शीतलहर एवं पाले से फसल की सुरक्षा के उपाय
- खेत की सिंचाई की जाय। यदि पाला पड़ने की संभावना हो या मानसून विभाग से पाला पड़ने की चेतावनी दी गई हो तो फसलों की हल्की सिंचाई करना चाहिए जिससे खेत का तापमान शून्य डिग्री से नीचे नहीं गिरेगा और फसलों को पाले से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है। सिंचाई करने से खेत के तापमान में 5 से 2 डिग्री से0 तक वृद्धि हो जाती है।
- पौधों को ढकें- पाले से सर्वाधिक नुकसान नर्सरी में होता है। नर्सरी में पौधों को प्लास्टिक की चादर से ढक देना चाहिए ऐसा करने से प्लास्टिक के अन्दर का तापमान 2-3 डिग्री से0 तक बढ़ जाता है जिससे तापमान जमाव बिन्दु तक नहीं पहुॅच पाता और पौघा पाले से बच जाता है। प्लास्टिक की जगह पुआल का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। पौधों को ढकते समय इस बात का ध्यान रखें कि पौधे का दक्षिण-पूर्वी भाग खुला रहे ताकि उन्हे सुबह और दोपहर को धूप मिलती रहे।
- खेत के पास धुॅआ करना- फसल को पाले से बचाने के लिए खेत के किनारे धुआॅ करने से तापमान में वृद्धि होती है जिससे पाले से होने वाली हानि से बचा जा सकता है।
- रासायनिक उपचार- पाला पड़ने की संभावना होने पर फसलों पर गन्धक का तेजाब 1 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिए इसके लिए 8 लीटर गन्धक तेजाब को 1000 लीटर पानी में घोलकर 01 हे0 क्षेत्रफल में छिड़काव करना चाहिए। ध्यान रखा जाए कि पौधों पर घोल का छिड़काव अच्छी तरह किया जाय। इस छिड़काव का असर 02 सप्ताह तक रहता है, यदि इस अवधि के बाद भी शीतलहर एवं पाले की संभावना बनी रहे तो गन्धक के तेजाब को 15-15 दिन के अन्तर से छिड़कना चाहिए।
- सल्फर 80 प्रतिशत घुलनशील पाउडर की 03 कि0ग्रा0 मात्रा 01 एकड़ में छिड़काव करने के बाद सिंचाई की जाय अथवा सल्फर 80 प्रतिशत घुलनशील पाउडर को 40 ग्राम/15 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव किया जाय।
- पाले से बचाव के दीर्घकालीन उपाय- फसलों को पाले से बचाने के लिए खेत के उत्तर-पश्चिम मेड़ पर तथा बीच-बीच में उचित स्थान पर वायु रोधक पेड़ जैसे-शहतूत, शीशम, बबूल, खेजड़ी, आड़ू तथा जामुन आदि के लगाए जाएं तो सर्दियों में पाले व ठण्डी हवा के झोकों के साथ ही गर्मी में लू से भी बचाव हो सकता है।