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सरकार फसल अवशेष के लिए उपयोगी कृषि यंत्रों पर दे रही है 80 प्रतिशत तक की सब्सिडी

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फसल अवशेष प्रबंधन हेतु कृषि यंत्रों पर अनुदान

देश में कृषि के आधुनिकीकरण के लिए सरकार द्वारा कृषि यंत्रों के उपयोग को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। अधिक से अधिक किसान इन कृषि यंत्रों का उपयोग कर सकें इसके लिए सरकार द्वारा इन कृषि यंत्रों की खरीद पर भारी अनुदान भी दिया जाता है। इस कड़ी में बिहार सरकार राज्य में किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन के लिए उपयोगी कृषि यंत्रों पर भारी सब्सिडी मुहैया करा रही है।

बिहार कृषि विभाग के सचिव संजय कुमार अग्रवाल ने धान की कटाई को देखते हुए किसानों से अपील की है कि किसान धान की खूँटी, पुआल आदि को खेतों में नहीं जलायें बल्कि उसका उचित प्रबंधन करें। किसानों की सुविधा के लिए सरकार फसल अवशेष प्रबंधन के लिए भारी सब्सिडी उपलब्ध करा रही है। साथ ही उन्होंने ने फसल अवशेष को जलाने पर होने वाले नुक़सान की जानकारी दी।

पर्यावरण को होता है भारी नुकसान

इस विषय में जानकारी देते हुए मुख्य सचिव ने बताया कि मजदूरों के अभाव में खासकर पटना एवं मगध प्रमंडल के अधिकांश जिलों के किसान भाई-बहन धान की कटनी कंबाइन हार्वेस्टर से करते हैं। कटनी के उपरांत धान के तने का अधिकांश भाग खेतों में ही रह जाता है। अगली फसल लगाने की जल्दी में आमतौर पर किसान भाई बहन द्वारा इन फसल अवशेषों को खेतों में ही जला दिया जाता है।

उन्होंने कहा कि एक टन फसल अवशेष को जलाने से लगभग 60 किलोग्राम कॉर्बन मोनो ऑक्साइड, 1,460 किलोग्राम कॉर्बन डाई ऑक्साइड तथा 2 किलोग्राम सल्फर डाई ऑक्साइड गैस निकलकर वातावरण में फैलती है, जिससे पर्यावरण को काफी नुकसान पहुँचता है।

इन कृषि यंत्रों पर दिया जा रहा है अनुदान

कृषि सचिव ने बताया कि सरकार द्वारा कृषि यंत्रीकरण योजना के अंतर्गत किसानों को फसल अवशेष को प्रबंधन करने से संबंधित कृषि यंत्रों जैसे हैप्पी सीडर, रोटरी मल्चर, स्ट्रॉ बेलर, सुपर सीडर, स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम (एसएमएस), रोटरी स्लेशर, जीरो टिलेज/सीड-कम फर्टिलाइजर, पैडी स्ट्रॉ चॉपर आदि कृषि यंत्रों पर 75 से 80 प्रतिशत तक अनुदान दिया जा रहा है।

उन्होंने राज्य के किसान भाइयों एवं बहनों से अपील की है कि फसल अवशेषों को खेतों में न जलाकर उसे मिट्टी में मिला दें या उससे वर्मी कंपोस्ट बनाये अथवा पलवार विधि से खेती करें। ऐसा करने से मिट्टी का स्वास्थ्य अच्छा बना रहेगा एवं फसलों का गुणवत्तापूर्ण तथा अधिक उत्पादन होगा, जिससे किसानों की आय बढ़ेगी।

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