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रविवार, मई 18, 2025
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अभी नींबू वर्गीय बागवानी फसलों में लग सकता है सिल्ला कीट, किसान ऐसे करें नियंत्रण

मार्च और अप्रैल महीने के दौरान मौसम में परिवर्तन होने से फसलों पर कीट एवं रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है। जिसको देखते हुए चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा नींबू वर्गीय फसलों में इस मौसम में लगने वाले सिल्ला नामक कीट को लेकर सलाह जारी की गई है। नींबू वर्गीय बागवानी फसलों में नींबू, किन्नू, संतरा, माल्टा, मौसंबी आदि फलदार पौधे आते हैं। कृषि विश्वविद्यालय के मुताबिक अभी तापमान में बदलाव के कारण इन फसलों पर नींबू का सिल्ला नामक कीट का प्रकोप होने की संभावना है, क्योंकि यह कीट तापमान में बढ़ोतरी होते ही मार्च-अप्रैल में ज़्यादा सक्रिय हो जाता है।

सिल्ला कीट की पहचान

इस कीट के शिशु गोल, चपटे व नारंगी रंग के तथा प्रौढ़ भूरे रंग के होते हैं। यह कीट मार्च-जून व अगस्त-सितंबर में अधिक हानि पहुँचाता है। वर्ष भर में इसकी 8 से 10 पीढ़ियाँ होती है। माल्टा एवं मीठे नींबू पर इसका प्रकोप अधिक होता है। इसके शिशु 10 से 35 दिनों में विकसित होकर प्रौढ़ बन जाते हैं। इसके प्रौढ़ पत्तों पर टहनियों पर अपने शरीर के पिछले हिस्सों को उठाकर बैठते हैं। अगर बिल्कुल नई कोपलें मुड़ी हुई दिखाई देती है तो यह इस कीट के होने को दर्शाती है। यह कीट पत्तों की निचली सतह पर ज्यादा बैठते हैं।

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सिल्ला कीट से नींबू को नुकसान

यह बहुत ही नुकसानदायक कीट है। इस कीट के शिशु व प्रौढ़ पौधों की कोपलों व टहनियों पर एकत्रित रहते हुए रस चूसते हैं। जिस कारण नई कोपलें मुड़ जाती है और फूल झड़ने लगते हैं। यह कीट अपने शरीर से चिकनाई युक्त सफेद रंग का पदार्थ छोड़ते रहते हैं जो पौधों के पत्तों पर जमा हो जाता है। कुछ दिनों बाद यह सफेद पदार्थ काले धब्बों (फफूंद) की परत में बदल जाते हैं। जिससे पौधें अपना भोजन पर्याप्त ढंग से नहीं बना पाते जिसके परिणाम स्वरूप पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इस कीट के प्रकोप से टहनियाँ आगे के भाग से सूखना शुरू कर पीछे की तरफ सूखती जाती है और पूरा पौधा धीरे-धीरे सूखने लगता है।

किसान इस तरह करें सिल्ला कीट का नियंत्रण

विश्वविद्यालय द्वारा जारी सलाह के अनुसार किसान नींबू वर्गीय फसलों में सिल्ला कीट के प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए 2 लीटर निम्बीसिडीन 300 PPM या 40 ग्राम थायमिथॉक्साम 25 प्रतिशत डबल्यूजी को 400 लीटर पानी में मिलाकर या 240 मिलीलीटर सायंट्रनिलीप्रोल 10.26 प्रतिशत ओ.डी. या स्पिरोटेट्रामैट 15.31 प्रतिशत ओ.डी. को 200 लीटर पानी में मिलकर प्रति एकड़ छिड़काव करें। यह कीटनाशक ना केवल कीटों को मारने में मदद करत है, बल्कि किसानों की फसल सुरक्षा के साथ-साथ उत्पादन में सुधार करने में भी आर्थिक रूप से लाभकारी है। कीटनाशकों का उपयोग किसान कीट के प्रकोप दिखाई देने पर ही करें।

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कीट नियंत्रण के लिए सावधानियाँ

  • यदि पौधों पर लेडीबर्ड भृंग (लाल-काली चित्तियों वाले) नामक मित्र कीट दिखाई पड़ते हैं और उनकी संख्या अधिक है तो नीम आधारित कीटनाशकों का उपयोग ही करना चाहिए।
  • ज्यादा बारिश पर इस कीट का नियंत्रण स्वयं हो जाता है। ऐसी अवस्था में कीटनाशकों के उपयोग की जरूरत नहीं रहती है। इसलिए जिस सप्ताह में स्प्रे करना है उस सप्ताह की मौसम की जानकारी किसान अवश्य लें।
  • उपरोक्त समाधान अपनाने से अन्य रसचूसक कीट व पत्ती सुरंग कीट (लीफ माइनर) जैसे दूसरे कीटों का नियंत्रण भी हो जाता है।
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