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गाजर घास है एक घातक खरपतवार, इस तरह किया जा सकता है इसे खत्म

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खरपतवार से न केवल विभिन्न फसलों के उत्पादन में कमी आती है बल्कि इससे फसलों की लागत में भी काफी वृद्धि होती है। खरपतवार में गाजर घास एक बहुत ही घातक खरपतवार है। इससे न केवल वनस्पतियों पर बल्कि पशु एवं मानव स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। जिसको देखते हुए पंडित शिव कुमार शास्त्री कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र राजनांदगांव में गाजर घास जागरूकता सप्ताह का शुभारंभ किया गया।

महाविद्यालय द्वारा शुरू किया गया यह जागरूकता सप्ताह 16 अगस्त से 22 अगस्त 2023 चलाया जाएगा। महाविद्यालय द्वारा अभी तक कुल 17 गाजर घास सप्ताह चलाए जा चुके हैं। इस वर्ष अगस्त माह में शुरू होने वाला यह जागरूकता सप्ताह 18 वां है। इस अवसर पर महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. जया लक्ष्मी गांगुली द्वारा गाजर घास एवं उनके समन्वित प्रबंधन के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी।

गाजर घास खरपतवार से क्या नुकसान होते हैं?

महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. जया लक्ष्मी गांगुली ने जानकारी देते हुए बताया कि गाजर घास एक घातक खरपतवार है। पानी मिलने पर गाजर घास वर्ष भर फलफूल सकती है परंतु वर्षा ऋतु में इसका अधिक अंकुरण होने पर यह एक भीषण खरपतवार का रूप ले लेती है। यह मुख्यत: खाली स्थानों, अनुपयोगी भूमियों, औद्योगिक क्षेत्रों, बगीचों, पार्कों, स्कूलों, रहवासी क्षेत्रों, सड़कों तथा रेलवे लाइन के किनारों आदि पर बहुतायत में पायी जाती है।

पिछले कुछ वर्षों से इसका प्रकोप सभी प्रकार की खाद्यान्न फसलों, सब्जियों एवं उद्यानों में भी बढ़ता जा रहा है। इसके कारण फसलों की उत्पादकता भी प्रभावित हो रही है। गाजर घास का पौधा 3-4 महीने में अपना जीवन चक्र पूरा कर लेता है तथा एक वर्ष में इसकी 3-4 पीढिय़ां पूरी हो जाती है। गाजर घास से मनुष्यों में त्वचा संबंधी रोग, अस्थमा, एलर्जी आदि जैसी बीमारियां हो जाती है। पशुओं के लिए भी यह खरपतवार अत्यधिक विषाक्त होता है। गाजर घास के तेजी से फैलने के कारण अन्य उपयोगी वनस्पतियां खत्म होने लगती है। जैव विविधता के लिए गाजर घास एक बहुत बड़ा खतरा बनते जा रहा है।

इस तरह किया जा सकता है गाजर घास को खत्म

गाजर घास जागरूकता सप्ताह प्रारंभ करने के दौरान महाविद्यालय में विद्यार्थियों को इसके बारे में जागरूक करने हेतु गाजर घास का भारत में इतिहास, फैलाव, जीवन चक्र, मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर प्रभाव को बताते हुए कृषिगत, यांत्रिकी एवं जैविक विधि से गाजर घास का प्रबंधन करने की जानकारी दी गई। प्रबंधन के अंतर्गत जैविक नियंत्रण अंतर्गत जाइगोग्राम बाइकोलोराटा कीट के जीवनचक्र तथा उसके संवर्धन के बारे में विस्तार से जानकारी दी। 

इस अवसर पर बताया गया कि जुलाईअगस्त माह में गाजर घास (पार्थेनियम) संक्रमित क्षेत्रों में जैवनियंत्रक जाइगोग्रामा बाइकोलोराटा को छोडऩा चाहिए। यह कीट अपनी संख्या बढ़ाते हुए एक स्थान की गाजर घास खत्म करते हुए पास वाले क्षेत्रों की गाजर घास पर आकर्षित होकर स्वत: ही जाकर अधिक तेजी से नष्ट करने लग जाते हैं। एक बड़े क्षेत्र में कई जगह निर्धारित कर अलगअलग बीटल छोड़ेगें तो उनका प्रसार तेजी से होगा और गाजर घास अधिक तेजी से नष्ट होगी। जाइगोग्रामा बाइकोलोराटा कीट का संवर्धन महाविद्यालय के जैवनियंत्रक प्रयोग शाला में किया जा रहा है।

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