देसी चने की नई किस्म पूसा चना 10216
देश में रबी सीजन में चना दलहन की मुख्य फसल है, कई राज्यों के किसान चने की खेती प्रमुखता से करते हैं क्योंकि गेहूं की तुलना में चने की खेती कम पानी में आसानी से की जा सकती है। चने की बुआई का समय हो गया है। ऐसे में किसान चने की नई-नई किस्मों के बीज लगाना चाहते हैं ताकि अधिक उत्पादन प्राप्त कर अच्छा मुनाफा कमा सके। पूसा संस्थान नई दिल्ली द्वारा देसी चने की एक ऐसी ही नई किस्म पूसा चना 10216 विकसित की गई है जो रोग रोधी होने के साथ ही कम पानी में भी अच्छा उत्पादन देती है।
चने की यह किस्म देश के मध्य भाग ख़ासकर गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, दक्षिण राजस्थान और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के लिए विकसित की गई है। किसान इस किस्म की खेती उन क्षेत्रों में आसानी से कर सकते हैं जहां वर्षा आधारित खेती की जाती है क्योंकि इस किस्म को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।
पूसा चना 10216 किस्म की विशेषताएँ
चने की यह किस्म लगभग 106 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। पूसा चना 10216 किस्म की मुख्य विशेषता यह है कि यह किस्म चने में लगने वाले मुख्य रोगों जैसे उकठा रोग, शुष्क जड़ विगलन और स्टंट रोग के लिये मध्यम प्रतिरोधी होती है। साथ ही यह किस्म चने में लगने वाले कीट फली छेदक के लिए मध्यम प्रतिरोधी है। चने की इस किस्म को लिंकेज ग्रुप-4 पर क्यूटीएल हॉटस्पॉट के अनुक्रमण के माध्यम से विकसित देश का पहला सूखा सहिष्णु MAS-व्युत्पन्न किस्म से बनाया गया है।
पूसा चना 10216 की उत्पादन क्षमता
चने की इस किस्म से कम नमी की स्थिति में भी अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है। कम नमी की स्थिति में इस किस्म की औसत उपज क्षमता लगभग 14.8 क्विंटल/ हेक्टेयर है। वहीं कम नमी की स्थिति में इस किस्म से अधिकतम लगभग 25.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज प्राप्त की जा सकती है। इस किस्म के 100 दानों का वजन लगभग 22.2 ग्राम होता है।
चने की खेती की मुख्य बातें
बता दें कि चने की खेती के लिए उचित जल निकास वाले खेत, बलुई दोमट से चिकनी मिट्टी वाले खेत उपयुक्त होते हैं। वहीं चने की बुआई का उचित समय उत्तर पश्चिमी तथा उत्तर पूर्वी भारत के मैदानी क्षेत्रों में बारानी दशाओं में अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े तथा सिंचित दशाओं में 15 नवम्बर तक की जा सकती है।
किसानों को बुआई के समय यह बात ध्यान रखना चाहिए कि इसके बीज मिट्टी में लगभग 10 सेंटीमीटर गहराई में डाला जाए। गहराई कम होने से उकठा रोग लगने की संभावना अधिक रहती है। वहीं पिछेती बुआई में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 22.5 सेमी रखनी चाहिए। वहीं दलहनी फसल होने के नाते चने के बीज को उचित राइजोबियम टीके से उपचार करने से लगभग 10-15 प्रतिशत अधिक उपज मिल सकती है।