गेंहू की फसल की बुवाई
गेंहू भारत की एक प्रमुख फसल तथा खाद्यान है | यह रबी फसल में सबसे ज्यादा बोई जाने वाली फसल है | इसके साथ ही भारत गेंहू में लगभग आत्म निर्भर है और किसान इसकी खेती लम्बे अरसे से पारंपरिक तरीके से करते आ रहें हैं, परन्तु जलवायु परिवर्तन तथा मिट्टी को ध्यान रखते हुये कुछ बात को ध्यान रखना होगा क्योंकि गेंहू की खेती में मिट्टी तथा उर्वरक (खाद) का प्रमुख स्थान होता है |
किसान अक्सर गेंहू की खेती परम्परागत तरीके से करते हैं | जिसके कारण किसानों को खेती में खर्च ज्यादा हो जाता है | इसके बाबजूद भी उत्पादन में कोई ज्यादा परिवर्तन नहीं होता है , इसलिए किसान समाधान किसानों के लिए गेंहू की खेती में मिटटी तथा उर्वरक के बारे में विशेष जानकारी देने जा रहा है जिसे अपनाकर आप खेती की लागत को कम कर सकते हैं तथा अच्छा उत्पादन कर सकते है |
गेंहू की खेती में मिट्टी का योगदान
वैसे तो सभी फसल में मिटटी का महत्वपूर्ण स्थान रहता है , लेकिन गेंहू की खेती की बात होती है तो थोडा मिट्टी का ज्यादा ध्यान रखना होगा | किसानों को एक सलाह है की वह अपने खेत की मिटटी की जाँच जरुर करा लें | इससे आप को मिटटी के अनुसार फसल को चुनने में आसानी होगी तथा उर्वरक पर भी कम खर्च करना होगा |
एक बात का ध्यान रखना है की मिटटी की क्षारीयता को ध्यान रखना होगा क्योंकि गेंहू की फसल ph मान 5 से 7.5 के बीच होती है | अगर मिट्टी की क्षारीयता ph मान 5 से कम तथा 7.5 से ज्यादा है तो गेंहू की बुवाई उस मिट्टी में नहीं करें | अगर इसके बाबजूद भी आप गेहूं की फसल बोते हैं तो आप को उत्पादन पर असर पड़ेगा | मिटटी में क्षारीयता कुछ बहुत ज्यादा है तो जैसे 8 से 10 के बीच तो किसान अपने खेत में सल्फर तथा जिप्सम का उपयोग करके क्षारीयता कम कर सकते है | उसके बाद आप अपने खेत में गेंहू की फसल ले सकते हैं |
बुवाई में बीज की गहराई
गेंहू की फसल में बीज की गहराई अंकुरण में महत्वपूर्ण स्थान है | अक्सर यह देखा गया है की ट्रैक्टर चलाने वाला व्यक्ति गेंहू की बीज कितनी गहराई पर बोया जाय यह मालूम नहीं रहता है | और सभी फसल को एकही गहराई पर बो देते हैं | जिससे गेंहू की अंकुरण कम होती है और फिर उत्पादन पर असर पड़ता है |
गेंहू की छोटी बीज को 3 से 5 से.मी. की गहराई में बोना चाहिए | तथा बड़ी बीज को 5 से 7 से.मी. की गहराई में बोना चाहिए | यह गहराई गेंहू की फसल के लिए उपयुक्त है |
बीज दर एवं बीज शोधन
लाइन में बुआई करने पर सामान्य दशा में 100 किग्रा० तथा मोटा दाना 125 किग्रा० प्रति है, तथा छिटकवॉ बुआई की दशा में सामान्य दाना 125 किग्रा० मोटा-दाना 150 किग्रा० प्रति हे0 की दर से प्रयोग करना चाहिए। बुआई से पहले जमाव प्रतिशत अवश्य देख ले। राजकीय अनुसंधान केन्द्रों पर यह सुविधा निःशुल्क उपलबध है। यदि बीज अंकुरण क्षमता कम हो तो उसी के अनुसार बीज दर बढ़ा ले तथा यदि बीज प्रमाणित न हो तो उसका शोधन अवश्य करें। बीजों का कार्बाक्सिन, एजेटौवैक्टर व पी.एस.वी. से उपचारित कर बोआई करें। सीमित सिंचाई वाले क्षेत्रों में रेज्ड वेड विधि से बुआई करने पर सामान्य दशा में 75 किग्रा० तथा मोटा दाना 100 किग्रा० प्रति हे0 की दर से प्रयोग करे।
