भारत में बैंगन एक बहुत ही लोकप्रिय सब्ज़ी में से एक हैं, जिसके चलते वर्ष भर बाजार में इसकी माँग बनी रहती है। वहीं माँग पूरी करने के लिए किसानों द्वारा इसकी खेती भी सभी सीजन में की जाती है। बैंगन की खास बात यह है कि इसकी खेती आसानी से सभी जगह पर की जा सकती हैं, यहाँ तक कि इसे गमलों, कंटेनरों और ग्रो बैग में भी उगाया जा सकता है। रबी फसलों की कटाई के बाद किसान खेत में ग्रीष्मकालीन बैंगन की खेती कर सकते हैं।
ग्रीष्मकालीन बैंगन की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट मृदा उपयुक्त होती है। बैंगन की अच्छी फसल के लिए मिट्टी का पी.एच. मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए। वहीं गर्मियों में बैंगन के लिए नर्सरी में बीज की बुआई करनी चाहिए। बैंगन की ग्रीष्मकालीन फसल के लिए रोपण फरवरी-मार्च के बीच किया जाना चाहिए। वहीं बुआई के 21 से 25 दिन बाद पौधे रोपण के लिए तैयार हो जाते हैं।
ग्रीष्मकालीन बैंगन की उन्नत किस्में
देश में विभिन्न कृषि संस्थानों के द्वारा अलग-अलग जलवायु क्षेत्रों के लिए बैंगन की अलग-अलग किस्में विकसित की गई है। किसान इन किस्मों में से अपने क्षेत्र के लिए अनुकूल किसी भी उन्नत किस्मों का चयन कर सकते हैं। इसमें ग्रीष्मकालीन बैंगन की उन्नत किस्में जैसे पूसा हाइब्रिड-5, पूसा हाइब्रिड-9, विजय हाइब्रिड, पूसा पर्पिल लौंग, पूसा क्लस्टर, पूसा क्रांति, पंजाब जामुनी गोला, नरेंद्र बागन-1, आजाद क्रांति, पंत ऋतुराज, पंत सम्राट, टी-3 आदि शामिल हैं।
ग्रीष्मकालीन बैंगन में कितना खाद डालें
गर्मियों में बैंगन में खाद एवं उर्वरक की मात्रा प्रजाति, स्थानीय जलवायु व मिट्टी के प्रकार पर निर्भर करती है। अच्छी फसल के लिए 15-20 टन सड़ी गोबर की खाद खेत को तैयार करते समय डालनी चाहिए। वहीं पोषक तत्वों के रूप में रोपाई से पहले 60 किलोग्राम फास्फोरस, 60 किलोग्राम पोटाश व 150 किलोग्राम नाइट्रोजन की आधी मात्रा अंतिम जुताई के समय मिट्टी में मिला देनी चाहिए। बाक़ी आधी नाइट्रोजन की मात्रा को फूल आने के समय प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करनी चाहिए।
क्यारियों में लम्बे फल वाली प्रजातिओं के लिए 70-75 सेंटीमीटर और गोल फल वाली प्रजातिओं के लिए 90 से.मी.की दूरी पर पौधों की रोपाई करनी चाहिए। गर्मियों में बैंगन की खेती के लिए नर्सरी तैयार करने के लिए 250-300 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
खरपतवार नियंत्रण के लिए क्या करें?
बैंगन में खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडीमिथालिन या स्टाम्प नामक खरपतवारनाशी की 3 लीटर मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से पौध रोपाई से पहले प्रयोग करें। इस बात का ध्यान रखें कि छिड़काव से पहले जमीन में नमी होनी चाहिए। निराई व गुड़ाई द्वारा खेत में खरपतवार नियंत्रण करना संभव है। समय-समय पर फसल की निराई-गुड़ाई करना जरूरी है। पहली निराई-गुड़ाई रोपाई के 20-25 दिन बाद तथा दूसरी निराई-गुड़ाई 40-50 दिन बाद करनी चाहिए।
बैंगन में कीटों का नियंत्रण कैसे करें?
ग्रीष्मकालीन बैंगन की फसल में तनाछेदक कीट की सूंडी पौधों के प्ररोह को नुकसान करती है तथा बाद में मुख्य तने में घुस जाती है। छोटे ग्रसित पौधे मुरझाकर सूख जाते हैं। बड़े पौधे मरते नहीं, ये बौने रह जाते हैं तथा इनमें फल कम लगते हैं। वहीं प्ररोह व फल छेदक कीट की सूंडी पौधों के प्ररोह व फल को हानि पहुँचाती है। ग्रसित प्ररोह मुरझाकर सूख जाते हैं। फलों में इल्लियाँ टेढ़ी-मेढ़ी सुरंगें बनाती हैं। फल का ग्रसित भाग काला पड़ जाता है और वो खाने लायक़ नहीं रहता। ग्रसित पौधों में फल देरी से लगते हैं या लगते ही नहीं। तनाछेदक, प्ररोह व फल छेदक के नियंत्रण के लिए रैटून फसल न लें। इसमें फलछेदक का प्रकोप अधिक होता है।
किसानों को इन कीटों से ग्रसित प्ररोहों व फलों को निकालकर मिट्टी में दबा देना चाहिए। फल छेदक की निगरानी के लिए 5 फेरोमोन ट्रैप प्रति हेक्टेयर की दर से लगा देना चाहिए। इन कीटों का प्रकोप बढ़ जाने पर नीम बीज अर्क (5 प्रतिशत) या बी.टी. 1 ग्राम प्रति लीटर या स्पिनोसेड 45 एस.सी. 1 मि.ली. प्रति 4 लीटर या कार्बेरिल, 50 डव्ल्यू.पी. 2 ग्राम प्रति लीटर या डेल्टामेथ्रिन 1 मि.ली. प्रति लीटर का फूल आने से पहले इस्तेमाल करना चाहिए।