Home फसलों में कीट एवं रोग किसान इस तरह करें केले में लगने वाले प्रकन्द घुन या छेदक...

किसान इस तरह करें केले में लगने वाले प्रकन्द घुन या छेदक कीट का नियंत्रण

Control of banana rhizome mite borer pest

केला प्रकन्द घुन/छेदक कीट का नियंत्रण

आम के बाद केले की खेती देश में सबसे अधिक मात्रा में की जाती है, भारत केले के उत्पादन में पहला स्थान रखता है| भारत में केले की खेती 8.6 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में की जाती है जिसका उत्पादन 30.5 मिलियन मीट्रिक टन है | अपने विशेष गुणों के कारण यह देश के बाजारों में वर्ष भर उपलब्ध रहता है | भारत में केले की उत्पादकता प्रति हेक्टेयर 34 मीट्रिक टन है,जो वैश्विक स्तर 19.2 मैट्रिक हेक्टेयर से काफी ज्यादा हैं | इसे अभी और बढाने की आवश्यकता है |

प्रति हैक्टेयर केले का उत्पादन बढ़ाने के लिए आवश्यक है की किसान अपने केले की फसल को कीट एवं रोगों से मुक्त रखें| केले में कई प्रकार की बीमारियाँ एवं कीट लगते हैं जिससे फसलों को काफी नुकसान होता है | केले के उत्पादन बढ़ाने के लिए यह जरुरी है कि इसकी देखभाल सही समय पर की जाए | किसान समाधान आज की पोस्ट में केले में लगने वाले मुख्य कीट एवं उनके नियंत्रण की जानकारी लेकर आया है |

केला प्रकंद घुन/छेदक :- कांस्मोपालिटस सोर्डिड्स (जर्मर) (कोलाप्टेरा: कर्कुलायोनी)

संक्रमण के लक्षण

शुरू में संक्रमण होने पर केले के पौधों का विकास तथा पौधे की चमक कम हो जाती है, इसके अलावा संक्रमित पौधे बीमार दिखने लगते हैं | पत्ती के ऊपर पीली रेखाओं का दिखना इस संक्रमण का प्रारंभिक लक्षण है | प्रकन्द में इल्ली तथा सुंडी मुलायम भागों को खाती है जिसके कारण सुरंगे दिखने लगती है और पौधे कमजोर हो जाते है | हवा के हल्के झोंकों से ही पौधे टूटने तथा गिरने की आशंका बनी रहती है |

संक्रमण बढने पर पौधों का उपरी सिरा पतला हो जाता है तथा पत्तियां कम आकार में छोटी निकलती है | प्रकन्द के आगे के भाग में कीट के कारण हुए नुकसान से फलों के गुच्छे कम तथा छोटे दीखते हैं | व्यस्क घुन, पौधे के प्रकंद और तने के जुडान बिंदु (ग्रीवा/काँलर) क्षेत्र को संक्रमित करता है | केले की दुसरे वर्ष की फसल (पड़ी/रेटून) में अधिक संक्रमण की दशा में उत्पादकता में 50% की कमी हो सकती है |

नियंत्रण
  • केले के पौधों में घुनों को रोकने के लिए समय–समय पर खरपतवार को निकालते रहना चाहिए, इसके साथ ही पौधों को गंदगी से बचाकर रखें |
  • पौधों के जड़ों में छेद करने वाले कीटों को मारने के लिए रोपाई के पूर्व 0.05 प्रतिशत क्लोरपाइरीफास से मृदा का उपचार करना चाहिए |
  • केले के पौधों को भी उपचारित करना चाहिए | उपचारित करने से पहले चाकू से पौधों के जड़ों को साफ़ कर दें | इसके बाद ट्राइएजोफांस (2.5 मि.ली./लि.जल) या बीयूवेरिया बेसियाना (1×109 प्रति मिली.) के घोल में लगभग 20 मिनट तक डालकर उपचारित करें |
  • फलों के तुडाई के बाद बचे हुए तने को काटकर उस स्थान से हटा दें | इसके बाद साफ़–सफाई करके क्लोरपाइरीफास (2.5 मि.ली. / लिटर जल) से उपचारित करें, जिससे घुनों को मारने में सहायता मिलती है |
  • घुन तथा प्रकंदों को क्षति पहुँचाने वाले कीट केले के पौधों से निकलने वाले वाष्पशील गैसिय पदार्थों के प्रति आकृष्ट होते हैं | अत: इस परिस्थिति में केले के एक पेड़ को दो बराबर भागों में फाड़े (45 से 50 से.मी. लम्बे) | इसके बाद फाड़े हुए तने को इस प्रकार रखें की कटा हुआ भाग भूमि की तरफ (प्रकाश सीधे कटे भाग पर न पहुँचे) इस स्थिति में कटे पौधों से निकलने वाले वाष्पशील गैसों के प्रति कीट आकर्षित होकर आ जायेंगे |
  • जब ऐसा लगने लगे की कटे हुए पौधे पर कीट आ रहे हैं तब उस कटे हुए पौधों को बियुवेरिया बेसियाना (1×109 प्रति मिली.) का द्रव मिश्रण या धान के भुसामय दाना टुकड़ों के साथ बीयूवेरियस बेसियाना का मिश्रण या 20 मिली.कीट रोगकारी सूत्र कीट जैसे हेटेरोहेब्डिटिस इंडिका का मिश्रण लगा देना चाहिए | कटे हुए केले के तने को प्रति हेक्टेयर 10 से 15 रखें |
Notice: JavaScript is required for this content.

NO COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
यहाँ आपका नाम लिखें

Exit mobile version