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चने की फसल को दीमक सहित अन्य कीट रोगों से बचने के लिए किसान बुआई के समय करें यह काम

chana buaai ke liye kisan salah

चने की बुआई के लिए किसानों को सलाह

चना रबी सीजन की मुख्य दलहन फसल है, देश में विश्व की 67 प्रतिशत चने की पैदावार होती है। भारत में चने का सर्वाधिक उत्पादन मध्यप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र तथा उत्तर प्रदेश में होता है। ऐसे में किसान चने की कम लागत में अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए वैज्ञानिक तरीके से खेती कर अधिक लाभ कमा सकते हैं। इस कड़ी में अजमेर स्थित ग्राहृय परीक्षण केन्द्र तबीजी फार्म के उपनिदेशक ने चने की बुआई के समय को देखते हुए किसानों के लिए सलाह जारी की है।

तबीजी फार्म के उपनिदेशक कृषि श्री मनोज कुमार शर्मा ने बताया कि चने के लिए लवण व क्षार रहित, जल निकास वाली उपजाऊ भूमि उपयुक्त रहती हैं। चने की बुवाई का उपयुक्त समय मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर हैं। उन्होंने बताया कि चने की फसल को कीट एवं रोगों से बचाकर उत्पादन एवं उत्पादकता में बढ़ोतरी की जा सकती है। इसके लिए किसानों को बीजोपचार एवं रोग प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करना चाहिए।

किसान बुआई से पहले करें भूमि का उपचार

कार्यालय के कृषि अनुसंधान अधिकारी (पौध व्याधि) डॉ. जितेन्द्र शर्मा ने बताया कि चने की फसल में जड़ गलन एवं सूखा जड़ गलन एवं उकठा जैसे हानिकारक रोगों का प्रकोप होता हैं। इन रोगों से बचाव के लिए ट्राईकोडर्मा से भूमि उपचार करना चाहिए।  भूमि उपचार करने के लिए बुवाई से पूर्व 10 किलो ट्राईकोडर्मा को 200 किलो आद्रता युक्त गोबर की खाद में मिलकर 10-15 दिन छाया में रखें। इस मिश्रण को बुवाई के समय प्रति हेक्टेयर की दर से पलेवा करते समय मिट्टी में मिला दें साथ ही रोग प्रति रोधी किस्मों का उपयोग करें। इसके साथ ही बीजों को 1 ग्राम कार्बेण्डाजिम एवं थीरम 2.5 ग्राम या ट्राईकोडर्मा 10 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर बुआई करें।

दीमक सहित अन्य कीट से बचाने के लिए क्या करें?

कार्यालय के सहायक कृषि अनुसंधान अधिकारी (कीट) डॉ. दिनेश स्वामी ने बताया कि चने की फसल में दीमक, कटवर्म एवं वायर वर्म की रोकथाम के लिए क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से आखिरी जुताई से पूर्व छिड़काव करें। चने की फसल में दीमक से बचाव के लिए बीजों को फिप्रोनिल 5 एससी 10 मिली या इमीडाक्लोप्रिड 600 एफएस का 5 मिली प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार कर बुवाई करें। किसान बीजोपचार करते समय पूरे कपड़े, मास्क व दस्तानों का उपयोग अवश्य करें।

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