आज के समय में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होने के चलते गर्मी के मौसम में किसानों द्वारा मूंग, उड़द, मक्का और मूंगफली आदि फसलों की खेती बड़े पैमाने पर की जाने लगी है। इन फसलों की खेती से किसानों को अतिरिक्त आमदनी प्राप्त होती है जिससे किसानों की आय भी बढ़ी है। लेकिन गर्मी के सीजन में इन फसलों में कीट और रोगों का प्रकोप भी अधिक होता है उनके नियंत्रण एवं फसल को जल्दी पकाने के लिए भी किसान अधिक कीटनाशक एवं खरपतवार नाशक दवाओं का इस्तेमाल करते हैं। जिसको देखते हुए मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री एदल सिंह कंषाना ने किसानों से कम से कम दवाओं के छिड़काव के लिए किसानों से अपील की है।
कृषि मंत्री ने किसानों से अपील की है कि वे ग्रीष्मकालीन मूंग फसल में कीटनाशक एवं नींदानाशक का उपयोग कम से कम करें। उन्होंने कहा कि मूंग फसल में अत्यधिक रासायनिक दवाओं का दुष्प्रभाव मानव स्वास्थ्य, मृदा स्वास्थ्य, जल एवं पर्यावरण पर सामने आया है। ऐसे में वैज्ञानिकों/विशेषज्ञों की ओर से कई तरह की बीमारियां जन्म लेने की आशंका व्यक्त की गई हैं। उन्होंने अपील कि है कि किसान भाई मूंग फसल की पैदावार के लिए ऐसा चक्र अपनाएं, जिससे ग्रीष्मकालीन मूंग प्राकृतिक रूप से अपने समय पर पक सके।
मूंग में रह जाते हैं कीटनाशकों के अंश
कृषि मंत्री ने कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग पर कहा कि यद्यपि मूंग की पैदावार से प्रदेश में किसानों की आय में वृद्धि हुई है। किसान इसे जल्दी पकाने के लिए कई बार खरपतवार नाशक दवा (पेराक्वाट डायक्लोराइड) का छिड़काव करते हैं। इस दवा के अंश मूंग फसल में कई दिनों तक विद्यमान रहते हैं, जो मानव स्वास्थ्य एवं पशु-पक्षियों के लिए अत्यंत हानिकारक हैं।
कृषि एवं स्वास्थ्य विशेषज्ञों, पर्यावरणविद् और कृषि सुधार के क्षेत्र में कार्य कर रहे संगठनों ने अनुसंधान रिपोर्ट के आधार पर मूंग फसल में आवश्यकतानुसार ही कीटनाशकों के उपयोग का सुझाव दिया है। राज्य सरकार जैविक खेती को विभिन्न योजनाओं के माध्यम से प्रोत्साहित कर रही है एवं किसानों को जैविक खेती के लिए प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है।
14.39 लाख हेक्टेयर में होती है मूंग की खेती
मध्यप्रदेश के नर्मदापुरम, हरदा, सीहोर, नरसिंहपुर, बैतूल, जबलपुर, विदिशा, देवास और रायसेन सहित कई जिलों में ग्रीष्मकालीन मूंग किसानों के लिए तीसरी फसल का अच्छा विकल्प बन चुकी है। वर्तमान में मूंग की फसल 14.39 लाख हेक्टेयर रकबे में लगाई जा रही है और इसका उत्पादन 20.29 लाख मीट्रिक टन है। प्रदेश में ग्रीष्मकालीन मूंग का औसत उत्पादन 1410 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है।