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पशुओं के प्रमुख संक्रमक रोग एवं उनके लक्षण और उनसे बचाव कैसे करें

पशुओं के प्रमुख संक्रमक रोग एवं उनके लक्षण और उनसे बचाव कैसे करें

वह रोग जो बैक्टीरिया, वाइरस तथा प्रोटोजोआ द्वारा फैलते हैं, संक्रमक रोग कहलाते हैं | छूत से फैलने वाले सभी रोग संक्रमक रोग होते हैं | पशुपालक जानते हैं की संक्रमक रोगों द्वारा दुधारू पशुओं में भारी आर्थिक हानि हुआ करती है I

प्रमुख संक्रमक रोग निम्न है |

खुरपका मुंहपका रोग

यह एक भयानक संक्रमक वाइरस जनित रोग है | इस रोग में तेज बुखार आता है | जो 104 F तक पहुँचता है | मुंह से लार टपकती है, खुर में घाव हो जाने पर पशु एक स्थान पर खड़ा नहिंढ़ पता है लंगडाकर चलता है, घाव में कीड़े पद जाते हैं, मुंह में छाले पद जाते हैं, पशु खाना पीना छोड़ देता हैं, दूध में कमी आ जाती जैन तथा गर्भपात हो जाता है |

बचाव :

इसका टीका पशुपालन विभाग द्वारा रियायती दर पर लगाया जाता है, यह टीका वर्षा आरम्भ होने से पहले मई – जून में लगवा लेना चाहिए, यह टीका लगवा कर महामारी से बचा जा सकता हैं |

यदि बीमारी हो जाए तो बीमार पशु को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए |

रोगी पशु का मुंह 2% फिटकिरी के घोल से धोना चाहिए तथा खुर 1% कापर सल्फेट के विलय से धोना चाहिए |

पोंकनी रोग

यह भी वाइरस जनित भयानक रोग हैं, इससे काफी पशुओं की मृत्यु हो जाती हैं, तथा बीमारी में बुखार 105 – 107 F तक आता है, दस्त आते है, मुंह, जीभ तथा आतों में छाले पड जाते हैं | पशु कमजोर होकर लड़खड़ाकर गिर जाता है और मर जाता है |

बचाव :

स्वस्थ पशुओं में रोग से बचाव के लिए टीका लगवा लेना आवश्यक है यह टीका अक्टूबर / नवम्बर में लगाया जाता है | इसमें जी.टी.बी. तथा लेपिनाज्ड वैक्सीन मुख्य हैं | आज कल रिंडरपेस्ट उन्मूलन कार्यक्रम चल रहा है इस हेतु आर.पी. खोज कार्य जारी है इसलिये टीकाकरण का कार्य नहीं कराया जा रहा है | कृपया इसकी खोज में पशु चिकित्सकों की मदद करें |

माता रोग

यह विषाणु जनित रोग है इसमे आयन एवं थनों में छाले पड जाते हैं जो बाद में घाव बन जाते हैं | जिससे थनैला रोग होने का भय उत्पन्न हो जाता है |

बचाव :

बीमार पशु को अलग रखना चाहिए तथा घाव में एन्टीसेप्टिक मल्हम लगाना चाहिए |

रैबीज

यह रोग पागल कुत्ते, सियार, नेवला आदि के काटने से होता है यह रोग वाइरस जनित है प्रमुख लक्षणों में पशु का उग्र होना, मुंह से लार टपकना, रोगी पशु कंकड़ मिटटी को पकड़ कर चबाने का प्रयास करता है अन्त में लकवा मार जाता है और पशु की मृत्यु हो जाती है | बीमार पशु के काटने तथा लार लगने से मनुष्य में यह रोग फैल जाता है |

बचाव :

पशु के घाव को कार्बोलिक एसिड द्वारा साफ करना चाहिए | उसके बाद एन्टीरेबीज का टीका लगवाना चाहिये क्योंकि लक्षण पैदा होने पर उपचार असम्भव हो जाता है | यह टीका राजकीय पशुचिकित्सालयों द्वारा नि:शुल्क लगाया जाता है |

गलाघोंटू

यह जीवाणु जनित रोग है यह “पास्चुरेल्ला माल्टोसिडा” द्वारा होता है इस रोग में 104-106F तक बुखार आता है, गले में सूजन आती है, साँस लेने में कठनाई होती है | उपचार न कराने पर पशु 24 घंटे मार जाता है |

यह रोग आमतौर पर बरसात में होता है परन्तु वर्ष में कमी भी हो सकता है |

बचाव:

रोग की रोकथाम के लिए पशुओं को प्रतिवर्ष मई – जून माह में टीका लगवा लेना चाहिये | रोग हो जाने पर बीमार पशु अलग रखना चाहिये तथा उपचार करायें |

लंगड़िया बुखार

यह भी जीवाणु जनित रोग है यह कलोस्ट्रीडियम चोवियाई द्वारा फैलता है , मुख्यत: यह रोग 6 महीने से 2 वर्ष की आयु के पशुओं में होता है प्रमुख लक्षणों में तेज बुखार आना, पैर में सूजन आना और सूजन में गैस का भरना है, सूजन के दबाने से चरचराहट की आवाज आती है |

बचाव :

रोग की रोकथाम के लिये पशुओं में मई – जून में टीका लगाना चाहिये | बीमार पशु को एन्टी ब्लैक कवार्टर सीरम लगवाना चाहिये, मरे पशु को जमीन में गाड देते हैं जिससे संक्रमण न हो सके |

जहरी बुखार

यह रोग “बैसिलस – एंथ्रेसिस” नामक जीवाणु से होता है | इस रोग के प्रमुख लक्षणों में 105-108F तक तेज बुखार आता है , तिल्ली बढ़ जाती है तथा खून का रंग कला ही जाता है, नथुना से खून निकलता है अंतत: 24 – 48 घन्टे में मृत्यु हो जाती है यह रोग संक्रमण द्वारा मनुष्यों में भी फैल जाता है | यह zoonotic रोग है |

बचाव:

रोग से बचाब के लिए स्वस्थ पशुओं में अगस्त माह में – एंथ्रेक्स का टीका लगवाना चाहिये, मरे हुए पशु की खल नहीं निकालनी चाहिए और शव को गहरे गड्डे में चूना डालकर दबा देना चाहिए |

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