back to top
मंगलवार, अप्रैल 16, 2024
होमकिसान चिंतनक्या सच में फसलों के दाम बढ़ाने से किसानों के अच्छे दिन...

क्या सच में फसलों के दाम बढ़ाने से किसानों के अच्छे दिन आ जाएंगे

क्या सच में फसलों के दाम बढ़ाने से किसानों के अच्छे दिन आ जाएंगे

फसलों के दाम बढ़ाने को लेकर किसान आन्दोलन कर रहे हैं परन्तु क्या किसानों की समस्या का समाधान सिर्फ दाम बढ़ाने में हैं,  इस बात को समझना जरुरी है | असल बात तो यह है की अभी जो न्यूनतम समर्थन मूल्य सरकार जारी करती है उस पर सरकार सभी किसानों से फसल नहीं खरीदती | इस कारण बहुत से किसानों को उचित दाम नहीं मील  पाते हैं |

अब इस बात पर ध्यान देते हैं की क्या सरकार जो न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी करती है उस पर किसानों से कितनी फसल खरीदती है | पहले यह जानना जरुरी है की सरकार पुरे देश के किसानों के लिए सिर्फ 23 फसलों का ही न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करती है | 23 फसलों के अलावा सभी फसल  बाजार के ऊपर छोड़ देती है | जिससे व्यापारी संगठित होकर फसलों के दाम तय करते है | जिससे किसानों की लागत भी नहीं मिल पाती है | इसके बाद भी उन सभी 23 फसलों के बारे मे जानते हैं की सरकारी खरीदी में क्या योगदान है या फिर उनकों न्यूनतम समर्थन मूल्य प्राप्त हुआ है |

आकड़े क्या कहते हैं-

वर्ष 2017 के आकड़ों पर ध्यान देते हैं तो समझ में आता है की केंद्र सरकार न्यनतम समर्थन मूल्य के नाम पर किसानों को धोखा दे रही है | वर्ष 2017 में दलहन का उत्पादन 22.4 मिलियन टन हुआ है | इसमें से सरकार ने यह लक्ष्य रखा की मसूर 1 लाख टन तथा चना 4 लाख टन खरीदी करेगी | लेकिन जब केंद्र तथा राज्य सरकार के द्वारा खरीदी की गई तो मसूर 19.1 हजार टन तथा चना 50.841 हजार टन था | यानि सरकार के अपने खरीदी लक्ष्य का मात्र मसूर 19% तथा चना 12.5% ही ख़रीदा गया |

इसका मतलब यह हुआ की वर्ष 2017 में बचे हुये सभी दलहन को न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिला | तथा वे सभी किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य से कितना कम पर बेचे इसका कोई आकड़ा कभी भी नहीं आता है | कभी – कभी तो किसानों को बीज , खाद, तथा खेत की जुताई का खर्च भी नहीं निकल पाता | ऐसा नहीं था की किसानों ने दलहन का उत्पादन बहुत ज्यादा कर दिया था जो देश के जरूरत से ज्यादा हो | बल्कि देश में दलहन की जरूरत 28 मिलियन टन की है जो उत्पादन से 5.6 मिलियन टन ज्यादा है | यानि किसानों के सम्पूर्ण उत्पादन को खरीदा भी जाता तो भी सभी के लिए दलहन की पूर्ति नहीं होती |

विदेशों से आयत क्यों ?

लेकिन सरकार ने सरकारी खरीदी नहीं करके विदेश से 6.5 मिलियन टन का आयात कर लिया तथा देश की जरूरत को पूरा करने के नाम पर देश के किसानों के साथ धोख किया | 6.5 मिलियन टन जो दलहन का आयत किया गया है उसका मूल्य 28,524 करोड़ रुपया है | अगर यह राशि देश के किसानों को दी जाती तो किसान देश की जरुरत पूरी कर सकता है | क्योंकि वर्ष 2016 में देश में दलहन का उत्पादन 16 मिलियन टन था और एक वर्ष में 22.4 मिलियन टन कर दिया | अगर सरकार के तरफ से देश के किसानों को C2 का 50% दिया जाये तो सरकार को कभी भी दलहन आयात करने की जरूरत नहीं होगी |

ऐसा नहीं है की और दुसरी फसल की सरकार खरीदी कर रही है | वर्ष 2017 में किसानों ने तिलहन  का उत्पादन 9.7 मिलियन टन किया था लेकिन सरकार ने 37.6 हजार टन न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरसों की खरीदी कि है | जो प्त्पदन का लगभग 4% होता है |यानि यह साफ है की सरकार किसानों से सारी उपज नहीं खरीदती तो क्या दाम दोगने करने से किसानों की सारी समस्या हल हो जाएगी | भारत सरकार कृषि में सबसे ज्यादा तिलहन  का ही आयत करता है |

वर्ष 2017 में भारत सरकार लगभग 70 हजार करोड़ का तिलहन  आयत किया था | वर्ष 2018 में केंद्र सरकार ने किसानों को 70 ,000 करोड़ का ही उर्वरक पर सब्सिडी दिया था | इसका मतलब यह हुआ की केंद्र सरकार जितना रुपया हमें उर्वरक पर सब्सिडी के रूप में देता है उतना ही रुपया देश के बहार तिलहन  पर भेज देती है | अगर 70,000 करोड़ रुपया भर के तिलहन  किसानों को मिलता तो तिलहन  निर्यात करने की जरुरत नहीं होती |

मंडी एक बड़ी समस्या 

देश में एक और भी बड़ी समस्या कृषि उपज मंडी की है, जिसे एम.एस. स्वामीनाथन ने अपनी रिपोर्ट में उठाया था | देश में मंडी की भारी कमी है | जिसे किसानों को अपनी फसल बेचने के लिए कोई बाजार नहीं है | आप को जानकर हैरानी होगी की बिहार में दलहन, तिलहन  की किसी भी तरह की सरकारी खरीदी नहीं होती है | इस राज्य के सभी किसानों को अपनी फसल कम कीमतों पर बेचने पर मजबूर होना पड़ता है |

स्वामीनाथन ने बताया था की देश में प्रत्येक 5 किलोमीटर पर एक कृषि उपज मंडी होनी चाहिए | लेकिन मंडी के लिए सरकार कितनी गंभीर है आप इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं की वर्ष 2018 – 19 के बजट में केंद्र सरकार मात्र 2,000 करोड़ रुपया दिया है | इससे तो एक जिले के लिए भी मंडी की व्यवस्था नहीं किया जा सकती है | क्योंकि सरकार को किसानों से जमीन अधिग्रहण करना पड़ेगा तथा वर्ष 2013 के जमीन अधिग्रहण कानून के तहत जमीन का मूल्य बाजार कीमत से दुगना देना होगा | इसका मतलब यह हुआ की सरकार मंडी की स्थापना करने में दिलचस्पी नहीं ले रही है |

किसानों की समस्या का समाधान तब ही होगा जब सभी किसानों से फसलें लागत का 50% मुनाफे के साथ ख़रीदे | तथा फसल खरीदने के लिए सरकार कृषि उपज मंडी 5 किलोमीटर की दुरी पर सुनिश्चित करें  एवं अधिक मात्रा में किसानों से उनकी उपज ख़रीदे |

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
यहाँ आपका नाम लिखें

ताजा खबरें

डाउनलोड एप