बाजरे की फसल में कीट एवं रोग नियंत्रण
देश में पौषक तत्वों से भरपूर मोटे अनाज की खेती पर जोर दिया जा रहा है, मोटे अनाज में बाजरे का स्थान महत्वपूर्ण है। बाजरे की खेती कम पानी वाले क्षेत्रों में भी आसानी से की जा सकती है। ऐसे में बाजरे की खेती की लागत कम करने एवं किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए ग्राहृय परीक्षण केन्द्र तबीजी फार्म के द्वारा सलाह जारी की गई है, जिससे किसान बाजरे की फसल में लागने वाले कीट रोगों से अपनी फसल को सुरक्षित रख सकते हैं।
ग्राहृय परीक्षण केन्द्र तबीजी फार्म के उप निदेशक कृषि (शस्य) श्री मनोज कुमार शर्मा ने बताया कि बाजरा राजस्थान की प्रमुख खाद्यान्न फसल है। साथ ही पशुओं के लिए हरे व सूखे चारे के लिए भी इसकी खेती की जाती है। इसकी बुवाई का उपयुक्त समय मध्य जून से जुलाई के तृतीय सप्ताह तक हैं।
बाजरे की फसल में लगते हैं यह कीट एवं रोग
तबीजी फार्म के उप निदेशक ने बताया कि बाजरे की फसल में सफेद लट, दीमक, तना मक्खी, तना छेदक, हरित बाली, अरगट व ब्लास्ट आदि कई अन्य हानिकारक कीटों तथा रोगों का प्रकोप होता हैं। बाजरे की फसल को कीटों व रोगों से बचाने के लिए विभागीय सिफारिशों के अनुसार बीजोपचार किया जाना चाहिए। बीजोपचार करते समय हाथों में दस्ताने, मुंह पर मास्क तथा पूरे वस्त्र पहनें।
किसान बुआई से पहले करें बीज उपचार
संस्थान के कृषि अनुसंधान अधिकारी (पौध व्याधि) डॉ. जितेन्द्र शर्मा ने बताया कि बाजरे की फसल को तुलासिता, हरित बाली व अरगट रोग काफी नुकसान पहुँचाते हैं। किसान बीजोपचार तथा रोग प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग कर इन रोगों से होने वाले नुकसान से बच सकते है।
तुलासिता, हरितबाली रोग की तुलासिता अवस्था में पौधे की पत्तियां पीली पड़ जाती हैं। उन पर पीली–सफेद धारियां बन जाती हैं। पत्ती की निचली सतह को देखने पर कवक वृद्धि दिखाई देती हैं। हरित बाली अवस्था में सिट्टे आंशिक अथवा पूर्णतया पत्तीनुमा संरचना में बदल जाते हैं। इनमें दाने नहीं बनते हैं। इस रोग के नियंत्रण के लिए रोग प्रतिरोधक किस्मों का बुवाई के लिए उपयोग करें। साथ ही बीज को बुवाई से पूर्व 6 ग्राम एप्रोन एसडी 35 प्रतिकिलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।
उन्होंने बताया कि अरगट, चैंपा, गून्दिया रोग की शुरुआती अवस्था में सिट्टों पर गुलाबी शहद जैसी बूंदे दिखाई देती हैं। कुछ दिनों पश्चात संक्रमित सिट्टों में काले रंग के स्कलेरोशिया बन जाते हैं। इस रोग के बचाव के लिए बीज को नमक के 20 प्रतिशत घोल (एक किलो नमक एवं पांच लीटर पानी) में लगभग पांच मिनट तक डुबो कर हिलाएं। तैरते हुए हल्के बीज और कचरे को जला देवें। शेष बचे हुए बीज को साफ पानी से धोकर छाया में सूखाएं। थाइरम 3 ग्राम प्रतिकिलो बीज के हिसाब से उपचारित कर बुवाई करें।
इस तरह करें बाजरे का बीज उपचार
संस्थान के सहायक कृषि अनुसंधान अधिकारी (कीट) डॉ. दिनेश स्वामी ने बताया कि बाजरे की फसल को सफेद लट, दीमक, तना मक्खी व तना छेदक कीट से बचाने के लिए बीजोपचार सर्वश्रेष्ठ उपाय है। इसके लिए बाजरे के बीजों को ईमिडाक्लोप्रिड 600 एफएस की 8.75 मिलीलीटर मात्रा अथवा क्लोथायोनिडिन 50 डब्ल्यूडीजी 7.5 ग्राम प्रतिकिलो बीज की दर से आवश्यकतानुसार पानी में घोल बनाकर बीजों पर समान रुप से छिड़काव कर उपचारित करें। उन्हें छाया में सुखाकर 2 घण्टे के अन्दर ही बुवाई करें।