Home विशेषज्ञ सलाह उच्च पैदावार देने वाली चने की दो नई किस्मों का हुआ विमोचन

उच्च पैदावार देने वाली चने की दो नई किस्मों का हुआ विमोचन

chane ki viksit kisme 2019-20

चने की नई विकसित किस्में वर्ष 2019-20

भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् की शाखा अखिल भारतीय समन्वित चना अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, राँची (झारखंड) में आयोजित अपने 24वें वार्षिक समूह बैठक में जीनोमिक्स की सहायता से विकसित चना की दो बेहतर क़िस्मों – पूसा चिकपी-10216और सुपर एनेगरी-1 को जारी किया है।

प्रजनन में इस तरह के जीनोमिक्स हस्तक्षेप से जलवायु परिवर्तन से प्रेरित विभिन्न प्रकार के तनावों से पार पाते हुए चना जैसे दलहनी फसलों की उत्पादकता में वांछित वृद्धि होगी। चना में नई उच्च पैदावार देने वाली किस्मों के विकास पर ध्यान केंद्रित करने से देश में दलहन उत्पादन और उत्पादकता में आवश्यक बढ़ोतरी की उम्मीद है। साथ ही इससे चने की खेती करने वाले किसानों को अधिक लाभ होगा | किसान समाधान आपके लिए इन दोनों किस्मों की जानकारी आपके लिए लेकर आया है |

चने की विकसित किस्म “पूसा चिकपी-10216”

  • पूसा चिकपी-10216’ चना की एक सूखा सहिष्णु किस्म है, जिसे डॉ. भारद्वाज चेल्लापिला, भाकृअनुप-भाकृअनुसं, नई दिल्ली के नेतृत्व में चिकपी ब्रीडिंग एंड मोलेकुलर ब्रीडिंग टीम द्वारा डॉ. वार्ष्णेय के. राजीव, इक्रिसैट के नेतृत्व वाली जीनोमिक्स टीम के सहयोग से विकसित किया गया है।
  • इस किस्म को आणविक मार्करों की मदद से पूसा-372 की आनुवांशिक पृष्ठभूमि में आनुवांशिक ‘क्यूटीएल-हॉटस्पॉट’ के बाद विकसित किया गया है।
  • पूसा-372’ देश के मध्य क्षेत्र, उत्तर-पूर्व मैदानी क्षेत्र और उत्तर-पश्चिम मैदानी क्षेत्र में उगाई जाने वाली चना की एक प्रमुख किस्म है, जिसका उपयोग लंबे समय से देर से बोई जाने वाली स्थितियों के लिए राष्ट्रीय परीक्षणों में मापक (नियंत्रण किस्म) के रूप में किया जाता रहा है। इस किस्म का विकास वर्ष 1993 में भाकृअनुप-भाकृअनुसं, नई दिल्ली द्वारा किया गया था। हालाँकि इसका उत्पादन कम हो गया था।
  • इसलिए इसको प्रतिस्थापित करने के लिए वर्ष 2014 में चना के आईसीसी 4958  किस्म में ‘सूखा सहिष्णुता’ के लिए पहचाने गए जीनयुक्त ‘क्यूटीएल-हॉटस्पॉट’ को आणविक प्रजनन विधि से पूसा-372 के आनुवंशिक पृष्ठभूमि में डालकर विकसित किया गया है।
  • नई किस्म की औसत पैदावार 1447 किग्रा प्रति हेक्टेयर है। भारत के मध्य क्षेत्र में नमी की कम उपलब्धता की स्थिति में यह किस्म पूसा-372 से लगभग 11.9% अधिक पैदावार देती है।
  • इस किस्म के पकने की औसत अवधि 110 दिन है। दानों का रंग उत्कृष्ट होने के साथ-साथ इसके 100 बीजों का वजन लगभग 22.2 ग्राम होता है।
  • चना के प्रमुख रोगों यथा फुसैरियम विल्ट, सूखी जड़ सड़ांध और स्टंट के लिए यह किस्म मध्यम रूप से प्रतिरोधी है तथा इसे मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में खेती के लिए चिन्हित किया गया है।

चने की दूसरी विकसित किस्म “सुपर एनेगरी-1”

  • सुपर एनेगरी-1’ किस्म को कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, रायचूर (कर्नाटक) और इक्रिसैट के सहयोग से विकसित किया गया है।
  • इस किस्म को चना के डब्ल्यूआर-315 किस्म में फुसैरियम विल्ट रोग के लिए पहचाने गए प्रतिरोधी जीनों को आणविक प्रजनन विधि से कर्नाटक राज्य की प्रमुख चना किस्म एनेगरी-1 की आनुवांशिक पृष्ठभूमि में डालकर विकसित किया गया है।
  • सुपर एनेगरी-1’ की औसत पैदावार 1898 किग्रा प्रति हेक्टेयर है और यह एनेगरी-1 से लगभग 7% अधिक पैदावार देती है। साथ ही, दक्षिण भारत में उपज कम करने वाले कारक फुसैरियम विल्ट रोग के लिए बेहद प्रतिरोधी है।
  • यह किस्म औसतन 95 से 110 दिनों में पककर तैयार हो जाती है और इसके 100 बीजों का वजन लगभग 18 से 20 ग्राम तक होता है।
  • इस किस्म को आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात में खेती के लिए चिन्हित किया गया है। 

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