भूमि आंवला (हाजार दाना) वैज्ञानिक तकनिकी
पादप रुपरेखा
- परिवार : यूफोरबिएसी
- अंग्रेजी नाम : कन्ट्री गोजरी
- भारतीय नाम : भूअम्लकी, बहुपत्री (संस्कृत)
- :जंगलीअमली, हजारदाना, जैरामाला (हिन्दी)
- प्रजातियाँ : फाइलेंथस एमेरस स्कम एवं थोंन (पी. निरुरी आक्ट., नान एल) पी.
यह एक विशिष्ट लक्षण वाली हर्ब है जिसे भारत में वर्षा के मौसम में खरपतवार के रूप में उगने वाला पाया गया है | इस पौधे को देश के कई हिस्सों में जैसे पंजाब, उत्तर प्रदेश , तमिलनाडु , महाराष्ट्र तथा सिक्किम में खरपतवार के रूप में आसानी से उगाया जाता है |
औषधीय उपयोग
- मुख्य एल्कालाइड इसमें लिनिन्स के रूप में है जैसे फाइलेनथिन तथा हाईपोफाइलेनथिन
- विश्व के कई हिस्सों में इसे जिगर की खराबी, विशेष रूप से हिपेटाइटिस बी तथा पीलिया के कारण, आंत संक्रमण, मधुमेह आदि के उपचार में जनसाधारण की दवाई के रूप में उपयोग किया जाता है |
- दवाई की पारंपरिक प्रणाली में अनेक संयोजन में यह एक महत्वपूर्ण घटक है तथा इसका उपयोग ब्रानकाइटिस, कुष्ठ रोग, दमा तथा हिचकी रोग में उपयोगी है |
- जड़ का मिश्रण एक अच्छा शक्तिवर्धक टानिक है |
- उत्पादन प्रौधोगिकी
मृदा
- इसे विभिन्न प्रकार की मृदा में अच्छी तरह उगने वाला पाया गया | इसमे देश के विभिन्न हिस्सों की चिकनी से दोमट मृदा तक शामिल है |
- इसके लिए मृदा पीएच 5.5 से 8 के बीच होना चाहिए |
- इसे अच्छी जल निकासी वाली चूनेदार मृदा में भी उगाया जा सकता है |
जलवायु
- यह एक परि – उष्णकटिबंध (सरकमट्रोपिकल) खरपतवार है और यह उष्णकटिबंध तथा उच्च वर्षा वाली स्थितीयों में निर्वाह कर सकता है |
- यह अस्थायी जलमग्नता को भी सहन कर सकता है |
किस्में
- उच्च हर्बेज पैदावार तथा सक्रिय तत्वों को प्राप्त करने के लिए सी आई एम ए पी, लखनऊ से नव्य कृत नामक एक स्लैकटशन को उत्कृष्ट पाया गया |
- किस्मों के विवरण तथा रोपण सामग्री की उपलब्धता की जानकारी के लिए कृपया निम्नलिखित पते पर सम्पर्क करें :-
लागत
क्र.सं. | सामग्री | प्रति एकड़ | प्रति हैक्टेयर |
1. | बीज (कि.ग्रा.) | 0.4 | 1.0 |
2. | फार्म यार्ड खाद (टन) | 4 | 10 |
3. | उर्वरक (कि.ग्रा.) N | 60 24 24 | 150 60 60 |
टिप्पणी :
प्रतिरोपण के समय नाईट्रोजन (N) की आधी खुराक तथा फास्फोरस (P) और पोटाश (K) की पूरी खुराक का इस्तेमाल किया जाए और शेष आधी नाईट्रोजन खुराक का उपयोग उस समय किया जाए जब पौधे की लम्बाई 40 – 45 से.मी. तक हो जाए |
कृषि तकनीक
- इस पौधे का संरचना एकत्रित बीजों द्वारा किया जाता है | इसमे पौधों को सूखने दिया जाता है और फलों को कागज पर फैलने दिया जाता है |
- बीजों को अच्छी तरह तैयार की गयी नर्सरी की क्यारियों में बोया जाता है |
