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मक्के की फसल में लगने वाले उत्तरी झुलसा रोग की पहचान और उसका उपचार कैसे करें

Makke me uttari Jhulsa Rog

मक्का फसल में उत्तरी झुलसा या टर्सिकम लीफ ब्लाइट रोग

भारत के कई राज्यों में रबी, खरीफ एवं जायद सीजन के दौरान मक्के की खेती प्रमुखता से की जाती है। मक्का फसल की आनुवंशिक उत्पादन संभावना सर्वाधिक होने के चलते मक्का को अनाज की रानी के रूप में भी जाना जाता है। मक्के की खेती करने वाले किसानों को बुआई से लेकर कटाई तक यानि की पूरे फसल चक्र के दौरान कई कीट रोगों का सामना करना पड़ता है। इन रोगों में उत्तरी झुलसा या टर्सिकम लीफ ब्लाइट या टर्सिकम पत्ती अंगमारी रोग भी शामिल है। मक्के के इस रोग की वजह से फसल को 28 से 91 प्रतिशत तक का नुकसान होता है।

कवक रोगों की वजह से मक्का की फसल काफी प्रभावित होती है। इनमें से उत्तरी झुलसा या टर्सिकम लीफ ब्लाइट महत्वपूर्ण रोगों में से एक है। मक्के की फसल में इस रोग का संक्रमण 17 से 31 डिग्री सेल्सियस तापमान के दौरान जब सापेक्षिक आद्रता (90– 100 प्रतिशत), गीली और आर्द्र अवधि के मौसम में अनुकूल होता है। यह रोग प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करता है। इसकी वजह से उपज में 28 से 91 प्रतिशत तक की कमी आती है।

उत्तरी झुलसा रोग की पहचान

फसल पर इस रोग का संक्रमण शुरू होने के लगभग 1 से 2 सप्ताह बाद, पहले छोटे हल्के हरे से भूरे रंग के धब्बे के रूप में लक्षण दिखाई देते हैं। अति संवेदनशील पत्तियों पर यह रोग सिगार के आकार का एक से छह इंच लंबे स्लेटी भूरे रंग के घाव जैसा होता है। जैसे –जैसे रोग विकसित होता है, घाव भूसी सहित सभी पत्तेदार संरचनाओं में फैल जाता है। इसके बाद गहरे भूरे रंग के बीजाणु उत्पन्न होते हैं। घाव काफी संख्या में हो सकते हैं, जिससे पत्ते नष्ट हो जाते हैं। इसके कारण किसानों को उपज का बड़ा नुकसान होता है।

उत्तरी झुलसा रोग का उपचार

  • किसान उत्तरी झुलसा रोग को नियंत्रित करने के लिए मक्के की प्रतिरोधी किस्मों का ही इस्तेमाल करें।
  • मक्का की समय पर बुआई करने से उत्तरी झुलसा (टीएलबी) रोग से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है।
  • मक्का के अवशेषों को नष्ट करने के बाद फसल को संक्रमित करने वाले उपलब्ध उत्तरी झुलसा (टीएलबी) रोगजनक की मात्रा घटती है।
  • एक से दो वर्ष का फसल चक्र अपनाने और जुताई द्वारा पुरानी मक्का फसल के अवशेष को नष्ट करने से रोग में कमी आती है।
  • खेतों में पोटेशियम क्लोराइड के रूप में पर्याप्त पोटेशियम का इस्तेमाल करने से रोग को नियंत्रित किया जा सकता है।
  • कवकनाशी जैसे मैंकोजेब (0.25 प्रतिशत) और कार्बेन्डाजिम का नियमित रूप से उपयोग करने से रोगों की रोकथाम की जा सकती है।
  • एजोक्सिस्ट्रोबिन 18.2 प्रतिशत + डिफेंसकोनाजोल 11.4 प्रतिशत w/w एससी (एमिस्टर टॉप 325 एससी) 1 मिली/लीटर पानी में, लक्षण दिखने पर पत्तियों पर तुरंत छिड़काव करें।

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