बकरियों के लिए संतुलित आहार
बकरी को भी अन्य जुगाली करने वाले पशुओं (गाय, भैंस, भेड़) की तरह पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है | बकरी के शरीर का विकास उसके पोषाण आहार पर निर्भर करता है | पोषाहार ही बकरी के बच्चों की शारीरिक क्षमता तथा दुध उत्पादन में वृद्धि करता है | अगर आप बकरी पालन करना चाहते हैं तो यह सभी जानकारी लेकर ही शुरुआत करें | जिससे कम समय में अच्छी मुनाफा होगा |बकरी की शारीरिक क्षमता के लिए मुख्य तत्व निम्न हैं :-
प्रोटीन , कार्बोहाडड्रेट्स, वसा, विटामिन्स, खनिज लवण
-
प्रोटीन :-
शरीर के रख – रखाब के अलावा प्रोटीन शरीर के बढवार में काम आती है | बढ़ते हुये बच्चों तथा दूध देने वाली बकरियों दोनों को ही प्रोटीन की आवश्यकता होती है | बकरियां यह प्रोटीन हरे एवं सूखे चारे पेड़ों और झाड़ियों की हरी पत्तियों तथा डेन विशेषकर खली से प्राप्त करती है | दलहनी फसलों के चारे में प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होती है जैसे बरसीम, रिजका, लोबिया इत्यादि | इसी तरह बबूल, बेर, छौंकरा की पत्तियों में भी प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होती है | हरे चारे की फसल को सही समय पर सुखाने पर भी बकरी को खिलाया जा सकता है , जिसे “हे” कहते हैं |
भूसा तो सिर्फ पेट भरने के लिए होता है | इसमें पची प्रोटीन तो नाममात्र की होती है | इसी तरह डेन के मिश्रण में खली तथा दाल की चूरी ही दो एसे अवयव हैं, जिनमें कि प्रोटीन की मात्रा काफी होती है | मूंगफली की खली में क्रूड प्रोटीन करीब 45 से 50 प्रतिशत होता है जबकि तिल की खली में 30 से 35 प्रतिशत तथा चूरी में 15 प्रतिशत के आस – पास क्रूड प्रोटीन होता है |
-
कार्बोहाडड्रेट्स :-
यह ऊर्जा के मुख्य स्रोत हैं | यह दो प्रकार के होते है, एक तो रेशे वाले जिसमें कि सेल्यूलोज मुख्य है तथा दुसरे पानी में घुलनशील | सेल्यूलोज को जुगाली करने वाले पशु ही पचा सकते हैं | दूसरी तरह के कार्बोहाडड्रेट्स में स्टार्च मुख्य है जो कि दाने जैसे मक्का, जौ, गेंहूँ, चावल या इससे बने पदार्थों में पाया जाता है | इसका बकरी के अलावा अन्य बिना जुगाली वाले पशुओं में भी महत्व है |
-
वसा :-
आहार में यह चारे तथा डेन के स्रोत से पूरा हो जाता है | इसका मुख्य काम है शरीर को कार्य करने के लिए ऊर्जा प्रदान करना | दुधारू पशुओं में दुग्ध वसा का मुख्य भाग पशु आहार से ही आता है | आवश्यकता से अधिक वसा पशु उत्पादन के लिए अच्छा नहीं होता | यह मुख्य रूप से व्यस्क पशु के लिए हानिकारक हैं | हालाँकि बहुत कम हालात में ही वसा की मात्रा पशु आहार में ज्यादा होती है |
-
विटामिन्स :-
बकरियों के लिए यह भी आवश्यक पोषक तत्व है | बकरी रुमनधारी पशु होने तथा इसके रमन में सुक्ष्मजीवी होने से यह पशु विटामिन ए ,डी तथा ई को छोड़कर अन्य सभी विटामिन जैसे बी काम्पलेक्स, सी तथा के को स्वयं शरीर में (रुमन) बनाने की क्षमता रखता है | अत: विटामिन के, सी तथा बी काम्पलेक्स अलग से देने की आवश्यकता नहीं है | परन्तु एक बात हमेशा ध्यान में रखी जाये कि तीन महीने से कम उम्र के बच्चों में रुमन के अन्दर सुक्ष्मजीवी प्रतिक्रिया भली – भांति विकसित नहीं होती है | इसलिए इस आयु तक के बच्चों को सारे विटामिन आहार में देने की आवश्यकता होती है |
