने में एवं फसल को जल्दी पकाने में सहायक होती है |
मेड़ों पर लागएं वायु अवरोधक पेड़
दीर्घकालीन उपाय के रूप में फसलों को बचाने के लिए खेत की उत्तरी–पश्चिमी मेड़ों पर तथा बीच–बीच में उचित स्थानों पर वायु अवरोधक पेड़ जैसे शहतूत, शीशम, बाबुल, खेजड़ी, अरडू आदि लगा दिये जाये तो पाले और ठंडी हवा के झौंको से फसल का बचाव हो सकता है |