उर्वरकों का प्रयोग कैसे करें
मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरकों का प्रयोग करना उचित होता है। बौने गेहूँ की अच्छी उपज के लिए मक्का, धान, ज्वार, बाजरा की खरीफ फसलों के बाद भूमि में 150:60:40 किग्रा० प्रति हेक्टेयर की दर से तथा विलम्ब से 80:40:30 क्रमशः नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश का प्रयोग करना चाहिए। बुन्देलखण्ड क्षेत्र में सामान्य दशा में 120:60:40 किग्रा० नत्रजन, फास्फोरस तथा पोटाश एवं 30 किग्रा० गंधक प्रति है. की दर से प्रयोग लाभकारी पाया गया है।
जिन क्षेत्रों में डी.ए.पी. का प्रयोग लगातार किया जा रहा है उनमें 30 किग्रा० गंधक का प्रयोग लाभदायक रहेगा। यदि खरीफ में खेत परती रहा हो या दलहनी फसलें बोई गई हों तो नत्रजन की मात्रा 20 किग्रा० प्रति हेक्टर तक कम प्रयोग करें। अच्छी उपज के लिए 60 कुन्तल प्रति हे0 गोबर की खाद का प्रयोग करें। यह भूमि की उपजाऊ शक्ति को बनाये रखने में मद्द करती है।
फसल चक्र का ध्यान रखें
लगातार धान-गेहूँ फसल चक्र वाले क्षेत्रों में कुछ वर्षों बाद गेहूँ की पैदावार में कमी आने लगती है। अतः ऐसे क्षेत्रों में गेहूँ की फसल कटने के बाद तथा धान की रोपाई के बीच हरी खाद का प्रयोग करें अथवा धान की फसल में 10-12 टन प्रति हक्टेयर गोबर की खाद का प्रयोग करें। अब भूमि में जिंक की कमी प्रायः देखने में आ रही है। गेहूँ की बुआई के 20-30 दिन के मध्य में पहली सिंचाई के आस-पास पौधों में जिंक की कमी के लक्षण प्रकट होते हैं, जो निम्न हैः
- प्रभावित पौधे स्वस्थ पौधों की तुलना में बौने रह जाते है।
- तीन चार पत्ती नीचे से पत्तियों के आधार पर पीलापन शुरू होकर ऊपर की तरफ बढ़ता है।
- आगे चलकर पत्तियों पर कत्थई रंग के धब्बे दिखते है।
खड़ी फसल में यदि जिंक की कमी के लक्षण दिखाई दे तो 5 किग्रा० जिंक सल्फेट तथा 16 किग्रा० यूरिया को 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हे0 की दर से छिड़काव करें। यदि यूरिया की टापड्रेसिंग की जा चुकी है तो यूरिया के स्थान पर 2.5 किग्रा०बुझे हुए चूने के पानी में जिंक सल्फेट घोलकर छिड़काव करें (2.5 किग्रा० बुझे हुए चूने को 10 लीटर पानी में सांयकाल डाल दे तथा दूसरे दिन प्रातः काल इस पानी को निथार कर प्रयोग करे और चूना फेंक दे)। ध्यान रखें कि जिंक सल्फेट के साथ यूरिया अथवा बुझे हुए चूने के पानी को मिलाना अनिवार्य है। धान के खेत में यदि जिंक सल्फेट का प्रयोग बेसल ड्रेसिंग के रूप में न किया गया हो और कमी होने की आशंका हो तो 20-25 किग्रा०/ हे0 जिंक सल्फेट की टाप ड्रेसिंग करें।
Gehu ki kheti ke bare me jankari chaieye plz relply
https://kisansamadhan.com/improved-cultivation-of-wheat-by-planting-these-varieties-of-wheat-in-unirrigated-areas/
https://kisansamadhan.com/farming-grower-animal-husbandry-garden-expert-advice/
https://kisansamadhan.com/crops-production/rabi-crops/wheat-farming/
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