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Tuesday, May 21, 2024
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वैज्ञानिकों ने विकसित की गेहूं की उच्च प्रोटीन एवं स्थिर उपज वाली किस्म मैक्स 4028

गेहूं की नई विकसित किस्म मैक्स (MACS) 4028

देश में सबसे महत्वपूर्ण फसलों में गेहूं की फसल सबसे आगे है | गेहूँ की खेती भारत में सभी राज्यों में की जाती है | गेहूं की खेती से देश के सर्वाधिक किसान जुड़े होने के कारण इसकी उत्पादकता एवं गुणवत्ता बढ़ाने के लिए विज्ञानिकों के द्वारा लगातार कार्य किये जा रहे हैं | भारतीय वैज्ञानिकों ने विभिन्न क्षेत्रों के अनुसार कई प्रकार की गेहूं की किस्में भी विकसित की है और यह कार्य जारी है | अभी हाल जी में भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत एक स्वायत्तशासी संस्थान, पुणे के अगहरकर रिसर्च इंस्टीट्यूट (एआरआई) के वैज्ञानिकों ने एक प्रकार के गेहूं की बायोफोर्टीफाइड किस्म एमएसीएस 4028 विकसित की है, जिसमें उच्च प्रोटीन है।

गेहूं की किस्म 4028 की विशेषताएं

एमएसीएस 4028, जिसे विकसित करने की जानकारी इंडियन जर्नल ऑफ जेनेटिक्स एंड प्लांट ब्रीडिंग में प्रकाशित की गई थी, एक अर्ध-बौनी (सेमी ड्वार्फ) किस्म है, जो 102 दिनों में तैयार होती है और जिसमें प्रति हेक्टेयर 19.3 क्विंटल की श्रेष्ठ और स्थिर उपज क्षमता है। यह डंठल, पत्‍तों पर लगने वाली फंगस, पत्‍तों पर लगने वाले कीड़ों, जड़ों में लगने वाले कीड़ों और ब्राउन गेहूं के घुन की प्रतिरोधी है।

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गेहूं की किस्‍म में सुधार पर एआरआई वैज्ञानिकों के समूह द्वारा विकसित गेहूं की किस्‍म में लगभग 14.7% उच्च प्रोटीन, बेहतर पोषण गुणवत्ता के साथ जस्ता (जिंक) 40.3 पीपीएम, और क्रमशः 40.3 पीपीएम और 46.1 पीपीएम लौह सामग्री, पिसाई की अच्छी गुणवत्ता और पूरी स्वीकार्यता है।

सीमित सिंचाई वाले क्षेत्रों के लिए उपयोगी है मैक्स (MACS) 4028

गेहूं की किस्म एमएसीएस 4028 को फसल मानकों पर केन्‍द्रीय उप-समिति द्वारा अधिसूचित किया गया है, महाराष्ट्र और कर्नाटक को शामिल करते हुए समय पर बुवाई के लिए कृषि फसलों की किस्‍में जारी करने (सीवीआरसी), प्रायद्वीपीय क्षेत्र की बारिश की स्थिति के लिए अधिसूचना जारी की गई है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने भी वर्ष 2019 के दौरान बायोफोर्टीफाइड श्रेणी के तहत इस किस्म को टैग किया है।

भारत में गेहूँ की फसल छह विविध कृषि मौसमों के अंतर्गत उगाई जाती है। भारत के प्रायद्वीपीय क्षेत्र (महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्यों) में, गेहूं की खेती प्रमुख रूप से वर्षा आधारित और सीमित सिंचाई परिस्थितियों में की जाती है। ऐसी परिस्थितियों में, फसल को नमी की मार झेलनी पड़ती है। इसलिए, सूखा-झेलने वाली किस्मों की उच्च मांग है। अखिल भारतीय समन्वित गेहूं और जौ सुधार कार्यक्रम के अंतर्गत, अगहरकर रिसर्च इंस्‍टीट्यूट, पुणे में वर्षा की स्थिति में अधिक पैदावार वाली, जल्‍द तैयार होने वाली और रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली किस्में विकसित करने के प्रयास किए जाते हैं। यह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा नियंत्रित भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्‍थान, करनाल के जरिये संचालित है। एमएसीएस 4028 किसानों के लिए इस तरह के प्रयासों का परिणाम है।

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6 COMMENTS

  1. I bowed 1169 wheay bees running season but using all fertilizers pressed kitaknashak but in 6 acers i got 5 tones wheat product it is vey low rate. Now if i bow macs 4028 may get more Thanx for guide.

    • इसके आलावा भी कई अधिक उत्पादन वाली किस्में हैं | आप उन किस्मों के बारे में भी अपने जिला कृषि विज्ञान केंद्र से जानकारी ले सकते हैं | जो आपके क्षेत्र के अनुकूल रहेगी |

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