पुदीना उत्पादन की नवीनतम वैज्ञानिक तकनिकी 

पुदीना की खेती

उपयोग

सौंदर्य प्रसाधन, पाक संबंधी, सुरुचिकर स्वाद, परफ्यूमरी

पुदीना हमेशा हरा रहने वाली (बेल – बूट) है, आसवन से जरुरी तेल की पैदावार मिलती है जिसमें विभिन्न संयोजन वाली संगधीय – रासायनिक तत्वों की विशाल किस्में शामिल है | यह तेल और इनके संगधीय रासायनिक तत्व शुद्ध रूप में प्राप्त होते है और व्यापर में इनकी विश्व – व्यापी स्तर पर बहुत मांग है |

कुल मिलाकर जैपनिस मिंट, पिपरमिंट, स्प्रियर्मिंट तथा बर्गामोट मिंट की इसके तेल और सगंधीय पृथक्करण तत्वों के लिए व्यापक स्तर पर खेती की जा रही है | इन सगंधीय प्रिह्त्क्कारी तत्वों जैसे मेन्थोल, कार्बोन, लीनेलीन एसिटेट तथा लिनालोल का उपयोग दवाई बनाने खाद्ध स्वाद, सौंदर्य प्रसाधन तथा संबंद्ध उधोगों में किया जाता है |

  • हाल ही के वर्षों में अनेक प्रकार के उपयोगों के लिए इस तेल के अनेक लघु संघटक तत्वों की मांग होने लगी है |
  • मध्यम से उपजाऊ गहरी मृदा जो प्रचुर खाद – मिटटी वाली है, वह आदर्श है |
  • मृदा की पानी धारण अच्छी होनी चाहिए किन्तु जलमग्नता से बचा जाए |
  • 6 – 7.5 की पीएच मात्र आदर्श है |

जलवायु

जैपनिस मिंट (पुदीना) को उष्ण कटिबंधीय तथा उपोष्ण क्षेत्रों में सिंचाई स्थिति के तहत उगाया जा सकता है | तथापि यह नमी वाली सर्दी को सहन नहीं कर सकती, जिसके कारण जड़ विगलन होता है |

पिपरमिंट तथा स्पियरमिंटी को उष्णकटिबंधी तथा उपोष्ण क्षेत्रों में लाभदायक तौर पर उगाया जा सकता है |विशेष रूप से काफी अधिक तापमान (41 डिग्री से.) में और आदर्श पैदावार सिर्फ आर्द तथा शीतोष्ण स्थितियों में जैसे कश्मीर और उतर प्रदेश तथा हिमाचल प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र, से प्राप्त की जा सकती है |

इसकी बुवाई की अवधि के दौरान अत्यधिक वर्षा के बगैर, अच्छी धूप की स्थिति अच्छी वृद्धि तथा तेल के विकास के लिए अनुकूल है |

बर्गामोट मिंट को शीतोष्ण मौसम में उगाया जा सकता है, तब इससे ज्यादा पैदावार प्राप्त होती है |

किस्में

  • जैपनिज मिंट :- सीआईएमएपी – एमएएस -1 और सीआईएमएपी – संकर – 77, शिवालिक, ईसी – 41911, गोम्बी, हिमालय, कालका , कोसी, गोमती, डमरू, संभव तथा सक्षम |
  • स्पियरमिंट :- सीआईएमएपी – एमएसएस – 1, सीआईएमएपी – एमएसएस – 5 तथा सीआईएमए पी – एमएसएस 98, पंजाब स्पियरमिंट -1, गंगा, निरकालका
  • बर्गामोट मिंट : किरण
  • पिपरमिंट : कुकरेल, प्रांजल, तुषार

लागत (इनपुट)

क्र. सामग्री प्रति एकड़ प्रति हैक्टेयर
1. भूस्तरी (स्टोलोन्स) (कि.ग्रा.) 160 400
2. फार्म यार्ड खाद (टन) 16 40
3. उर्वरक (कि.ग्राम)

 

स्पियर मिंट

 

48

20

16

120

50

40

 

जैपनिज मिंट

 

64

20

16

160

50

40

 

पिपर मिंट

 

 

50

20

16

125

50

40

बर्गामोट मिंट

 

 

48

20

16

120

50

40

 

कृषि तकनीक

प्रवर्धन

  • पुदीने का संचारण बेल वाली स्टोलोन्स, सकर्स या टनर्स द्वारा किया जाता है |
  • स्टोलोन्स को पिछले वर्ष के रोपण से प्राप्त किया जाता है |
  • एक हैक्टेयर क्षेत्र में अच्छी तरह स्थपित पुदीना, 10 हैक्टेयर क्षेत्र की रोपण सामग्री के लिए पर्याप्त है |
  • दिसम्बर – जनवरी माह के दौरान स्टोलोन्स प्राप्त करने का अच्छा समय है |

रोपाई

मैदानी क्षेत्रों में सर्दी के महीनों में रोपण किया जाता है , जबकि शीतोष्ण मौसम में सर्दी या बसंत में रोपण किया जाता है, जो दिसम्बर के अंतिम सप्ताह से मार्च के प्रथम सप्ताह या जनवरी प्रथम सप्ताह से फ़रवरी के तीसरे सप्ताह तक होता है |

