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शनिवार, अप्रैल 20, 2024
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बांस की खेती

बांस की खेती भारत में मुख्यतः दो तरह की बांस की प्रजाति की वानिकी तैयार की जाती है | बैम्बुसा एरुण्डीनेसीया और डेन्ड्रोकैलामस स्ट्रीक्ट्स |

बैम्बुसा एरुण्डीनेसीया

नाम

इसका वानस्पतिक नाम बाम्बुसा अरुनडीनासीई है तथा स्थानीय नाम कांटा बांस हैं | यह बैम्बुसीई से आता है | यह भारत मे सभी स्थानों मे पाए जाते है उडिसा, कर्नाटक, तामिलनाडु, महाराष्ट्र, केरल, मणिपुर, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार तथा उतरी पश्च्मि राज्यों मे पाए जाते है।

जलवायु

इसके लिए उपयुक्त जलवायु तापमान-8-36°सेल्सियस, वर्षा-1270 मि.मी. उच्च आद्रता वाले प्रदेशों मे अच्छे वृद्धि होता है।

मिट्टी

अच्छी जल निकासी वाले सभी प्रकार के मिट्टी मे उगे जाते हैं। वजनदार मिट्टी मे यह नही होते हैं।

स्थलाकृति

1200 मी.ऊँचाई पर उगे जाते है।

आकारिकी      

यह लम्बा कलगीगार,घना टफ होता है,कल्म (Culms) उजले हरा चिकनी,15-30मी. लम्बा तथा मोटा-15-18 सेमी. होता है। प्रकन्द तथा जड दोनों जमीन के नीचे रहते है। कारेओपसिस गोल तथा 9-8मिमी. लम्बा होता है।

ऋतु जैविकी

फूल गुच्छे मे या अलग-अलग होते है,30-45 साल में फूल गुच्छे में खिलते हैं। मार्च-अप्रैल में पाए जाते है।

वनोयोग्य लक्षण 

एक साल के कल्म को नही काटा जाता है। फूल के समय नही काटा जाता है।

पौधशाला प्रबन्धन

मिट्टी कि अच्छी तरह जुताई कर लेनी चाहिए(30सेमी) बीज को छिडकाव कर बुआई की जाती है। अंकुरन के 6 महीने बाद इसको अलग की जाती है,तथा 2 साल बाद प्रतिरोपण किया जाता है।      मिट्टी पलटना   4-9 मी. दूरी पर बीजांकुर को प्रतिरोपण किया जाता है। 2 साल तक बीजांकुर के व्हारों तरफ 30 सेमी. गोलाई तथा 8-10 सेमी. गहराई कर मिट्टी कार्य किया जाता है।

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रोपण तकनीक  

2-3 साल के बीजांकुर जब 2-5-3 मी. लम्बा होने पर प्रतिरोपण किया जाता है। प्रकंद को खड्डा मे रोपा जाता है।

निकौनी

पहली साल 3 बार तथा दूसरी साल 2 बार खरपतवार नाश करना चाहिए। पौधारोपण क्षेत्रों मे थिनिंग तथा साफ करना चाहिए।

खाद एवं उर्वरक 

3-4 किलो FYM मिला कर खड्डा तैयार की जाती है।

कीट, रोग तथा जानवर

चूहा तथा सूअर हिरण,बकरी तथा घरेलू जानवरों से बीजांकुर को बचाना चाहिए, हाथी भी इसकी डालियां खा लेते हैं।

उपयोग 

बल्ली,सिढी,टोकरी,चटाई,आदि बनाने मे काम आता है। कोमल प्ररोह खाएं जाते हैं। कागज बनाने मे भी काम आता है।

सिंचाई

पौधशाला में बीज बुआई के बाद एक सप्ताह तक रोज सिंचाई देनी चाहिए उसके बाद एक महीने तक एक दिन बाद पानी देनी चाहिए। उसके बाद जरुरत के अनुसार।

डेंड्रोकलामस स्ट्रीटकस

नाम

इसका वानस्पतिक नाम डेंड्रोकलामस स्ट्रीटकस है जो बेम्बुसीई परिवार  से आता है

जलवायु

अधिकतम तापमान-46°सेल्सियस तथा न्युनतम तापमान 6° से.। वर्षा 800-1500मिमी.। कम आद्रता वाले प्रदेशों मे ज्यादा होते है।       मिट्टी  अच्छी जल निकासी वाले सभी प्रकार के मिट्टी मे उगे जाते हैं। वजनदार मिट्टी मे यह नही होते हैं।अच्छी जल निकासी वाले सभी प्रकार के मिट्टी मे उगे जाते हैं। वजनदार मिट्टी मे यह नही होते हैं।

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स्थलाकृति

2000 मीटर पर उगे जाते है।

वनोयोग्य लक्षण 

तुषार तथा सूखा सहिष्णु होता है।

पौधशाला प्रबन्धन

मिट्टी,बालू तथा FYM से पौधशाला तैयार की जाती है। बीज को छिडकाव कर लगाया जात है। अंकुरण के बाद 10-15सेमी. लम्बा होने पर निकाल लिया जाता है तथा 25-30 सेमी. लम्बा होने पर प्रतिरोपण किया जाता है।

मिट्टी पलटना  

30 सेमी3 यह 45 सेमी.3 खड्डा मे 4.5*4.5 मी. दूरी पर लगाया जाता है।

रोपण तकनीक  

1-2 साल के बीजांकुर को प्रतिरोपण किया जाता है। प्रकंद को लगाया जाता है।  निकौनी नियमित खरपतवार नाश की जरुरत है तथा थिंनिग करने से वृद्धि अच्छे होते है।

खाद एवं उर्वरक 

नियमित फास्पेट देने से वृद्धि अच्छी होती है लेकिन नाइट्रोजन देने से वृद्धि रुक जाती है।

कीट, रोग तथा जानवर   

ईटिगमिना,चाहेनेनसिस द्वारा कल्म नष्ट करते हैं। जानवरों द्वारा भी कल्म को नष्ट किया जाता है।

उपयोग 

निर्माण कार्य,टोकरी,चटाई,फरनिचर,कृषि यंत्र बनाने मे काम आता है।

वृद्धि तथा उपज

5*5 दूरी पर लगाने से 3.5 टन/हे. वर्ष होता है।

सिंचाई 

पौधशाला तथा पौधरोपण मे बीजांकुर को नियमित सिंचाई करनी चाहिए।

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