- समानरुपी वितरण के लिए बीजों को सुखी रेत या मृदा में मिश्रित किया जाता है क्योंकि यह बहुत छोटे होते है |
- बेहतर अंकुरण तथा हर्ब की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के क्रम में बीजों की बुवाई अप्रैल के अंत से मई के अंत तक की जाती है |
- जब तक बिज में अंकुरण आना आरंभ होता है तब तक उचित नमी को कायम रखा जाए |
- 10 – 15 से.मी. लम्बी तथा 35 – 40 दिन पुरानी पौद का प्रतिरोपण 15 × 10 से.मी. के अंतराल पर किया जाए |
- प्रतिरोपण के तुरंत बाद हल्की सिंचाई से पौध का अच्छी तरह जमना सुनिशिचत हो जाता है |
सिंचाई
- जिन क्षेत्रों में नियमित बारिश होती है वंहा बुवाई के दौरान सिंचाई की जरुरत नहीं होती | यधपि उत्तरी क्षेत्र के मैदानी हिस्सों में बारिश में उतार – चढ़ाव होता रहता है, अत: यहाँ पर एक पखवाड़े के अंतराल पर सिंचाई प्रभावशाली होगी |
- चूँकि यह पौध शाकीय है और अपने प्राकृतिक्र रूप में कोमल है, अत: माह में दो बार नियमित रूप से हाथ से खरपतवार निकालने की सिफारिश की जाती है | शाकनाशी के उपयोग की सलाह नहीं डी जाती क्योंकि इसकी कच्ची दवाईयों को इसके छूटे हुए अपशिष्टों का फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा |
पौध सुरक्षा
प्रमुख कीट : पट्टी खाने वाली झिल्ली तथा तने का धुल (वीविल)
प्रमुख रोग : चूर्णी फफूंद
नियंत्रण
- कीट नाशीजीव का नियंत्रण करने के लिए 0.2 % नुवाक्रोन का पौधे पर छिडकाव किया जाए |
- चूर्णी फफूंद को सल्फर द्वारा प्रभावशाली ढंग से नियंत्रित किया जा सकता है जिसमें फफूंदनाशक जैसे सल्फेक्स 0.25 % की दर से शामिल होती है |
कटाई, प्रसंस्करण एवं उपज
- प्रतिरोपण के 3 माह बाद जब पौधे हरे और शाकीय हो जाते हैं उस समय फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है |
- चूंकि फसल बढ़ती है अत: उसकी लम्बाई बढ़ती है, किंतु पत्तों की संख्या कम हो जाती है , क्यों की नीचे के पत्ते गिरते रहते हट चूंकि मुख्य सक्रिय तत्व पत्तों में होता है, अत: कटाई का मुख्य लक्ष्ण उचित समय में अधिकतम पत्ती बायोमास का उत्पादन करना होता है |
- बंगलौर की स्थिति के तहत उच्च औषधि पैदावार के लिए सितम्बर के महीने को कटाई के लिए उचित समय पाया गया है |
- हर्ब को 3 – 4 दिन छत के नीचे सुखाने के साथ – साथ स्थाई रूप से टैंकों या डंडों पर भी सुखाया जाता है | सूखने के बाद सामग्री को बोरियों में भरकर सहित शुष्क स्थान में भंडारित करके रख दिया जाता है |
- हर्ब की पैदावार अंतराल के अनुसार अलग – अलग होती है | 15 ×10 से.मी. के अन्तराल को अपनाने से प्रति हेक्टेयर 2000 कि.ग्रा. की शुष्क हर्ब की औसत पैदावार हासिल की जा सकती है | हर्ब में मौजूद कुल फाइलेनथिन तत्व 0.4 % से 0.5 % के बीच होता है |
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