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Wednesday, May 22, 2024
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इस समय धान की फसल में लग सकते हैं यह कीट एवं रोग, किसान इस तरह करें उनका नियंत्रण

धान की फसल में कीट एवं रोग का नियंत्रण

किसी भी फसल में बुआई से लेकर कटाई तक कई प्रकार के कीट एवं रोग लगते हैं। जिसके कारण फसलों को काफी नुकसान होता है, जिससे उत्पादन में कमी आती है और किसानों को काफी नुकसान होता है। किसान भाई इन कीट एवं रोगों की समय पर पहचान कर उनका नियंत्रण कर सकते हैं। इसी तरह अभी धान की फसल में भी कई तरह के कीट एवं रोग लगते हैं। किसान भाई किस तरह इन कीट एवं रोगों की पहचान कर उनका नियंत्रण करें इसकी जानकारी किसान समाधान लेकर आया है। 

वर्तमान समय में कई जगहों पर धान की फसल में कल्ले फूटने की अवस्था एवं अगेती प्रभेदों में बालियाँ निकल रही है। इस समय किसानों से तना छेदक एवं पर्णच्छद अंगामारी रोग की सूचना मिल रही है। किसान इन कीट एवं रोगों का बचाव निम्न प्रकार से कर सकते हैं:-

धान में तना छेदक कीट की पहचान

इस कीट की पहचान मादा पतंगे के पीले अग्रपंखो पर केंद्र में एक प्रकार का विशेष काला निशान होता है। मादा पत्तियों के शिखर पर समूह में अंडे देती है। अंडो में से लार्वा बाहर आता है और पर्णच्छद में छेद करती है और गोभ में जाकर पौधे को क्षति पहुँचती है जिससे बिना खुली पट्टी पीली भूरी सी होकर सूख जाती है, जिसे डेड हर्ट (मृत केंद्र) कहते हैं। बालियों के समय उभरते पुष्पगुच्छों को सफ़ेद और बिना भरे या खाली बनाते हैं जिसे व्हाइट हेड कहते हैं। 

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इस तरह करें धान में तना छेदक इल्ली का नियंत्रण

  • धान की फसल में तना छेदक कीट के नियंत्रण के लिए किसान भाई नाइट्रोजन युक्त रासायनिक उर्वरकों का संतुलित उपयोग करें।
  • जैविक नियंत्रण के लिए ट्राइकोग्रामा किलोनिस परजीवी कीट का उपयोग करें।
  • कीट के नियंत्रण के लिए किसान 20 फेरोमोन ट्रैप प्रति हेक्टेयर की दर से लगाएँ। 
  • रासायनिक कीटनाशक कारटेप हायड्रोक्लोराइड 50% SP 1 किलो प्रति हेक्टेयर अथवा कार्बोफूरोन 3% CG 25 किलो प्रति हेक्टेयर अथवा कलोरनाट्रालिप्रोल 18.5% 150 मि.ली. प्रति हेक्टेयर अथवा फ़्लुबेंडामाइड 39.35% SC 50 ग्राम प्रति हेक्टेयर अथवा फिप्रोनिल 80% WG 50-62.50 ग्राम प्रति हेक्टेयर का उपयोग कर सकते हैं।

धान में पर्णच्छद अंगमारी रोग की पहचान

इस रोग का जनक कवक है, जिसके लक्षण जल की सतह के समीप पर्णच्छद पर 1 से 3 सेमी. लम्बे हरे भूरे क्षतस्थल बनते हैं, जो बाद में पुआल के रंग के हो जाते हैं। यह धब्बा भूरी या बैंगनी भूरी पतली पट्टी से घिरा रहता है बाद में ये क्षतस्थल बढ़कर तने को चारों ओर से घेर लेता है। अनुकूल परिस्थितियों में संक्रमण तेज़ी से ऊपरी पौधे में फैलता है और इसके फलस्वरूप दाने पूर्ण विकसित नहीं होते हैं। अधिक प्रकोप में पौधे की सारी पत्तियाँ अंगमारी से ग्रस्त हो जाती हैं। अंततः पौधा रोग ग्रस्त होकर झुलस जाता है।

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इस तरह करें धान की फसल में पर्णच्छद अंगमारी रोग का नियंत्रण

  • धान की फ़सल को इस रोग से बचाने के लिए खेत से जल निकासी का प्रबंधन करें।
  • रोग प्रकट होने पर टॉप-ड्रेसिंग को कुछ समय हेतु स्थगित करें। 
  • रासायनिक फफूँदनाशी डाइफ़ेनोकोनाजोल 25% EC का 0.5 ml प्रति लीटर पानी का घोल या हेक्साकोनाजोल 5% SC का 0.2% घोल या प्रोपिकोनाजोल 25% EC का 500 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। 

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