देरी से रोपण करने पर हमेशा कम पैदावार प्राप्त होती है |

पुदीने के लिए अच्छी तरह जुताई और हेरोकृत अच्छी मृदा की जरुरत होती है | फसल रोपण से पहले खरपतवार के सभी ठूंठो को खेत से निकाल देना चाहिए |

स्टोलन्स को छोटे – छोटे टुकड़ों (7 – 10 सेमी.) में काटा जाए और पंक्ति से पंक्ति के बीच 45 60 से.मी. की दूरी पर लगभग 7 – 10 से.मी. गहराई में उथले खांचे (शैलो फ्युरों) हाथ से या मशीन द्वारा रोपित किया जाता है |

स्टोलन्स को रिज के अन्दर की ओर आधा निचे की तरफ रोपित किया जाए |

सिंचाई एवं निराई

  • पुदीने के लिए पानी की अधिक मात्र में जरुरत होती है | मृदा और मौसम स्थितियों के आधार पर प्रथम वर्षा काल से पहले फसल की 6 – 9 बार सिंचाई की जाती है |
  • वर्षाकाल के बाद फसल को तिन बार सिंचाई की जरुरत होती है |
  • जैपनिस मिंट की अधिकतम पैदावार प्राप्त करने के लिए 15 सिंचाई की जरुरत होती है |
  • खरपतवार की वृद्धि से हर्ब और तेल की पैदावार में लगभग 60 प्रतिशत की कमी होती है | अत: पुदीने के लिए फसल वृद्धि के आरंभिक चरणों में नियमित अंतराल पर खरपतवार निकालना जरुरी है |
  • सिनबर को बाद में उभरने वाले खरपतवार नाशक के रूप में प्रभावशाली पाया गया | इसका 1 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से छिडकाव प्रभावशाली है |
  • जैविक पलवार के साथ प्रति हैक्टेयर 0.5 किलोग्राम आक्सिफ्लूरफेन शाकभक्षी (हर्बीसाइड) और वीडिंग या प्रति हैक्टेयर 1 किलोग्राम पेंडिमिथियों शाकभक्षी के संयोजन और खरपतवार को निकालने को सम्पूर्ण फसल वृद्धि की अवधि के दौरान उत्कृष्ट खरपतवार नियन्त्रण करने वाला पाया गया |

पौध सुरक्षा

मुख्य रोग    :  रतुआ, चूर्णी फफूंद तथा स्टोलन मुरझान

मुख्य कीट   : पर्ण बेल्लन (लीफ रोलर), प्राइरेलिड रोमिल इल्ली तथा दीमक

नियंत्रण

0.2 % वेतेबल सल्फर या कैराथीन छिड़काव द्वारा रतुआ को नियंत्रित किया जा सकता है |

स्टोलन मुरझान को 0.2% डाइथेन एम – 45 तथा 0.1% ब्रैसीकोल के छिड़काव द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है |

पर्ण बेल्लन (लीफ रोलर) को व्यवस्थित कीटनाशक जैसे 0.2% मोनोक्रोटोफोस द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है |

रोमिल इल्ली (हेयरी केटरपिलर) को 5% डीपटैरेक्स के अनुप्रयोग द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है|

रोपण से पहले 3% हेप्टाफन को प्रति है. 50 कि.ग्राम. की दर से मृदा में अनुप्रयोग द्वारा दीमक को नियंत्रित किया जा सकता है |

फिनेमीफोस का 11.2 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से मृदा अनुप्रयोग द्वारा नेमाटोड को प्रभावशाली ढंग से नियंत्रित किया जा सकता है |

कटाई, प्रसंस्करण एवं उपज

  1.     सामान्यत: फसल को रोपण के 100 – 120 दिन बाद उस समय काटा जाता है जब नीचे वाले पत्ते धीरे – धीरे पीले होने आरंभ हो जाते हैं | इसके अलावा कटाई का कार्य खिली हुई धूप वाले मौसम में किया जाए |
  2. कटाई में हरी हर्ब की भूमि से 2 – 3 से.मी. ऊपर कुदाली द्वारा कटिंग करना शामिल है |
  3. पहली कटाई के 80 दिन बाद दूसरी कटाई तथा इसके बाद और 80 दिन के पश्चात तीसरी कटाई प्राप्त की जाती है |
  4. पहली फसल जून में तथा दूसरी फसल सितम्बर या अक्टूबर में तैयार हो जाती है |
  5.  अच्छी फसल से प्रति हैक्टेयर अधिकतम 48000 किलोग्राम तजि हर्ब प्राप्त की जा सकती है | तथापि तीसरी कटिंग से औसतन 20,000 से 25,000 किलोग्राम की औसत पैदावार प्राप्त होती है जिससे प्रति हैक्टेयर लगभग 50 – 70 किलोग्राम तेल प्राप्त होता है |
स्त्रोत :राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड, भारत सरकार

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