पराली जलने से होने वाला वायु प्रदुषण
पिछले कुछ वर्षों में सर्दी के दिनों में दिल्ली-एनसीआर में जब वायु प्रदुषण बहुत अधिक हो जाता है तब इसका पूरा जिम्मा किसानों के द्वारा जलाई जाने वाली पराली पर डाल दिया जाता है | इसको लेकर किसानों को पराली जलाने को लेकर सख्त कानून भी बनाये गए हैं | जिसके तहत पराली जलाने वाले किसानों को आर्थिक दंड के साथ कारवास तक की सजा का प्रावधान किया गया है | इसके साथ ही पराली जलाते हुए पकडे जाने पर किसानो को सरकारी योजनाओं से वंचित भी किया जा रहा है | वहीँ हाल में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री श्री प्रकाश जावडेकर ने कहा कि दिल्ली में 95 प्रतिशत वायु प्रदुषण स्थानीय कारणों से है |
पराली जलने से केवल 4 प्रतिशत वायु प्रदूषण
श्री जावडेकर ने कहा कि वर्त्तमान में शहर में लगभग 95 प्रतिशत प्रदूषण धूल, निर्माण तथा जैव ईंधन जलने जैसे स्थानीय कारकों की वजह से है और पराली जलने का हिस्सा लगभग 4 प्रतिशत है। बेहतर वायु गुणवत्ता सुनिश्चित करने के प्रयासों के तहत, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की 50 टीमें, दिल्ली-एनसीआर के शहरों में व्यापक स्तर पर क्षेत्र का दौरा करने के लिए तैनात की गयी हैं।
शहर में 95% वायु प्रदूषण धूल, निर्माण और बायोमास जलने जैसे स्थानीय कारकों के कारण है। सभी अपराधियों को दंडित किया जाएगा।
— Prakash Javadekar (@PrakashJavdekar) October 15, 2020
प्रदूषण से जंग हम मिलकर लड़ेंगे एवं जीतेंगे।#IndiaFightsPollution@CPCB_OFFICIAL @moefcc @DDNewslive @PIB_India
‘समीर’ ऐप का उपयोग करते हुए ये टीमें कचरा फैलाने वाले स्रोतों की रिपोर्ट करेंगी, जैसे उचित नियंत्रण उपायों के बिना प्रमुख निर्माण गतिविधियां, सड़कों के साथ और खुले भूखंडों में कचरा और निर्माण कचरे को फेंक देना, कच्ची सड़कें, कूड़े / औद्योगिक कचरे के खुले में जलाना आदि। टीमें दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के शहरों का दौरा करेंगी – उत्तर प्रदेश में नोएडा, गाजियाबाद, मेरठ; हरियाणा में गुरुग्राम, फरीदाबाद, बल्लभगढ़, झज्जर, पानीपत, सोनीपत और राजस्थान में भिवाड़ी, अलवर, भरतपुर। ये टीमें विशेष रूप से हॉटस्पॉट क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करेंगे जहां समस्या गंभीर हो जाती है।
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