सोयाबीन खरीफ सीजन में लगाई जाने वाली प्रमुख तिलहनी फसलों में से एक है, ऐसे में सोयाबीन का उत्पादन बढ़ाने के लिए कृषि विभाग द्वारा कई प्रयास किए जा रहे हैं। इस कड़ी में कृषि विज्ञान केंद्र बूंदी में किसानों को सोयाबीन उत्पादन तकनीक पर प्रशिक्षण दिया गया साथ ही किसानों को अधिक उपज देने वाली सोयाबीन की किस्म JS 20-116 किस्म के बीजों का वितरण भी किया गया। यह प्रशिक्षण कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा मॉडल ऑइलसीड विलेज के अन्तर्गत अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन के तहत चयनित गाँव भीया के किसानों को दिया गया।
केंद्र के अध्यक्ष प्रो. हरीश वर्मा ने बताया कि जिले में सोयाबीन की पैदावार बढ़ाने के लिए मॉडल ऑयलसीड विलेज कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं। जिसका मुख्य उद्देश्य सोयाबीन की पैदावार बढ़ाना एवं स्थानीय स्तर पर उन्नत किस्मों के बीजों की उपलब्धता बढ़ाना हैं। इसके साथ ही प्रशिक्षण के माध्यम से सोयाबीन के एकीकृत फसल उत्पादन विधियों एवं समन्वित कीट-रोग प्रबंधन की तकनीकी की जानकारी किसानों को देना है।
किसान तैयार कर सकेंगे बीज
प्रशिक्षण से प्राप्त तकनीकी जानकारियों को अपनाकर किसान सोयाबीन की अधिकतम पैदावार लेकर अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं। साथ ही इससे जो बीज प्राप्त होंगे उन्हें किसान अगले वर्ष बीज के रूप में रखकर काम में ले सकते हैं एवं अन्य किसानों को स्थानीय स्तर पर बेच भी सकते हैं। प्रशिक्षण में किसानों को सोयाबीन में लगने वाले कीट एवं रोगों की जानकारी भी दी जा रही है।
कृषि विज्ञान केंद्र के अध्यक्ष ने बताया कि सोयाबीन की बुआई से पहले किसान कार्बेन्डाजिम फफूँदीनाशक 2 ग्राम प्रति किलो, कीटनाशक थायोमिथाक्जेम 30 एफ.एस. 10 मिली प्रति किलो एवं राइजोबियम व फास्फोबेक्ट्रीन जीवाणु कल्चर 5 मिली प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करें।
किसानों को दिए गए सोयाबीन किस्म जे.एस. 20-116 के बीज
प्रशिक्षण में आये हुए किसानों को सोयाबीन किस्म जे.एस. 20-116 के प्रदर्शन हेतु आवश्यक आदान वितरित किए गए। तिलहन तकनीकी सहायक विजेन्द्र कुमार वर्मा ने बताया कि सोयाबीन की किस्म जे.एस. 20-116 मध्यम अवधि में पकने वाली किस्म है, जो 95-100 दिनों में पककर अनुकूल परिस्थितियों में 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार देती है। इस किस्म में सफेद रंग के फूल, तने व फलियाँ चिकनी होती है। यह मध्यम ऊंचाई की, पीले रंग के दाने एवं उच्च अंकुरण क्षमता वाली किस्म है। बीज मध्यम आकार, एवं काले रंग नाभिका वाले होते है। इसमें तेल की मात्रा 19-20 प्रतिशत पायी जाती है। यह बहू प्रतिरोधी किस्म है जो जैविक व्याधियों जैसे पीला मोजेक, चारकोल सड़न, राइजोक्टोनिया एरियल ब्लाइट, पत्ती धब्बा, तना मक्खी, तना छेदक एवं पत्ती भक्षक इल्लियाँ के प्रति सहनशील है।