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ड्रैगन फ्रूट्स की खेती के लिए किसानों को दिया जा रहा है प्रशिक्षण

ड्रैगन फ्रूट्स की खेती के लिए प्रशिक्षण

किसानों की आय बढ़ाने के लिए सरकार की और से तमाम योजनाएँ चलाई जा रही है। एक तरफ परम्परागत खेती के लिए जहां किसानों को बेहतरीन बीज और उर्वरक उपलब्ध कराए जा रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ किसानों को आधुनिक खेती की तरफ आकर्षित करने के क़वायद भी की जा रही है। इसी क्रम में राज्य का पहला सेंटर ऑफ़ एक्सिलेंस फॉर फ्रूट्स केंद्र में समस्तीपुर ज़िले के सरायरंजन और समस्तीपुर प्रखंड के 60 किसानों को जैविक विधि से ड्रैगन फ्रूट्स, किवी, चीकू और स्ट्राबेरी उत्पादन करने के लिए चयन किया गया है।

चयनित इन सभी किसानों को कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा प्रशिक्षण दिया जा रहा है। कृषि वैज्ञानिक प्रेम कुमार और उद्यान पदाधिकारी आलोक कुमार और उद्यान पदाधिकारी आलोक कुमार किसानों को प्रशिक्षण देते हुए बताया कि स्ट्रॉबेरी और ड्रैगन फ़्रूट की खेती करने के लिए मोटिवेट किया जा रहा है। किसानों को आधुनिक खेती की तरफ मोड़ने और उनकी आय को कई गुना बढ़ाने की दिशा में अग्रसर करने के लिए किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है।

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कैसे की जाती है ड्रैगन फ़्रूट्स

ड्रैगन फ़्रूट व स्ट्रॉबेरी की फसल की खेती से न सिर्फ किसान की उन्नति होगी। अपितु देश का भी विकास होगा। प्रशिक्षण में किसानों को बताया गया कि ड्रैगन फ़्रूट की खेती के लिए वार्षिक वर्षा 50 से.मी. और तापमान 20 से 36 डिग्री सेल्सियस सर्वोत्तम मानी जाती है। पौधों के बढ़िया विकास और फल उत्पादन के लिए इन्हें अच्छी रोशनी व धूप वाले क्षेत्र में लगाया जाता है। इसकी खेती के लिए सूर्य की ज्यादा रोशनी उपयुक्त नहीं होता है। मई और जून में फूल लगते हैं तथा जुलाई से दिसंबर तक फल लगते हैं। फूल आने के एक महीने बाद फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इस अवधि के दौरान इसकी 6 बार तुड़ाई की जा सकती है। प्रत्येक फल का वजन लगभग 300 से 800 ग्राम तक होता है। एक पौधे पर 50 से 120 फल लगते हैं।

ड्रैगन फ़्रूट्स से होते हैं यह फायदे

ड्रैगन फ़्रूट अधिक मात्रा में विटामिन सी, फ्लेवोनोइड और फाइबर पाए जाने के कारण यह घावों को जल्दी भरने, रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने एवं ह्रदय संबंधित समस्याओं से बचाने के साथ-साथ भोजन को पचाने में भी सहायक होता है। यह आँखों की दृष्टि में सुधार करने के साथ ही त्वचा को चिकना और मॉयस्चराइज करता है। इसके नियमित सेवन से खांसी और अस्थमा से लड़ने में मदद मिलती है। इसमें विटामिन बी1, बी2 और बी3 पाए जाते हैं, जो ऊर्जा उत्पादन, कार्बोहाइड्रेट चयापचय, भूख बढ़नें ख़राब कोलेस्ट्रॉल, पेट के कैंसर और मधुमेह के स्तर को कम करने के अलावा कोशिकाओं को ठीक कर शरीर को मज़बूती प्रदान करते हैं।

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