किसान किताब या भू-अधिकार एवं ऋण पुस्तिका नाम बदलने के लिए प्रतियोगिता
“भू-अधिकार एवं ऋण पुस्तिका या किसान किताब” प्रत्येक भू-स्वामी/ भू-धारी किसान के जीवन का एक अभिन्न अंग रहा है। किसान के समस्त कृषकीय एवं वित्तीय कार्य की अधिकारिक पुष्टि का स्त्रोत यह छोटी सी पुस्तिका ही है। यह कहना अतिशयोक्ति नही होगी कि यह किसान की अस्मिता से सीधे संबंधित रखती है। छत्तीसगढ़ सरकार अब इसको एक नया सम्मान जनक नाम देना चाहती है। जिसके लिए सरकार ने जनता से सुझाव माँगे हैं।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा बलौदा बाजार-भाटापारा के विधानसभा क्षेत्र ग्राम कडार में आयोजित भेंट मुलाकात के दौरान “भू-अधिकार एवं ऋण पुस्तिका या किसान किताब” की कृषक के जीवन में महत्ता को दृष्टिगत रखते हुये इसे एक नया सम्मान जनक नाम देने का आव्हान आम जनता से किया गया है।
जीतने वाले को मिलेगा 1 लाख रुपए का पुरस्कार
सरकार ने “भू-अधिकार एवं ऋण पुस्तिका या किसान किताब” के नामकरण के लिए आम जनता से प्रस्ताव आमंत्रित किए हैं। इसमें प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले प्रतिभागी को एक लाख रुपए का पुरस्कार दिये जाने की घोषणा की गयी है।
इसके लिए सरकार ने नामकरण को अंतिम रूप देने के लिये प्रतिभागियों से सुझाव आमंत्रित किये जाने हेतु विभाग द्वारा एक ऑनलाईन वेब पोर्टल तैयार किया गया हैं जिसका लिंक https://revenue.cg.nic.in/rinpustika है। इस पर प्रत्येक प्रतिभागी अपने मोबाईल नंबर को रजिस्टर कर अपनी एक प्रविष्टि दिनांक 30 जून 2023 तक अपलोड कर सकते हैं।
भू-अधिकार एवं ऋण पुस्तिका क्या होती है?
राज्य में प्रत्येक किसान मालगुजारी के समय से परंपरागत रूप से अपने स्वामित्व की भूमि का लेखा-जोखा एक पुस्तिका के रूप में धारित करता रहा है। मालगुजारी काल में बैल जोड़ी के चित्र वाली एक लाल रंग की पुस्तिका, जिसे असली रैयतवारी रसीद बही” कहा जाता था, मालगुजारों के द्वारा कृषकों को दी जाती थी। कालांतर में इस पुस्तिका को भू-राजस्व सहिता में कानूनी रूप दिया गया।
भू-राजस्व संहिता के प्रभावशील होने के पश्चात् वर्ष 1972-73 में इस पुस्तिका का नामकरण भू अधिकार एवं ऋण पुस्तिका किया गया। “भू अधिकार एवं ऋण पुस्तिका” में कृषक के द्वारा धारित विभिन्न धारणाधिकार की भूमि एवं उनके द्वारा भुगतान किये गये भू राजस्व, उनके द्वारा लिये गये अल्प एवं दीर्घकालीन ऋणों के विवरण का इन्द्राज किया जाता है। इसके अतिरिक्त भूमि के अंतरणों की प्रविष्टियों को भी इसमें दर्ज किया जाता रहा है।
वर्ष 2003 में नाम बदलकर किया गया किसान किताब
छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण के पश्चात् वर्ष 2003 में ऋण पुस्तिका का नाम किसान किताब किया गया लेकिन इसके उद्देश्यों एवं उपयोग में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। किसान किताब में किसान के द्वारा धारित समस्त भूमि वैसे ही प्रतिबिंबित होती है जैसे यह भू-अभिलेखों में है।
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धनलक्ष्मी किताब
Mere ko jansatta ki jarurat