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शनिवार, जनवरी 18, 2025
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किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए दिया गया प्रशिक्षण

देश में किसान खेती-किसानी की नई तकनीकों को अपनाकर अपनी आमदनी बढ़ा सके इसके लिए कृषि विभाग और कृषि वैज्ञानिकों के किसानों को प्रशिक्षण दिया जाता है। इस कड़ी में राजस्थान के बूंदी ज़िले के कृषि विज्ञान केंद्र श्योपुरिया बावड़ी में किसानों को प्राकृतिक खेती पर जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। प्रशिक्षण कार्यक्रम में जिले के 37 प्रगतिशील कृषक एवं कृषक महिलाओं ने भाग लिया।

प्रशिक्षण शिविर में वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष प्रो. हरीश वर्मा ने प्रशिक्षण के दौरान बताया कि आजकल खेती में रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों एवं खरपतवार नाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से किसानों की मिट्टी जहरीली हो गई है, जिसका दुष्प्रभाव मनुष्यों पर एवं पशु-पक्षियों पर दिखने लगा है। अभी मनुष्यों में कम उम्र में उच्च रक्तचाप, निम्न रक्तचाप, मधुमेह, कैंसर और हृदयाघात तथा पशुओं में बांझपन एवं बच्चेदानी बाहर निकलना, गर्भ न ठहरना इत्यादि बहुत अधिक होने लगा है। इन सबसे बचने का उपाय प्राकृतिक खेती है।

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किसानों को दी गई प्राकृतिक खेती की जानकारी

डॉ. वर्मा ने प्राकृतिक खेती में कीट प्रबंधन की विभिन्न तकनीकों की जानकारी एवं फसलों में प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाले मित्र कीटों की पहचान बताने के साथ इनके संरक्षण के उपाय बताये। डॉ. वर्मा ने बताया कि प्राकृतिक खेती में खर्चा नहीं है, इसलिए किसानों के लिए वरदान साबित होगी प्राकृतिक खेती।

नोडल अधिकारी प्राकृतिक खेती, डॉ. घनश्याम मीणा ने किसानों को प्रशिक्षण के दौरान प्राकृतिक खेती की आवश्यकता, प्राकृतिक खेती के लाभ, प्राकृतिक खेती में पोषक तत्व प्रबंधन, कीट एवं व्याधि नियंत्रण के विभिन्न तरीकों के बारे में बताते हुए कहा कि केंद्र पर शीघ्र ही खुदरा उर्वरक विक्रेताओं के लिए प्रशिक्षण आयोजित किया जाएगा, जिसके लिए केंद्र पर आवेदन भरे जा रहे है। पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर प्रशिक्षार्थियों का चयन किया जाएगा।

प्राकृतिक खेती में उपयोगी तत्वों के बारे में दी गई जानकारी

डॉ. मीणा ने प्राकृतिक एवं जैविक खेती में अन्तर, प्राकृतिक खेती का महत्व एवं प्राकृतिक खेती के लिए पोषक तत्व प्रबन्धन के लिए जीवामृत, घनजीवामृत बनाना, फूल पानी, गुड़जल अमृत पानी बनाना एवं हरी खाद के उपयोग के तरीकों के बारे में बताया। बीजोपचार के लिए बीजामृत बनाना एवं इसके उपयोग व महत्व तथा पौध संरक्षण के लिए दशपर्णी अर्क बनाना, अग्नि अस्त्र बनाना, सोंठास्त्र बनाना, नीमास्त्र बनाना एवं रोग नियंत्रण के लिए कण्डे पानी का उपयोग एवं खट्टी छाछ की उपयोगिता के बारे में विस्तार से बताया। वरिष्ठ अनुसंधान अध्येता दीपक कुमार ने किसानों को केन्द्र पर स्थापित प्राकृतिक खेती प्रदर्शन इकाई का भ्रमण कराया। कार्यक्रम के दौरान मनीष शर्मा, दिनेश सैनी, रिलायंस फाउण्डेशन, सजल शर्मा, कार्यक्रम समन्वयक, उद्योगिनी ने सहयोग प्रदान किया।

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2 टिप्पणी

    • सर हम वेबसाइट पर सारी जानकारी उपलब्ध करा देंगे, आप इसके अलावा अपने ज़िले के कृषि विज्ञान केंद्र में संपर्क करें। वहाँ आप प्रशिक्षण सहित वैज्ञानिकों से अन्य मार्गदर्शन ले सकते हैं।

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