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कृषि वैज्ञानिकों ने विकसित की सोयाबीन की उच्च उपज देने वाली तीन क़िस्में

सोयाबीन की नई उन्नत विकसित किस्म

कृषि क्षेत्र में उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा लगातार नई-नई क़िस्में विकसित की जा रही है। जिससे जहां फसलों की अधिक पैदावार से किसानों को को लाभ होता है वहीं विभिन्न कीट एवं रोगों के प्रति रोधी होने के कारण लागत में भी कमी आती है। ICAR-सोयाबीन अनुसंधान केंद्र इंदौर द्वारा उच्च उत्पादन देने वाली तथा कीट-रोगों के प्रतिरोधक तीन क़िस्में विकसित की गई हैं।

सोयाबीन अनुसंधान केंद्र इंदौर द्वारा हाल ही में विकसित NRC 157, NRC 131 और NRC 136 को सरकार ने मंजूरी दे दी है। इन तीनों किस्मों से जहां पैदावार में वृद्धि होगी वहीं कीट-रोगों के प्रति रोधी होने के चलते फसल की लागत में भी कमी आएगी। आइए जानते इन किस्मों की विशेषताएँ क्या हैं:-

सोयाबीन किस्म NRC 157 की विशेषताएँ 

यह एक मध्य अवधि में पकने वाली किस्म है जो मात्र 94 दिनों में पक जाती है। इस किस्म का औसत उत्पादन 16.5 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। यह किस्म अल्टरनारिया लीफ स्पॉट, बैक्टीरीयल पस्तुल्स एवं टार्गेट लीफ स्पॉट जैसी बीमारियों के लिए मध्यम प्रतिरोधी है। इस किस्म की बुआई देरी से की जा सकती है। वैज्ञानिकों के अनुसार किसान इस किस्म की बुआई 20 जुलाई तक की जा सकती है। 

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सोयाबीन किस्म NRC 131 की विशेषताएँ

कृषि विश्वविद्यालय के द्वारा विकसित सोयाबीन की यह किस्म 93 दिनों पककर तैयार हो जाती है, इसका औसतन उत्पादन 15 क्विंटल/हैक्टेयर है। इसके साथ ही चारकोल रॉट एवं टारगेट लीफ स्पॉट जैसे रोगों के लिए मध्यम प्रतिरोधक है। सोयाबीन की इस किस्म को देश के पूर्वी क्षेत्रों के लिए विकसित किया गया है।

NRC-136 की विशेषताएँ

सोयाबीन की यह किस्म 105 दिनों में पककर तैयार हो जाता है, इस किस्म से औसतन 17 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से पैदावार प्राप्त की जा सकती है। सोयाबीन की यह किस्म सूखे के प्रति सहनशील है। सोयाबीन की इस किस्म को मध्य क्षेत्र के लिए अनुमोदित किया गया है। सोयाबीन की यह किस्म मूँगबीन येलो मोज़ेइक वाइरस के प्रति रोधी है। 

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