नीम की खेती
परिचय
नीम का वैज्ञानिक नाम ( वानस्पतिक नाम) एजाडिरेक्टा इंडिका एवं स्थानीय नाम नीम होता है यह मेलिएसी परिवार का सदस्य होता है जो भारत में सर्वत्र, विशेषत: अधिक सुखे भागों में उगाया जाता है। अत्यधिक ठण्डे प्रदेश में नहीं पाये जाते है। यह गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, उडिसा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश, कर्नाटक तथा तमिलनाडु में पाये जाते है। नीम समतल तथा पहाडी क्षेत्रों में समुद्रतल से लगभग 1830 मी. ऊँचाई तक होता है। यह आकार में मध्यम से लेकर बडे आकार का वृक्ष होता है। इसकी लम्बाई 15 मी. तथा मोटाई 1.8 से 2.8 सेमी होता है। इसकी छाल मोटी , गहरी –धूसर और लम्बी दरारों वाली होती है। इसमे शहद जैसे सुगन्ध वाले छोटे छोटे फूलों के गुच्छे होते है।
जलवायु
अधिकतम तापमान 40 से 47.5°C तथा न्युनतम तापमान 0 से 15°C । वर्षा 450-1125 मीमी । तुषार में नहीं होता है। मिट्टी सभी प्रकार के मिट्टी में पाये जाते है। वैसे काली मिट्टी इसके किए श्रेष्ठ है। जल जमाव स्थानों पर नहीं उगता है।
ऋतु जैविकी
यह प्राय: सदाहरित होते है लेकिन शुष्क क्षेत्रों में फरवरी से मार्च तक पत्तें नहीं रहते है। फुल जनवरी से मई तक खिलते है। फल जुन से अगस्त तक पकते है।
वनोयोग्य लक्षण
प्रवल प्रकाश पेक्षी है। सुखा सहिष्णु है लेकिन तुषार नहीं सह सकता है। स्थुणप्ररोहण अच्छी होती है। जल जमाव क्षेत्र में नहीं होते है।
पौधशाला प्रबन्धन
ताजा बीज का छिलका छुडा कर उसको बुआई की जाती है। अंकुरण क्षमता 2 सप्ताह तक होता है। बुआई के पहले उपचार की जरुरत नहीं है। जुन में बुआई की जाती है। तथा 2 सप्ताह बाद प्रतिरोपण किया जाताहै। मिट्टी पलटने के लये गड्डे का आकार 30 सेमी 3 तथा 3×3 मी की दुरी पर लगाया जाता है।
रोपण तकनीक
सीधी बुआई छिडकाव कर या पंक्ति में बुआई किया जाताहै। 30 सेमी 3 गड्ढा पर जुलाई से अगस्त में प्रतिरोपण किया जाता है। 1 से 2 साल के पौध् से कलम तैयार की जाती है। निकौनी पहले साल 2-3 बार खरपतवार नाश करने की जरुरत है। मिट्टी को हल्का करने से वृद्धि अधिक होती है।
खाद एवं उर्वरक
हर खड्डा में 1.5 से 2 किलो सडी गोबर की खाद् मिलाने से वृद्धि अच्छी होती है। अलग से खाद देने की जरुरत नहीं है। कीट, रोग तथा जानवर क्लेअरा कोरनानीया तथा ओडिटेस एटमोपा सामान्य छेदक है। गानोडारमा लुईसीडम द्वारा जड गलन होता है।
उपयोग
निर्माण कार्य , फरनीचर तथा कृषि यंत्र बनाने में काम आता है। अच्छे जलावन की लकडी होती है। बीज से तेल भी निकाला जाता है। पत्तें अच्छे चारे के रुप में इस्तेमाल होते है। नीम की खली का उपयोग दिमक भगाने के लिए किया जाता है।
वृद्धि तथा उपज
15 साल के वृक्ष से 400 किलो लकडी होती है। 5 साल में 4 मी तथा 25 साल में 10 मी लम्बाई होता है।
सिंचाई
ज्यादा सिंचाई देने से वृक्ष को क्षति पहुँचती है इसलिए बूंद – बूंद सिंचाई देनी चाहिए।