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अब इस जगह के किसान भी करेंगे काजू की व्यावसायिक खेती

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काजू की व्यावसायिक खेती

काजू का मूलस्थान ब्राजील है, जहाँ से 16वीं सदी के उत्तरार्ध में उसे वनीकरण और मृदा संरक्षण केप्रयोजन से भारत लाया गया | मृदाक्षरण को रोकने वाला यह पौधा आज की तारीख में चाय और कॉफ़ी के बाद अधिकतम विदेशी मुद्रा अर्जित करने वाली फसल है, सूखे मेवों में काजू का महत्वपूर्ण स्थान है | देश के पश्चिमी और पूर्वी समुद्र तट के आप-पास के आठ राज्यों में काजू की व्यवसायिक स्तर पर खेती की जाती है- आन्ध्रप्रदेश, गोवा, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, ओड़िशा, तमिलनाडू और पश्चिम बंगाल, इनेक अलावा, असम, छतीसगढ़, गुजरात, मेघालय, नागालैंड और त्रिपुरा के कुछ इलाकों में भी काजू की खेती की जाती है |

भारत में काजू की खेती

 भारत में 9.53 लाख हेक्टेयर क्षेत्र (2010-11) में काजू की खेती होती है और अनुमानत: 6.74 लाख टन कच्चे काजू का सालाना उत्पादन होता है, वियतनाम और नाइजीरिया के बाद भारत काजू का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है और सबसे बड़े क्षेत्र में काजू की खेती करने वाला सबसे बड़ा प्रोसेसर भी। भारत का काजू उत्पादन पूरे विश्व के काजू उत्पादन का 23% है।

इन सभी बातों को ध्यान में रखकर मध्यप्रदेश सरकार ने भी काजू की खेती को बढ़ाबा देने का फैसला लिया है | उल्लेखनीय है कि बैतूल प्रदेश का पहला जिला है, जहाँ वर्ष 2018-19 से काजू की व्यावसायिक खेती प्रारंभ की गई है। इस वर्ष बैतूल में एक हजार हेक्टेयर में किसानों के खेतों में काजू के बगीचे लगाये जाने का कार्यक्रम सरकार ने बनाया है | इसके तहत बैतूल जिले में बड़े पैमाने पर किसानों के खेतों में इस वर्ष काजू के बगीचे लगवाये जायेंगे। जिससे मध्यप्रदेश में भी काजू की खेती व्यावसायिक स्तर पर की जा सकेगी |

काजू की व्यावसायिक खेती

कृषि विशेषज्ञों ने बताया कि ड्रिप सहित काजू लगाये जाने पर रोपण के दूसरे साल से उत्पादन प्रारंभ होता है। रोपण के 6-7 साल बाद व्यावसायिक उत्पादन प्रारंभ हो जाता है। प्रति पेड़ औसतन 15 से 20 किलो काजू का उत्पादन होता है। ग्रेडिंग के अनुसार कच्चा काजू 100 से 125 रुपये प्रति किलो की दर पर आसानी से बिक जाता है। काजू प्र-संस्करण के लिये बैतूल जिले के घोड़ाडोंगरी में छोटी प्र-संस्करण इकाई भी स्थापित की गई है। जिले में काजू की व्यावायिक खेती के लिये राष्ट्रीय काजू एवं कोको विकास निदेशालय केरल के कोच्चि द्वारा तकनीकी मार्गदर्शन भी प्रदाय किया जा रहा है। क्षेत्र में निदेशालय के वैज्ञानिकों द्वारा समय-समय पर निरीक्षण भी किया गया है। उद्यानिकी एवं खाद्य प्र-संस्करण विभाग जिले में काजू की व्यावसायिक खेती को बढ़ावा देने के लिये लगातार प्रयास कर रहा है।

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