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यदि आपके पास पशु है तो बारिश के मौसम में करें यह काम, नहीं होगा आर्थिक नुकसान

barish me pashu ki dekhbhal

बारिश में पशुओं की देखभाल कैसे करें?

देश में पशुपालन किसानों के लिए दैनिक आय के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार का अच्छा जरिया है। ऐसे में पशुपालन को लाभ का धंधा बनाने के लिए पशुओं की उचित देखभाल करना जरुरी होता है, ताकि पशु को बीमारी से बचाया जा सके। देश में बारिश का मौसम जून महीने से सितंबर महीने तक रहता है। इस दौरान कई कारणों से पशु स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। जिससे पशु पालकों को आर्थिक हानि का सामना करना पड़ता है।

बरसात के मौसम में पशुओं में कई तरह के रोग लगने की संभावना होती है, साथ ही अधिक बारिश से बाढ़ आने के कारण, बिजली गिरने के चलते या अन्य प्राकृतिक कारणों से पशुओं की मृत्यु भी होने की संभावना रहती है। ऐसे में पशुपालकों को पशुओं के रहने की उचित व्यवस्था के साथ ही अच्छी तरह से देखरेख करना चाहिए ताकि आर्थिक नुक़सान से बचा जा सके।

पशुओं के बाड़े में करें चुने का छिड़काव

बारिश में जमीन गीली होने के कारण फिसलन बढ़ जाती है जिससे पशुओं में गिरकर गंभीर चोट लगने या पैर टूटने का खतरा बना रहता है। इसके लिए पशुपालकों को विशेष ध्यान देना चाहिए। पशु बाड़ें की छत से पानी का रिसाव नहीं होने देना चाहिए। बाड़े में जलजमाव के कारण पशुओं में गंभीर रोगों जैसे काँक्सीडीयता या कुकड़िया रोग, पैर सड़ांध या फुट रॉट, आदि का खतरा कई गुना तक बढ़ जाता है। बाड़े की छत के निर्माण के लिए स्टील या लोहे की जस्ता चढ़ी नालीदार चादर का उपयोग करना लाभकारी होता है। सप्ताह में कम से कम दो बार बाड़े में चुने के छिडकाव से पशुओं में पैर सड़ांध की समस्या को कम किया जा सकता है।

समयसमय पर करें बाड़े की सफाई

अस्वच्छ बाड़ें में थनैला रोग होने की आशंका भी अधिक होती है। यदि बाड़े में पानी का जमाव हो रहा हो, तो ऐसी स्थिति में बाड़े की समयसमय पर सफाई करना चाहिए और बाड़े को शुष्क रखना चाहिए। इससे घातक रोगों के जनक कहे जाने वाले जीवाणुओं व परजीवियों को नियंत्रित किया जा सकता है। पशुपालकों को बरसात का मौसम शुरू होने से पहले ही गायभैंसों को गलघोंटू और लंगड़ी बुखार का टीका लगवा लेना चाहिए।

पशु बांधने के स्थान पर रखें इन पौधों के पत्ते

बरसात के मौसम में पशुओं में किलनी की समस्या भी बढ़ सकती है। यदि बाड़ें में अत्यधिक संख्या में किलनियां होगीं, तो  मवेशियों में सर्रा, थिलेरिया रोग, बबेसिओसिस, आदि का खतरा भी बना रहेगा। ऐसी स्थिति में यदि पशु को तेज बुखार और खून की कमी की शिकायत हो, तो उपचार के लिए तुरंत नजदीकी पशु चिकित्सालय ले जाना चाहिए। पशुओं के बाड़ों में तुलसी के पत्ते या लेमनग्रास रखने से परजीवी संक्रमण कम किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त पशुपालन परजीवीनाशक औषधि (बुटोक्स स्प्रे 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी, शरीर पर स्प्रे ) के प्रयोग से पशुओं को किलनी और मक्खियों से निजात दिला सकते हैं।

बरसात में खासकर बछडों को बाड़ें में ही सीमित रखना चाहिए और अन्य दिनों के मुकाबले दूध का थोड़ा ज्यादा सेवन करवाना चाहिए। इससे बछड़े के शरीर में पर्याप्त मात्रा में ऊष्मा उत्पन्न होती है। एक माह से अधिक उम्र के बछड़ों में अनुशंसित अंतराल पर कृमिहरण किया जाना चाहिए। बरसात में पेट के कीटों का संक्रमण तेजी से फैलने लगता है। इसी प्रकार भेड़बकरियों में भी कृमिहरण और उसके पश्चात पी.पी.आर. व फडकिया रोग का टीकाकरण करवाना महत्वपूर्ण है। भेड़ों में मानसून के दैरान ऊन की कटाई न करने की सलाह दी जाती है। इसके अतिरिक्त, बरसात के दिनों में पशुओं को बिजली के खंभों से बांधकर नहीं रखना चाहिए।

बारिश में पशुओं को क्या खिलायें

बरसात के मौसम में पशुओं को चारे के साथसाथ सूखा चारा भी दिया जाना चाहिए। हरी घास में बरसात के दौरान पानी की मात्रा अधिक होती हैं, जो केवल पशुओं का पेट भरने का काम करती है और अनुशंसित मात्रा में ऊर्जा प्रदान नहीं कर पाती है। यदि संभव हो, तो हरी घास को पशुओं को खिलाने से पहले धूप में सुखा लें। गाभिन पशु (छह माह से अधिक) को अतिरिक्त चारा और खनिज मिश्रिण खिलाएं। पशुओं के चारे में धीरेधीरे परिवर्तन करें। एकाएक परिवर्तन करने से पशु पेट फूलने (अफारा) और पोषणसंबंधी रोगों से ग्रसित हो सकते हैं।

मानसून में अत्यधिक हरे चारे के सेवन से पशु पतला गोबर करने लगते हैं, जो की एक सामान्य व्यवहार है। पशुपालकों को मानसून में चारे को फफूंद से बचाकर रखने की जरूरत होती है। वातावरण में अत्यधिक आद्रता होने की वजह से सूखे चारे में अक्सर फफूंदी लग जाती है। बरसात का मौसम शुरू होने से पहले ही सूखे चारे का पर्याप्त मात्रा में भंडारण कर लेना चाहिए। इसके लिए बरसात के पानी के स्तर से ऊपर किसी सुरक्षित स्थान का चयन किया जाना महत्वपूर्ण होता है।

किसान समयसमय पर लें पशु चिकित्सकों से परामर्श

पशुओं के शरीर के जख्मों और घावों का शीघ्र ही पशु चिकित्सक से उपचार करवाना चाहिए अन्यथा खुले घावों में कीट (मैगट) पड़ सकते हैं। इससे बेचैनी, उत्पादन में गिरावट, मांसपेशियों की गलन व अन्य गंभीर लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं।

पशुपालकों को बरसात के दिनों में पशु प्रबंधन के लिए जागरूकता कार्यक्रमों में भाग लेकर तथा पशुओं की देखभाल करने के लिए अपने निकटतम पशु चिकित्सक से परामर्श कर, पशुस्वस्थ्य प्रबंधन संबंधी महत्वपूर्ण जानकारियां समयसमय पर एकत्रित करते रहना चाहिए। साथ ही पशुओं के असामान्य व्यवहार पर भी पशु चिकित्सक की सलाह लेना उचित रहता है।

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