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इस वजह से कपास की फसल में हुआ गुलाबी सुंडी का प्रकोप, वैज्ञानिकों ने बचाव के लिए दिए यह सुझाव

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कपास की फसल में गुलाबी सुंडी से नुकसान पर आयोजित की गई कार्यशाला

यह वर्ष कपास की खेती करने वाले ज्यादातर किसानों के लिए अच्छा नहीं रहा। गुलाबी सुंडी, अधिक बारिश आदि कारणों से कपास की फसल को क़ाफ़ी नुकसान हुआ है। बीटी कपास फसल में गुलाबी सुण्ड़ी के प्रकोप के प्रबंधन के लिए सोमवार 18 दिसंबर को राजस्थान के कृषि आयुक्तालय में कृषि एवं उद्यानिकी शासन सचिव डॉ. पृथ्वी की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।

कार्यशाला में खरीफ-2023 में श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ जिलों में बीटी कपास में गुलाबी सुण्डी के प्रकोप से हुए नुकसान के कारणों एवं विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई। साथ ही गुलाबी सुण्डी के जीवन चक्र, उसके द्वारा किये गये आर्थिक नुकसान स्तर के प्रकोप आदि पर भी विस्तृत रूप से विचार-विमर्श किया गया।

इस कारण हुआ गुलाबी सुण्डी का प्रकोप

बैठक में डॉ. पृथ्वी ने बताया कि बीटी कपास में खरीफ-2023 के दौरान गुलाबी सुण्डी का प्रकोप श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ जिले में होने का प्रमुख कारण पिछले वर्ष की छट्टियों (बन सठियों) के अवशेष खेत में पड़े रहने के कारण उनमें उपस्थित गुलाबी सुण्डी कीट के प्यूपा से प्रथम संक्रमण शुरू हुआ, जिससे फसल संक्रमित हुई।

बीटी कपास की बुवाई अप्रैल महीने के प्रथम सप्ताह से लेकर 10 जून तक लंबी अवधि में किये जाने के कारण गुलाबी सुण्डी के जीवन चक्र के लिए अनुकूल फसल उपलब्ध रहने से टिण्डों में प्रकोप हुआ है। मई, जून व जुलाई में सामान्य से अधिक वर्षा व कम तापमान के कारण कीट को अनुकूल वातावरण मिलने से कीट का प्रकोप अत्यधिक हुआ। सितम्बर माह में हुई वर्षा के बाद टिण्डा गलन भी नुकसान का मुख्य कारण रहा।

इस तरह बचाया जा सकता है कपास की फसल को नुकसान से

बैठक में बीटी कपास की फसल को नुकसान से बचाने के लिए एडीजी सीड्स व अन्य वैज्ञानिकों द्वारा कीट प्रकोप से बचाव के लिए कुछ उपाय बताये गए। जो इस प्रकार है:-

  1. किसान विभागीय सिफारिश के अनुसार ही उपयुक्त समय पर फसल की बुवाई करें।
  2. समय पर कीट के प्रकोप एवं उनके नियंत्रण के लिए फैरोमेन ट्रेप लगाये जाए।
  3. कम उंचाई वाली व कम अवधि में पकने वाली किस्मों को प्राथमिकता दी जाए।
  4. केन्द्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, सिरसा, हरियाणा द्वारा जारी किये गये समय-सारणी अनुसार फसल 45-60 दिन की होने पर नीम आधारित कीटनाशक का छिड़काव करें।
  5. फसल 60-120 दिन की होने पर सिंथेटिक पॉयरेथ्राट्रड्स का छिड़काव नही करते हुए सिफारिश अनुसार ही अन्य कीटनाशियों का छिड़काव करें।
  6. फसल बुवाई से पूर्व ही अभियान चलाकर कृषकों को सलाह दी जाए कि खेत पर रखी हुई छट्टियों को झाड़कर अधपके टिण्ड़ों को इकट्ठा कर नष्ट कर दें तथा छट्टियों को खेत से दूर सुरक्षित स्थान पर भण्डारित करें।
  7. जिनिंग मिलों में कॉटन की जिनिंग के उपरांत अवशेष सामग्री को नष्ट किया जाए तथा कपास के बिनोला को ढक कर रखा जाए, ताकि उसमें उपस्थित प्यूपा से उत्पन्न कीट का प्रसार नही हो सके।

कीट प्रबंधन हेतु किया जाए प्रचार-प्रसार

बैठक में कृषि आयुक्त श्री कन्हैया लाल स्वामी ने उपस्थित सभी बीज उत्पादक कंपनियों के प्रतिनिधियों को सामाजिक सरोकार के तहत कीट की मॉनिटरिंग के लिए कृषकों के खेतों पर फेरोमैन ट्रेप लगाने व कीट प्रबंधन हेतु किये जाने वाले प्रचार प्रसार में भागीदारी करने का अनुरोध किया। साथ ही किसानों को जागरूक करने की कार्य योजना तैयार करने हेतु निर्देशित किया गया।

3 COMMENTS

  1. बिलकुल गलत बात है
    अगर गुलाबी सुंडी का प्रकोप नरमे कि लकड़ियों के अवशेष के कारण उत्पन्न हुआ है तो बंद पैकिंग बीज के अंदर गुलाबी सुंडी पैदा कैसे हुई
    वैज्ञानिक और पेस्टिसाइड और सरकार सबकी मिली भगत है नरम उत्पन्न करने वाली कंपनियों को पेस्टिसाइड ने बहुत अधिक मात्रा में पैसे थोपे हैं जिस कारण चाहे जिन चाहे कुछ और कमी के कारण बीज सही तरीके से तैयार नहीं किया और बाजार में उतार दिया गया सब कारण बीज का ही है ना मौसम का है ना कुछ और लड़कियों का अवशेष तो पीछे भी रहता था
    अब अंत में सबसे ज्यादा नुकसान वैज्ञानिकों को हुआ ही है
    प्रत्येक उद्योगपति और कंपनी और सरकार सब किसान से ही पल रहे हैं
    फिर भी किसान ही शोषण कुछ सोचो 9991359099

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