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किसान इस तरह बढ़ाएँ बाजरे की पैदावार

bajra farming

बाजरा उत्पादन

पोषक युक्त तथा मोटे अनाज के रूप में बाजरा एक प्रमुख फसल है, बाजरे की खेती देश में लगभग 9.5 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है | जिससे देश में प्रति वर्ष लगभग 9.8 मिलियन टन बाजरे का उत्पादन होता है। दुनिया में बाजरे की खेती का 42 प्रतिशत हिस्सा भारत में ही पैदा होता है| राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक आदि राज्यों में इसकी खेती प्रमुखता से की जाती है। बाजरे की खेती पर कई कारकों का प्रभाव पड़ता है, जिसे समझकर किसान इसकी पैदावार बढ़ा सकते हैं। 

इन कारणों से होती है बाजरे कि कम पैदावार

  • बाजरा भारत में उन क्षेत्रों में उगाया जाता है, जहाँ जमीन मुख्यत: रेतीली तथा बलुई रेतीली है। इस प्रकार की भूमि में सामान्यत: आर्गेनिक कार्बन, नाईट्रोजन, फास्फोरस निम्न स्तर में होता है | इससे पानी भी बहुत कम समय तक संरक्षित रहता है।
  • इसकी खेती मुख्यत: मानसून पर आधारित है और यह कभी जून के प्रथम सप्ताह में अथवा कभी यह अगस्त के प्रथम सप्ताह तक होती है। इसकी कुल मात्रा मृदा वाष्पीकरण की क्षमता से कम होती है, जिससे बाजरे का उत्पादन बहुत प्रभावित होता है।
  • जिस वर्ष वर्षा जल्दी होती है, उस वर्ष जल्दी में किसानों को प्राय: उच्च कोटि का बीज नहीं मिल पाता है। किसानों के पास जो भी बीज घर में होता है, उसी की बिजाई कर देते है जिससे पैदावार पर बहुत प्रभाव पड़ता है |
  • ज्यादातर बीज (90 प्रतिशत से भी ज्यादा) निजी कम्पनियों द्वारा बेचा जाता है। इस प्रकार के बीज आमतौर पर सिंचित क्षेत्रों एवं अच्छी जमीन के लिए उपयुक्त होते हैं, लेकिन वर्षा आधारित क्षेत्रों के लिए ठीक नहीं होते हैं |
  • सही तरीका एवं उचित मात्रा में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग नहीं करना भी बाजरे की कम पैदावार के कारण है। आमतौर पर किसान यह सोचते हैं कि बाजरे को केवल नाट्रोजन की ही आवश्यकता पड़ती है, लेकिन यह एक गलत धारणा है | 

किसान इस तरह बढ़ा सकते हैं बाजरे की पैदावार

गर्मी के मौसम के दौरान 1-2 जुताई एवं 3-4 वर्ष में एक बार गहरी जुताई आवश्यक रूप से करनी चाहिए। यह रोगों को रोकने एवं नमी के संरक्षण में बहुत लाभदायक होती है ।वर्षा आधारित/ बारानी क्षेत्रों में 70–75 दिनों में पकने वाली किस्मों को ही बोना चाहिए। जैसे कि एचएचबी-67, एचएचबी-60, आरएचबी-30, आरएचबी-154 एवं राज. – 171 आदि। जहाँ पर 2–3 सिंचाई करने का पानी उपलब्ध हो, वहाँ पर 80 दिनों से ज्यादा तक पकने वाली सहकारी या निजी क्षेत्रों द्वारा विकसित किस्मों को भी बोया जा सकता है |

इस तरह करें बाजरे की बुआई

बाजरे की बुआई के लिए सही मात्रा में सिफारिश के अनुसार 3–5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज दर का प्रयोग करना चाहिए, जिससे कि बारानी अवस्था में 60–65 हजार पौधे प्रति एकड़ एवं 75–80 हजार पौधे सिंचित क्षेत्रों में प्राप्त हो सके। रोगों एवं कीटों की रोकथाम के लिए बीजों का बुआई से पहले उपचार करना चाहिए। इसके अलावा बीजों का जीवाणु खाद (एजोस्पिरिलम व फास्फेट घुलनशील बैक्टरिया) द्वारा भी बीजोपचार करना चाहिए।

जुलाई का पहला पखवाड़ा इसकी बिजाई का सही समय होता है। 10 जून के बाद 50–60 मि.मी. वर्षा होने पर भी बाजरा बोया जा सकता है। 15 जुलाई से देरी होने के बाद इसकी उपज में कमी होती है। ऐसी परिस्थितियों में नर्सरी विधि द्वारा भी बिजाई की जा सकती है, जिससे देरी से की गई बिजाई की अपेक्षा काफी अच्छी उपज प्राप्त होती है |

इस तरह करें खरपतवारों का नियंत्रण

निराई–गुडाई के लिए बिजाई के 15–30 दिनों बाद तक का समय उपयुक्त होता है। इससे खरपतवार नियंत्रण तो होता ही है, भूमि में नमी संरक्षण के लिए भी यह बहुत अच्छा उपाय है। इसके अलावा इससे भूमि में पौधों की जड़ों तक हवा का आवागमन भी हो जाता है। खरपतवारनाशी के रूप में बाजरे में एट्राजिन (50 डब्ल्यूपी) 400 ग्राम प्रति एकड़ की दर से बिजाई के तुरंत बाद छिड़काव करना चाहिए। बिजाई के 20 दिनों बाद, जहाँ कम पौधे हैं, वहाँ खाली जगह भरनी चाहिए एवं जहाँ सघन पौधे हैं, वहाँ विरलन करके प्रति एकड़ की दर से वांछित पौधों की संख्या प्राप्त करनी चाहिए।

बाजरे में कितनी खाद डालें ?

बिजाई के समय पर ही आधी मात्रा नाईट्रोजन एवं पूरी मात्रा फास्फोरस (40 किलोग्राम नाईट्रोजन + 20 किलोग्राम फास्फोरस बारानी क्षेत्रों तथा 125 किलोग्राम नाईट्रोजन + 60 किलोग्राम फास्फोरस सिंचित क्षेत्रों के लिए) की मात्रा मिट्टी में डाल दें तथा शेष नाईट्रोजन की मात्रा दो भागों में बिजाई के 20 दिनों बाद एवं 40 दिनों बाद प्रयोग करें |

जहाँ सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध है, वहाँ पर फुटाव व फूल बनते समय एवं बीज की दुधिया अवस्था में सिंचाई बहुत आवश्यक है। जो क्षेत्र वर्षा आधारित है, वहाँ नमी को संरक्षित करने के विभिन्न उपायों को अपनाना चाहिए। बारानी क्षेत्रों में बाजरे के साथ ग्वार, मूंग, उड़द एवं लोबिया को अंतरवर्तीय फसल के रूप में 2:1 अथवा 6:3 के अनुपात में उगाया जा सकता है। जिसमें किसानों को 2500–3000 रूपये प्रति एकड़ अलग से लाभ मिल सकता है |

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