Home विशेषज्ञ सलाह रेशम उत्पादन के लिए शहतूत की कृषि

रेशम उत्पादन के लिए शहतूत की कृषि

शहतूत की खेती

परिचय

शहतूत का वानस्पतिक नाम मोरस अल्बा है एवं स्थानीय लोग इसे मलबरी के नाम से जानते हैं यह मोरेसी परिवार का सदस्य है इसका मुख्यतः उपयोग कृषि यंत्र, खेल सामग्री,फर्निचर, बनाने मे किया जाता है। रेशम के कीडे पालने तथा फलो के लिए भी इसकी खेती की जाती है। शाखाओं से मजबूत रेशा प्राप्त होता है और उनसे टोकरियां बनाई जाती है। जलावन की लकडी तथा चारा के रूप में भी इस्तेमाल होता है।

प्राप्ति स्थान

चीन का निसर्गज वृक्ष है। यह पाकिस्तान, अफगनिस्तान तथा भारत के मैदानों से लेकर हिमालय में काफी उँचाई तक पाया जाता है। भारत में जम्मू कश्मीर, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडू, पश्चिम बंगाल, केरल, आदि क्षेत्रों में भी पाया जाता है।

जलवायु

अधिकतम तापमान 43°से° – 48° से° तथा न्युनतम् तापमान 0°°, सामान्य वर्षा- 1200 मी मी से 2000 मी. मी.। अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में तथा सिचाई के साथ कम वर्षा वाले क्षेत्र में पाई जाती है।

मिट्टी 

सभी प्रकार के मिट्टी में उगाई जाती है। जलोढ या दोमट मिट्टी में अच्छी वृद्धि होती है। pH – 6.0 से 7.5 स्थलाकृति main में यह समुद्र तल से 1200 मी. की उचाई तक पाई जाती है।

आकारिकी

मध्य्म आकार का पर्णपाती वृक्ष है। सामान्यत: 9-12 मी. लम्बाई तथा 50 सेमी. मोटाई होता है। इसकी छाल धूसर सी भूरी होती है।

ऋतु जैविकी    

शीत ऋतु में निष्पत्र रहता है। नवम्बर से दिस्म्बर में पत्ते गिरते है। नये पत्ते मार्च- अपैल में आते हैं। फुल मार्च – अपैल में आते है। फल अपैल – जून में पकते है।

वनोयोग्य लक्षण 

छाया में भी इस वृक्ष का विकास होता है। इसमें स्यूण्प्ररोहण अच्छा होता है तथा स्कंधकर्त्तन में भी टिक जाता है। मध्यम तुषार सहिष्णु है लेकिन सुखा नहीं सह सकता। आग तथा जानवरों से क्षति पहुँचता है।

पौधशाला प्रबन्धन

बीज का वजन – 430 से 460/ ग्राम। अकुंरण – 30%, बीजोपचार से अंकुरण क्षमता बढती है। बीज की बुआई मई- जून में 0 3.5 ग्राम/ वर्ग. मी2 की दर से की जाती है . एक सप्ताह में अंकुरण हो जाता है। मूळ्स्थान – 1-2 साल पूराने पौधे में किया जाता है।

मिट्टी पलटना  

प्रतिरोपण या मुलस्थन के लिए गड्ढा किया जाता है। सुखे इलाके में सिचाईं करना आवश्यक होता है।

रोपण तकनीक  

जुलाई – अगस्त में मुलस्थन लगाया जाता है। 15-30 से. मी. लम्बे पौध को लगाया जाता है। गड्ढे आकार – 30 सेमी.3 । निकौनी पौध के आसपास खरपतवार नष्ट् कर देना चाहिए। समय- समय पर डालियाँ काट देनी चाहिए तथा उत्तम वृद्धि के लिए दूरियाँ बनाये रखना चाहिए।

खाद एवं उर्वरक 

10-15 टन्/ हैक्टर सडी गोबर की खाद् मिट्टी में मिलाया जाता है। सिचाई वाले क्षेत्र में 1500 किलो बदाम खल्ली तथा 690 किलो एलूमिनियम सल्फेट प्रति हैक्टर मिलाया जाता है।

कीट, रोग तथा जानवर   

कारबाराइल, इंडोसलकान, पाईथेरम आदि के छिडकाव से डिफोलिएटर नियंत्रन होता है। सल्फर धूल 15 किलो/ हेक्टर छिडकाव से पत्ते पर मिलडूई तथा बोरेक्स मिश्रित के छिडकाव से पत्ते पर धब्बों का नियंत्रण होता है।

उपयोग

कृषि यंत्र, खेल सामग्री,फर्निचर, बनाने मे काम आता है। रेशम के कीडे पालने तथा फलो के लिए भी इसकी खेती की जाती है। शाखाओं से मजबूत रेशा प्राप्त होता है और उनसे टोकरियां बनाई जाती है। जलावन की लकडी तथा चारा के रूप में भी इस्तेमाल होता है।

वृद्धि तथा उपज

14 साल में औसत वार्षिक बढत् 11मी³/ हे0/ वर्ष।

सिंचाई 

आवश्यकतानुसार दी जानी चाहिये।

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