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सफेद मूसली की खेती

सफ़ेद मूसली की खेती

मिट्टी एवं जलवायु  

सफ़ेद मूसली की खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु वाले क्षेत्र उपयुक्त होते हैं। जहाँ वार्षिक वर्षा 800-1500 मि.मि.होती है । उपयुक्त जल निकास वाली हल्की रेतीली दोमट एवं लालमृदा।

बीजदर

1 हे. हेतु 2 लाख डिस्क की आवश्यकता होती है। 10 हजार पौधे लगते हैं। 10-20 ग्राम प्रति जड़।

औषधीय गुण

शरीर में आई हुई किसी तरह की कमजोरी को दूर करती है, किसी प्रकार की आयुर्वेदिकटॉनिक इसके बिना सम्पूर्ण नहीं होती है। इसके प्रयोग से मज्जा तन्तु में वृद्धि होती है। यह इतनी पौष्टिक एवं बलवर्धक होती है कि इसे जिन्सेंग जैसा बलवर्धक माना जाता है। माताओं का दूध बढ़ाने में एवं प्रसवोपरान्त होने वाली बीमारियों में फायदेमंद होती है। यह मधुमेह निवारण वाली दवाओं में प्रयुक्त होता है। 5-10 ग्राम प्रतिदिन दूध या पानी के साथ लेना फायदेमंद होता है।

प्रजातियाँ

ए.एस.एम. 1, एम.सी.बी. 405 क्लोरोफाइटम टयूवरोजम, क्लोरोफाइटम अरुन्डीशियम, क्लोरोफाइटम एटेनुएटम, क्लोरोफाइटम लक्ष्म एवं क्लोरोफाइटम वोरिविलिएनम इत्यादि।

लगाने का समय

मई-जून लगाने का सही समय है | सफेद मूसली एक कंद युक्त पौधा होता है, जिसकी अधिकतम ऊँचाई डेढ़ फीट तक होती है इसके कंद जिसे फिंगर्स भी कहते हैं लगभग 10-12 इंच तक होता है। वैसे तो सफेद मूसली की कई प्रजातियाँ पायी जाती है परन्तु व्यवसायिक रूप से क्लोरोफाइटम बोरिभिलियम व्यवसायिक खेती के लिए/कंद के लिए बहुत ही लाभप्रद है।

खाद एवं सिंचाई

इस फसल की बुआई जून-जुलाई माह के 1-2 सप्ताह में की जाती है, जिसका कारण इन महीनों में प्राकृतिक वर्षा होती है अत: सिंचाई की कोई आवश्यकता नहीं होती है। परन्तु वर्षा के उपरांत प्रत्येक 10 दिनों के अंतराल पर पानी देना उपयुक्त होता है। सिंचाई हल्की एवं छिड़काव विधि हो तो अति उत्तम है। किसी भी परिस्थिति में खेत में पानी रुकना नहीं चाहिए।

खाद के लिए 30 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर दें। रासायनिक खाद न डालें तो अच्छा है परन्तु कंद वाली फसलों के लिए हड्डी की खाद 60 किलो/हेक्टेयर उपयुक्त होती है। मिट्टी में सॉयल कंडीसनर (माइसिमिल) डालना लाभप्रद होता है। यह दवा हिन्दुस्तान एंटी बाएटीक कम्पनी बनाती है।

अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में एक सिंचाई।खुदाई दिसम्बर/जनवरी माह में। खुदाई के दो दिन पूर्व हल्की सिंचाई करनी चाहिए। सुविधा के लिए खेत में 10 मीटर लम्बे 1 मीटर चौड़े तथा 20 सें.मी. ऊँचे बेड लेते हैं। बेड से बेड की दूरी 50 सें.मी. रखते हैं। बेड के अंदर 30 सें.मी. की दूरी पर 10 मि. लम्बे एवं 20 सें.मी. ऊँचे रीज पर चिन्ह बनाते हैं। इस प्रकार 5-10 ग्राम वजन के क्राउन युक्त फिंगर्स 15-20 सें.मी. की दूरी पर लगा देते हैं। इस प्रकार प्रति एकड़ 4 क्विंटल या प्रति हेक्टेयर 10 क्विंटल फिग्रर्स/बीज की जरूरत पड़ती है। रोपने से पहले फिग्रर्स को दो मिनट के लिए बेवेस्टिन के घोल में रखते हैं। फिग्रर्स को तीन से चार इंच की गहराई में लगाना चाहिए।

उत्पादकता

बुआई के कुछ दिनों के बाद पौधा बढ़ने लगता है उसमें पत्ते, फूल एवं बीज आने लगते हैं एवं अक्टूबर-नवम्बर में पत्ते पीले होकर सूखकर झड़ जाते हैं एवं कंद अंदर रह जाता है। साधारणत: इसमें कोई बीमारी नहीं लगती है। कभी-कभी कैटरपीलर लग जाता है जो पत्तों को नुकसान पहुँचाता है। इस प्रकार 90-100 दिनों के अंदर पत्ते सुख जाते हैं परन्तु कंद को 3-4 महीना रोककर निकालते हैं जब कंद हल्के भूरे रंग के हो। हल्की सिंचाई कर एक-एक कंद निकालते हैं। प्रत्येक पौधों से विकसित कंदों की संख्या 10-12 होती है। इस प्रकार उपयोग किये गये प्लांटिंग मेटेरियल से 6-10 गुना पौदावार प्राप्त कर सकते हैं।

अनुमानित लाभ

प्रति एकड़ क्षेत्र में 80,000 पौधे मूसली के लगाये जाते हैं तो 70,000 अच्छे पौधे के रूप में तैयार होते हैं। एक पौधे में औसत 25-50 ग्राम कंद प्राप्त होता है। लगभग 18-20 क्विंटल/एकड़ तक कंद प्राप्त होते हैं एवं सूखकर लगभग 4 क्विंटल/एकड़ सूखी कंद प्राप्त होती है। अनुमानित 6-9 महीने के फसल से 1 से 1 ½ लाख रुपया नगद आमदनी हो सकती है, बशर्त सूखी कंद के अच्छे पैसे मिल जाएं।

  • अनुमानित खर्च प्रति एकड़ 1 ½ – 2 लाख
  • सूखी जड़ 1,000 रु. प्रति किलो के हिसाब से 4 क्विंटल
  • 1,000 x 400 किलो                                 4 लाख
  • शुद्ध फायदा प्रति एकड़ नौ महीनों में 1- 2 लाख

अन्य फसलों की जानकारी के लिए क्लिक करें 

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