कैरोटिन जो कि विटामिन ए का प्रीकर्सर है, ज्यादातर ताजे हरे चारों में उपलब्ध होता है | विटामिन डी धूप में सुखाये हुये चारे में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है | कैल्सियम तथा फास्फोरस लवणों के भली – भांति उपयोग के लिए विटामिन डी अत्यन्त आवश्यक है | विटामिन ई का मुख्य स्रोत हरे चारे हैं | दाने में जौ, मक्का, ज्वार इसके अच्छे स्रोत है | विटामिन के का मुख्य स्रोत हर चारा है तथा इसके अलावा रुमन सुक्ष्मजीवी भी इसे बनाते हैं |
विटामिन बी काम्प्लेक्स जैसे थाईमिन, नायेसिन, पाइरीडोकसीन, पैन्तोथैनिक आलम, फोलेसिन, बायोटीन कोलिन तथा बी – 12 रुमन के अन्दर सुक्ष्मजीवी बनाते है | इसलिए अलग से हरे चारे में देने की आवश्यकता नहीं होती है | विटामिन सी भी बकरी के शरीर (रुमन) में ही बनता है | इसे भी अलग से देने की आवश्यकता नहीं होती है |
-
खनिज लवण :-
कैल्सियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम, सल्फर, सोडियम, क्लोरीन, पोटेशियम, लोहा, तांबा, कोबाल्ट, जस्ता, आयोडीन, मैगनीज तथा सैलेनियम की भी आवश्यकता बकरी को होती है | इसके अलावा क्रोमियम, निकिल, वैनेडियम तथा टिन भी महत्वपूर्ण है |
हालाँकि डेन और चारे दोनों में ही विभिन्न प्रकार के खनिज लवण पाये जाते हैं | परन्तु इनकी मात्रा पशु शरीर की आवश्यकता के अनुरूप नहीं होती , इसलिए इनका अलग से देना अति आवश्यक है | ए मिनरल – मिक्चर के रूप में दिये जाते है | दाने में इनकी मात्रा 2 प्रतिशत के आसपास रहती है | जानवर की शारीरिक क्षमता , प्रजनन और उत्पादन के स्तर को बनाये रखने के लिए रोजना इसका इस्तेमाल अच्छा माना गया है | पशु आहार में खनिज की कमी से उत्पन्न लक्षण :- आहार में खनिजों की कमी से पशुओं में निम्नलिखित
मुख्य लक्षण उत्पन्न होते हैं :-
- भूख में कमी
- शारीरिक भर, वृद्धि दर में कमी तथा प्रति इकाई वृद्धि हेतु अधिक पोषण की आवश्यकता |
- रिकेट्स, आस्टोमलेसियातथा कमजोर अस्थियाँ |
- जोड़ों में अकडन, पसली की हड्डीयों पर गांठ बनना, शरीर की अस्थि संधियों का टेढ़ा – मेढ़ा होना
- घेंघा रोग, अस्वस्थ शरीर तथा बिना बल के बच्चे पैदा होना |
- मादा पशु का नियमित रूप से ऋतूमति (गर्म) न होना |
- दुग्धोत्पदन में कमी |
- कमजोर या मरे हुये बच्चे पैदा होना |
- प्रौढ़ पशु का तीव्र गति से कमजोर होकर मर जाना |
- जीवन के प्रारम्भ के दिनों में ही रक्त की कमी के लक्षण उत्पन्न होने से मृत्यु होना |
सर बकरे को मोटा करने के लिए कोई 2-3 घरेलु नुक्शा बताओ
सर दी गई लिंक पर जानकारी दी गई है। अधिक जानकारी के लिए अपने यहाँ के पशु चिकित्सालय में सम्पर्क करें।
क्या बकरी पालन हेतु बना बनाया चारा बाजार में उपलब्ध है? यदि हाँ तो कहाँ से मिलेगा?
सर चारा तो आप अपने यहाँ किसी किसान से ले सकते हैं | बकरी के लिए दाने का मिश्रण आदि बाजार में मिलता है |
Supar
Good
ojola ka beej kahan milega
जिले के कृषि विज्ञानं केंद्र या अपने यहाँ के पशु चिकित्सालय या पशुपालन विभाग में सम्पर्क करें
Very nice lession