back to top
28.6 C
Bhopal
मंगलवार, सितम्बर 10, 2024
होमविशेषज्ञ सलाहमुंजा घास एक ऐसी खरपतवार है जिसकी खेती कर आप लाखों...

मुंजा घास एक ऐसी खरपतवार है जिसकी खेती कर आप लाखों रुपयें कमा सकते हैं

औषधीय गुणों वाली मुंजा घास की खेती

मुंजा नदियों के किनारे, सड़कों , हाईवे, रेलवे लाइनों और तालबों के पास जहाँ खाली जगह हो, वहां पर प्राकृतिक रूप से उग जाती है | इसके पौधे, पत्तियां , जड़ व तने सभी औषधीय या अन्य किसी न किसी प्रकार उपयोग में लाए जाते हैं | इसकी हरी पत्तियां पशुओं के चारे के लिए प्रयोग में आती हैं | जब अकाल पड़ता है उस समय इसकी पत्तियों को शुष्क क्षेत्रों में गाय व भैंस को हरे चारे के रूप में खिलाया जाता है | पत्तियों की कुट्टी करके पशुओं को खिलने से हरे चारे की पूर्ति हो जाती है | यह बहुवर्षीय घास भारत, पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान के सुखा क्षेत्रों में पायी जाती है | इसकी जड़ों से औषधीयां भी बनाई जाती है | राष्ट्रीय स्तर पर इनकी और खपत बढने की प्रबल संभावनाएं हैं |

पुराने समय में जब अंग्रेजी दवाईयों का प्रचलन नहीं था तो औषधीय पौधों को वैध और हकीम विभिन्न बीमारियों के उपचार के लिए प्रयोग में लाते थे | हमारे कई ग्रंथों में बहुत सी बहुमूल्य जीवनरक्षक दवाइयां बनाने वाली बूटियों का विस्तृत वर्णन किया गया है | इसमें सरकंडा (मुंजा) की जड़ों का औषधीय उपयोग का भी उल्लेख है | आधुनिक युग में औषधीय पौधों का प्रचार व उपयोग अत्यधिक बढ़ गया है | इसका सीधा असर इनकी उपलब्धता व गुणवत्ता पर पडा है |

मुंजा की खेती कैसे करें ?

यह ढलानदार, रेतीली , नालों के किनारे व हल्की मिटटी वाले क्षेत्रों में आसानी से उगाया जा सकता है | यह मुख्यत: जड़ों द्वारा रोपित किया जाता है | एक मुख्य पौधे (मदर प्लांट) से तैयार होने वाली 25 से 40 छोटी जड़ों द्वारा इसे लगाया जाता है | जुलाई में जब पौधों से नए सर्कस निकलने लगें तब उन्हें मेड़ों, टिब्बों और ढलान वाले क्षेत्रों में रोपित करना चाहिए | नई जड़ों से पौधे दो महीने में पुर्न तैयार हो जाते हैं | इसकी 30 × 30 ×30 से.मी. आकार के गड्ढों में 75 × 60 से.मी. की दुरी पर लगाना चाहिए | इसकी 30,000 से 35,000 जड़ें या सकर्स प्रति हैक्टेयर लगाई जा सकती है |

पहाड़ों और रेतीले तिब्बोब पर ढलान की ओर इसकी फसल लेने पर मृदा कटव रुक जाता है | जब पोधे खेत में लगा देते हैं तो दो महीने बाद पशुओं से बचना चाहिए | सूखे क्षेत्रों में लगाने के तुरन्त बाद पानी अवश्य देना चाहिए | इससे पौधे हरे व स्वस्थ रहते हैं तथा जड़ों का विकास अच्छी तरह से होता है |

पानी का जमाव पौधे की जड़ों के लिए हानिकारक होता है तथा जड़ों का विकास कम हो जाता है | इसकी खेती सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लिए काफी उपयोगी हो सकती है | पहली बार लगभग 12 महीने के बाद मुंजा को जड़ों से 30 से.मी. ऊपर से काटना चाहिए | इससे दुबारा फुटान अधिक होती है | यदि देखा जाये तो एक पुर्न विकसित पौधे से जड़ों का गुच्छा बन जाता है | इससे लगभग 30 – 50 कल्लों (सरकंडों) का गुच्चा बन जाता है | जो 30 से 35 वर्षों तक उत्पादन देता रहता है | पुर्न विकसित मुंजा के गुच्छे से प्रति वर्ष कटाई करते रहना चाहिए |

यह भी पढ़ें   किसान मक्के की मेड़ विधि से करें खेती, कम लागत में मिलेगी अच्छी उपज

इससे मिलने वाले उत्पादों से अधिक लाभ कमाया जा सकता है | इसे बाजार में 4 – 5 रूपये किलोग्राम की दर से ताजा भी बेचा जा सकता है | मुंजा को रासायनिक खाद की आवश्यकता नहीं पड़ती फिर भी यदि आवश्यकता हो तो 15 से 20 टन प्रति हैक्टेयर देसी खाद डालनी चाहिए  इसकी औसत पैदावार 350 – 400 किवंटल प्रति हैक्टेयर प्राप्त की जा सकती है |

मुंजा घास के उपयोग

ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी बहुत अधिक प्रयोग में लाया जाता है | इसकी जड़ों और पत्तियों का प्रयोग विभिन्न  प्रयोग की औषधीयां बनाने में किया जाता है | मुंजा एक लाभदायक खरपतवार है | इसके लाभ ज्यादा हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में इससे भूमिहीन कृषकों और ग्रामिणों को रोजगार मिलता है | भारत, पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान आदि देशों में मुंजा से ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 33 प्रतिशत रोजगार मिलता है |

आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में शादी – पार्टियों में इससे बने उत्पाद काम में लिए जाते हैं | वैज्ञानिक टूर पर देखें तो पाया गया है कि इसकी रस्सी से बनी चारपाई बीमार व्यक्तियों के स्वास्थ्य के लिए भुत उपयोगी है | मुंजा की रस्सियों से बनी चारपाई पर सोने से कमर दर्द और हाथ – पैर में दर्द नहीं होता है | पशुओं के पैर में हड्डियां टूट जाने पर इसके सरकंडों को मुंजा की रस्सी से चरों तरफ बंधने पर आराम मिलता है | पशुओं व मनुष्यों में इससे बने छप्पर के नीचे सोने पर गर्म लू का प्रभाव कम हो जाता है |

मुंजा घास की कटाई और उपज

 कटाई प्रतिवर्ष अक्तूबर से नवम्बर में करनी चाहिए | कटाई उस समय उचित मणि जाती है , जब इसकी ऊँचाई 10 से 12 फीट हो जाये तथा पत्तियां सूखने लगें व पीले रंग में परिवर्तित हो जाएँ | कटाई के बाद सरकंडों को सूखने के लिए 5 से 8 दिनों तक खेत में इकट्ठा करके फूल वाला भाग ऊपर तथा जड़ वाला भाग नीचे करके खेत में मेड़ों के पास खड़ा करके सुखाना चाहिए | सूखने के बाद कल्लों से फूल वाला भाग अलग कर लेना चाहिए और बाजार में बेचने के लिए भेजना चाहिए | सूखे हुये सरकंडों से पत्तियां, कल्ले और फूल वाला भाग अलग कर लेना चाहिए | इस प्रकार प्रति हैक्टेयर 350 से 400 किवंटल उपज प्राप्त की जा सकती है | एक अनुमान के अनुसार मुंजा घास प्रति हैक्टेयर औसतन 85,000 से 1,00,000 रूपये आय प्राप्त की जा सकती है |

यह भी पढ़ें   ग्रीष्मकालीन मूंग और उड़द की फसल को कीट और रोगों से बचाने के लिए किसान करें यह काम

मुंजा के विभिन्न उपयोग

  • घरेलू जरूरत की बस्तुएं बनाने में अधिक प्रयोग में लाया जाता है | जैसे – मचला, चारपाई, बीज साफ करने के लिए छज , रस्सी , बच्चों का झुला , छप्पर , बैठने का मुधा आदि सजावटी समान |
  • रेगिस्तान क्षेत्र जहाँ पर रेतीली मृदा हो, उन क्षेत्रों में हवा द्वारा मृदा एक बड़ी समस्या है | एसे स्थानों पर मुंजा एक सफल पौधा है , जो मृदा कटाव को 75 प्रतिशत तक कम करता है |
  • बड़े – बड़े खेतों के चरों ओर मेड़ों पर मुंजा लगाने से बाहरी तेज व गर्म हवाओं से फसल को लू के प्रकोप से बचाया जा सकता है |
  • गर्मी में खिरावर्गीय सब्जियों की रोपाई के बाद तेज धूप से बचाव के लिए मुंजा के सरकंडों का प्रयोग छाया के लिए किया जाता है | इससे लू का प्रकोप लताओं पर नहीं पड़ता तथा लताएँ स्वस्थ्य रहती है |
  • गाँव में गर्मी के मौसम में जब काम नहीं हो, उस मुंजा के कल्लों से मूंझ निकालकर उसकी रस्सी व कई प्रकार की घरेलू आवश्यकता वाली वस्तुएं बनायी जाती है |
  • इसके सरकंडों का प्रयोग छप्पर बनाने में किया जाता है | बड़े – बड़े राष्ट्रीय मार्गों पर होटलों एवं रेस्तरां में विभिन्न प्रकार के आकर्षक छप्पर बनाने में भी इसका प्रयोग किया जाता है | यह गर्मी में बहुत ठंडी रहती है |
  • रेतीले क्षेत्रों में वर्षा के समय जब पानी का भाव ज्यादा हो, उस वक्त इसका प्रयोग मृदा कटव रोकने में किया जाता है |
  • ग्रामीण महिलायें इसकी फूल वाली डंडी से विभिन्न प्रकार की आकर्षक बस्तुयें जैसे – छबड़ी, चटाई, पंखी, ईंडी का घेरा आदि बनाती है |
  • सरकंडों का प्रयोग ज्यादातर पौधशाला एवं वर्मीक्म्पोष्ट बनाने वाली इकाईयों को छायादार बनाने में किया जाता है |
  • इसका उपयोग जैविक पलवार के रूप में भी किया जाता है |
  • मुंजा का प्रयोग ग्रीसिंग पेपर बनाने में किया जाता है |
  • इसकी जड़ों के पास से निकाली नई सकर्स का उपयोग चावल के साथ उबालकर कहने में किया जाता है |
  • कम वर्षा वाले क्षेत्रों में इसके सरकंडों से चारा संग्रहण के लिए एक गोल आकार की संरचना बनाकर किसान सूखे चारे व बीजों को स्टोर करते हैं जो 10 – 12 वर्षों तक खराब नहीं होता है |
  • यह पशुओं के लिए बिछावन बनाने में काम आता है |
  • फसलों को पाले से बचाने के किसान इसका उपयोग करते हैं |
  • भेड़ – बकरियों का बड़ा बनाने में इसके सरकंडों का इस्तेमाल किया जाता है |
  • इसकी रख से कीटनाशक जैविक उत्पाद बनाया जाता है |
download app button
google news follow
whatsapp channel follow

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
यहाँ आपका नाम लिखें

ताजा खबरें