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अब यहाँ के किसान भी कर सकेंगे ज्यादा मुनाफा देने वाले रबर के पेड़ों की खेती

रबर के पेड़ों की खेती

देश में किसानों की आय बढ़ाने के लिए सरकार फसलों के विविधिकरण, बागवानी एवं नकदी फसलों की खेती को बढ़ावा दे रही है। इसके लिए कृषि संस्थानों के वैज्ञानिकों के द्वारा लगातार नए-नए शोध किए जा रहे है। ऐसे में छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए एक बड़ी खबर आई है। अब यहाँ के किसान भी रबर के पेड़ों की खेती कर सकेंगे। इसके लिए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर तथा रबर अनुसंधान संस्थान कोट्टायाम के मध्य एक समझौता किया गया है।

जिससे अब छत्तीसगढ़ में भी ज्यादा मुनाफा देने वाले रबर के पेड़ों की खेती की जाएगी। रबर अनुसंधान संस्थान, कोट्टायाम बस्तर क्षेत्र में रबर की खेती की संभावनाएं तलाशने के लिए कृषि अनुसंधान केन्द्र बस्तर में एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में रबर की प्रायोगिक खेती करने जा रहा है।

कृषि विश्वविद्यालय द्वारा उपलब्ध कराई जाएगी तकनीक एवं आवश्यक सामग्री

इस संबंध में 3 अप्रैल के दिन इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के रायपुर के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल की मौजूदगी में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर तथा रबर अनुसंधान संस्थान कोट्टायाम के मध्य एक समझौता किया गया। समझौता ज्ञापन पर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के संचालक अनुसंधान डॉ. विवेक कुमार त्रिपाठी तथा रबर रिसर्च इंस्टिट्यूट कोट्टायाम की संचालक अनुसंधान डॉ. एम.डी. जेस्सी ने हस्ताक्षर किये। 

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इस समझौते के अनुसार रबर इंस्टिट्यूट कृषि अनुसंधान केन्द्र बस्तर में एक हेक्टेयर रकबे में रबर की खेती हेतु सात वर्षों की अवधि के लिए पौध सामग्री, खाद-उर्वरक, दवाएं तथा मजदूरी पर होने वाला व्यय इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय को उपलब्ध कराएगा। वह रबर की खेती के लिए आवश्यक तकनीकी मार्गदर्शन तथा रबर निकालने की तकनीक भी उपलब्ध कराएगा। पौध प्रबंधन का कार्य रबर इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किया जाएगा। 

अभी यहाँ होती है रबर की खेती

अनुबंध समारोह को संबोधित करते हुए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने कहा कि रबर एक अधिक लाभ देने वाली फसल है। भारत में केरल, तमिलनाडु आदि दक्षिणी राज्यों में रबर की खेती ने किसानों को सम्पन्न बनाने में अहम भूमिका निभाई है। 

उन्होंने कहा कि रबर अनुसंधान संस्थान कोट्टायाम के वैज्ञानिकों ने छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र की मिट्टी, आबोहवा, भू-पारिस्थितिकी आदि को रबर की खेती के लिए उपयुक्त पाया है और प्रायोगिक तौर पर एक हेक्टेयर क्षेत्र में रबर के पौधों का रोपण किया जा रहा है। उन्होंने उम्मीद जताई कि यहां रबर की खेती को निश्चित रूप से सफलता मिलेगी तथा किसानों को अधिक आमदनी प्राप्त हो सकेगी।

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अभी यहाँ शुरू की जा चुकी है कॉफ़ी कि खेती

अभी बस्तर में काफ़ी की दो प्रजातियों अरेबिका और रूबस्टा कॉफी के पौधे लगाए गए हैं। बस्तर की कॉफी की गुणवत्ता ओड़िसा और आंध्रप्रदेश के अरकू वैली में उत्पादित किए जा रहे कॉफी के समान है। अरेबिका प्रजाति के पौधों से कॉफी के बीजों का उत्पादन प्रारंभ हो गया है। कॉफी का एक पौधा चार से पांच साल में पूरी तरह बढ़ जाता है। एक बार पौधा लग जाने के बाद यह 50 से 60 वर्षों तक बीज देता है। एक एकड़ में लगभग ढाई से तीन क्विंटल कॉफी के बीज का उत्पादन होता है।

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