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गुरूवार, जनवरी 23, 2025
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दुनिया की सबसे पौष्टिक फसलों में से एक है मोरिंगा, भारत और न्यूजीलैंड के वैज्ञानिक मिलकर करेंगे शोध

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में मोरिंगा की क्षमता को पहचानने और उस पर जलवायु परिवर्तन के चलते पड़ने वाले प्रभाव को लेकर कार्यशाला एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के जैव रसायन विभाग द्वारा आयोजित इस कार्यशाला का उद्घाटन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.बी.आर.काम्बोज ने किया।

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने अपने संबोधन में कहा कि यह कार्यशाला मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा ‘स्पार्क’ परियोजना के तहत आयोजित की जा रही है। कार्यशाला में हकृवि और न्यूजीलैंड की मेसी यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक मोरिंगा पर संयुक्त रूप से शोध कार्य करेंगे।

देश के विभिन्न हिस्सों से लिये जाएँगे सैंपल

परियोजना के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन एवं मौसम में हो रहे बदलाव के कारण मोरिंगा के बीज तथा पत्तियों में टैनिंग और एंटीओक्सीडेंट प्रोपर्टीज पर पड़ने वाले प्रभाव पर रिसर्च किया जाएगा। इसी कड़ी में हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में भी मोरिंगा फसल पर विभिन्न प्रकार के शोध कार्य जारी हैं। उन्होंने बताया कि इसके लिए हिमालय रीजन, उत्तराखण्ड व दक्षिणी क्षेत्र के विभिन्न स्थानों से मोरिंगा के सैंपल भी लिए जाएंगे।

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मोरिंगा सबसे पौष्टिक फसलों में से एक है

कुलपति ने कहा कि मोरिंगा दुनिया के सबसे पौष्टिक फसलों में से एक फसल हैं और इसके अनेकों फायदे हैं। मोरिंगा में कैरोटीन, प्रोटीन, विटामिन सी, कैल्शियम, पोटेशियम और आयरन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। मोरिंगा के अनेक उपयोगों ने वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं और किसानों का ध्यान आकर्षित किया है। उन्होंने फसल की अच्छी पैदावार लेने के लिए जलवायु परिस्थितियों के बारे में बताते हुए कहा कि मोरिंगा 25 से 35 डिग्री के बीच सबसे अच्छा बढ़ता है, लेकिन यह लगभग 48 डिग्री तक तापमान और हल्की ठंड भी सहन कर सकता है।

मोरिंगा की 250 से 1500 मिलीमीटर तक वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में अच्छी पैदावार ली जा सकती है। मोरिंगा फसल के लिए रेतीली दोमट या दोमट मिट्टी उपयुक्त है और यह 6 से 8 के पीएच मान को सहन कर सकता है। इस कार्यशाला में 25 प्रतिभागी भाग ले रहे हैं जिसमें न्यूजीलैंड, डेनमार्क व आस्ट्रेलिया के प्रतिष्ठित संस्थानों के वैज्ञानिकगण अपना व्यखायन देंगे।

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भारत और अफ्रीका में होती है मोरिंगा की खेती

अनुसंधान निदेशक डॉ. राजबीर गर्ग ने बताया कि मोरिंगा को ‘ड्रमस्टिक’ या सहजन के नाम से भी जाना जाता है। यह एक उष्णकटिबन्धीय पेड़ है व भारत और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में इसकी खेती होती है। इसके पेड़ का हर हिस्सा स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है। इसकी पत्तियां प्रोटीन का एक बड़ा स्रोत है और इसमें सभी महत्वपूर्ण एमिनों एसिड भी होते हैं।

मोरिंगा की पत्तियां शरीर में ऊर्जा बढ़ाने के साथ–साथ डायबिटीज, इम्यून सिस्टम, हड्डियों और लीवर सहित विभिन्न बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल की जाती हैं। विभाग के अध्यक्ष डॉ. जयंती टोकस ने बताया कि मोरिंगा पर शोध के लिए विश्वविद्यालय के मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के दो शिधार्थी मेसी यूनिवर्सिटी का दौरा करेंगे। इसी कड़ी में मोरिंगा को लेकर विश्वविद्यालय में इस अंतराष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है।

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