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अपनी फसलों को पाले एवं शीतलहर से बचाने के लिए किसान करें इस दवा का छिड़काव

Protection of crops from frost and cold wave

फसलों का पाले एवं शीतलहर से बचाने के उपाय

बीते कुछ दिनों से देश के कई राज्यों तेज ठंड के साथ ही शीतलहर का दौर चल रहा है जो आगे भी चार-पाँच दिनों तक जारी रह सकता है। तेज ठंड एवं शीतलहर से फसलों में पाला पड़ने की संभावना सबसे अधिक रहती है। इस मौसम में पाला लगने से फसलों को बहुत अधिक नुक़सान होता है। इसलिए इस समय कृषकों को सतर्क रहकर फसलों की सुरक्षा के उपाय अपनाने चाहिये। ऐसे में किसान फसलों को पाले एवं शीतलहर से होने वाले नुकसान से बचा सकें इसके लिए कृषि विभाग द्वारा किसान हित में एडवाइजरी जारी की गई है। 

इस कड़ी में सीकर, राजस्थान के संयुक्त निदेशक कृषि राम निवास पालीवाल ने बताया कि शीत लहर एवं पाले से सर्दी के मौसम में सभी फसलों को थोड़ा या ज्यादा नुकसान होता है। टमाटर, आलू, मिर्च, बैंगन आदि सब्जियों एवं पपीता के पौधों एवं मटर, चना, धनिया, सौंफ आदि फसलों में सबसे ज्यादा 80 से 90 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है। वहीं गेहूं तथा जौ में 10 से 20 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है।

पाले से फसलों को क्या-क्या नुकसान होता है?

संयुक्त निदेशक कृषि ने जानकारी देते हुए बताया कि पाले के कारण पौधों की कोशिकाओं में उपस्थित जल जमने से कोशिका भित्ति फट जाती है, जिससे पौधों की पत्तियां, कोंपलें, फूल एवं फल क्षतिग्रस्त हो जाते है। जिसके चलते पौधों की पत्तियां एवं फूल झुलसे हुए दिखाई देते है एवं बाद में झड़ जाते हैं। यहां तक कि अधपके फल सिकुड़ जाते है। उनमें झारियां पड़ जाती है एवं कलिया गिर जाती है। फलियों एवं बालियों में दाने नहीं बनते हैं एवं बन रहे दाने सिकुड़ जाते हैं। दाने कम भार के एवं पतले हो जाते है रबी फसलों में फूल आने एवं बालियां, फलियाँ आने व उनके विकसित होते समय पाला पड़ने की सर्वाधिक संभावनाएँ रहती है।

पाला पड़ने की संभावना कब रहती है?

कृषि निदेशक ने बताया कि पाला पड़ने के लक्षण सर्वप्रथम शाक आदि वनस्पतियों पर दिखाई देते है। सर्दी के दिनों में जिस रोज दोपहर से पहले ठंडी हवा चलती रहे एवं हवा का तापमान जमाव बिन्दु से नीचे गिर जाए। दोपहर बाद अचानक हवा चलना बन्द हो जाए तथा आसमान साफ रहे, या उस दिन आधी रात से ही हवा रूक जाये तो पाला पड़ने की संभावना अधिक रहती है। रात को विशेषकर तीसरे एवं चौथे प्रहर में पाला पड़ने की संभावना रहती है। साधारणतया तापमान चाहे कितना ही नीचे चला जाये, यदि शीत लहर हवा के रूप में चलती रहे तो कोई नुकसान नहीं होता है। परन्तु यदि इसी बीच हवा चलना रूक जाये तथा आसमान साफ हो तो पाला पड़ता है, जो फसलों के लिए नुकसानदायक है।

फसल में करें धुआँ

संयुक्त निदेशक कृषि पालिवाल ने बताया कि जिस रात पाला पड़ने की सम्भावना हो उस रात 12 से 2 बजे के आसपास खेत के उत्तरी पश्चिमी दिशा से आने वाली ठंडी हवा की दिशा में खेतों के किनारे पर बोई हुई फसल के आसपास मेड़ों पर रात्रि में कूड़ा कचरा या अन्य व्यर्थ घास फूल जला कर धुआँ करना चाहिये ताकि खेत में धुआँ आ जाये एवं वातावरण में गर्मी आ जाये। सुविधा के लिए मेड़ पर 10 से 20 फुट के अन्तर पर कूड़े करकट पर ढेर लगाकर धुआँ करें। धुआँ करने के लिए अन्य पदार्थों के साथ क्रूड आयॅल का भी प्रयोग कर सकते हैं। इस विधि से 4 डिग्री सेल्सियस तापक्रम आसानी से बढ़ाया जा सकता है।

फसलों की करें सिंचाई

पौधशालाओं के पौधों एवं सीमित क्षेत्र वाले उद्यानों, नगदी सब्जी वाली फसलों में भूमि के ताप को कम न होने देने के लिए फसलों को टाट, पॉलीथिन अथवा भूसे से ढक दें। वायुरोधी टाटियां, हवा आने वाली दिशा की तरफ यानि उत्तर पश्चिम की तरफ बांधें। जब पाला पड़ने की संभावना हो तब खेत में सिंचाई करनी चाहिये। नमीयुक्त जमीन में काफी देरी तक गर्मी रहती है तथा भूमि का तापक्रम एकदम कम नहीं होता है। इस प्रकार पर्याप्त नमी होने पर शीतलहर व पाले से नुकसान की सम्भावना कम रहती है। वैज्ञानिकों के अनुसार सर्दी में फसल में सिंचाई करने से 0.5 डिग्री से 2 डिग्री सेल्सियस तक तापमान बढ़ जाता है।

पाले से बचाने के लिए करें गंधक का छिड़काव

जिन दिनों पाला पड़ने की संभावना हों उन दिनों फसलों पर गंधक के तेजाब के 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिये। इस हेतु एक लीटर गंधक के तेजाब को 1000 लीटर पानी में घोलकर एक हेक्टयर क्षेत्र में प्लास्टिक के स्प्रेयर से छिड़कें। ध्यान रखें कि पौधों पर घोल की फुहार अच्छी तरह लगें। छिड़काव का असर दो सप्ताह तक रहता है। यदि इस अवधि के बाद भी शीत लहर व पाले की संभावना बनी रहे तो गंधक के तेजाब को 15-15 दिन के अन्तर से दोहराते रहें।

सरसों, गेहूं चना, आलू, मटर जैसी फसलों को पाले से बचाने में गंधक के तेजाब का छिड़काव करने से न केवल पाले से बचाव होता है बल्कि पौधों में लौह तत्व की जैविक एवं रसायनिक सक्रियता बढ़ जाती है जो पौधों में रोग रोधिता बढ़ाने में एवं फसल को जल्दी पकाने में सहायक होती है।

दीर्घकालिक उपाय के रूप में फसलों को बचाने के लिये खेत की उत्तरी-पश्चिमी मेड़ों पर तथा बीच-बीच में उचित स्थानों पर वायु अवरोधक पेड़ जैसे शहतूत, शीशम, बबूल, खेजड़ी अरडू एवं जामुन आदि लगा दिये जाये तो पाले और ठण्डी हवा के झोंको से फसल का बचाव हो सकता है।

4 COMMENTS

    • जी सर कर सकते हैं, इसके अतिरिक्त धुँआ करके या सिंचाई करके भी फसल को पाले से बचाया जा सकता है।

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