लो प्लास्टिक टनल तकनीक
लो प्लास्टिक टनल ऐसी संरक्षित संरचना है जिसे मुख्या खेत में फसल की रोपाईके बाद प्रत्येतक फसल क्यारी के ऊपर कम ऊचाई पर प्ला्स्िटक की चादर ढक कर बनाइ जाती है। यह फसल को कम तापमान से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए बनाई जाती है। यह तकनीक उत्तरी भारत के उन मैदानो में सब्जियो की बेमौसमी खेती के लिए बहूत उपयोगी है जहॉं सर्दी के मौसम में रात का तापमान लगभग 40 से 60 दिनो तक 8 डीग्री सें.ग्रे.से नीचे रहता है। इस तकनीक से मौसमी सब्जियों उगाने के लिए सब्जियों की पौध को प्लागस्टिक प्लग ट्रे तकनीक से दिसम्बर व जनवरी माह में ही तैयार किया जाता है।
संरचना
ऐसी संरचना बनाने के लिए सबसे पहले ड्रिप सिंचाई की सुविधा युक्त खेत में, जमीन से उठी हुई क्यारियॉ उत्तर से दक्षिण दिशा में बनाई जाती हैं। इसके बाद क्यारियों के मध्य में एक ड्रिप लाइन बिछा दी जाती है । क्यारी के उपर 2 मी.मी. मोटे जंगरोधी लोहे के तारो या पतले व्यास के पाईपों को मोडकर हुक्स या घेरे इस प्रकार बनाते हैं कि इसके दो सिरों की दूरी 50 से 60 सेमी. तथा मध्यम से उचॉई भी 50 से 60 सेमी रहे। तारों के बीच की दूरी 1.5 से 2 मीटर रखनी चाहिए।
इसके बाद तैयार पौध को क्याीरियों में रोपाई करते है तथा दोपहर बाद 20-30 माईक्रोन मोटाई तथा लगभग 2 मीटर चौडाई की, पारदर्शी प्लािस्टिक की चादर से ढका जाता है। ढकने के बाद प्लास्टिक से दबा दिया जाता है। इस प्रकार रोपित फसल पर प्लाीस्टिक की एक लघु सुरंग बन जाती है।
देखभाल
यदि रात को तापमान लगातार 5 डिग्री सें.ग्रे. से कम है तो 7 से 10 दिन तक प्लास्टिसक में छेद करने की आवश्यजकता नही है लेकिन उसके बाद प्लापस्टि क मे पूर्व दिशा की ओर चोटी से नीचे की ओर छोटे छोटे छेद कर देते हैं। जैसे जैसे तापमान बढता है इन छेदों का आकार भी बढाया जाताहै। पहले छेद 2.5 से 3 मीटर की दूरी पर बनाते है, बाद में इन्हेन 1 मीटर की दूरी पर बना देते हैं। आवश्याकता अनुसार मौसम ठीक होने पर तापमान को ध्यान में रखते हुऐ ,
टनल की प्लास्टिक को फरवरी के अंत से मार्च के प्रथम सप्ताचह में पूरी तरह से हटा दिया जाता है। इस समय तक फसल काफी बढ चुकी होती है तथा कुछ फसलों में तो फल स्थासपन भी आरम्भत हो चुका होता है। इस तकनीक से बेल वाली समस्त् सब्जियों को मौसम से पहले या पूर्णत: बेमौसम में उगाना संभव है। विभिन्नभ बेल वाली सब्जियोंमें इस तकनीक से संभावित फसल अगेतापन इस प्रकार है
संभावित फसल दिवस
- कद्दू – 40 से 60 दिन
- लौकी- 30 से 40 दिन
- करेला- 30 से 40 दिन
- खीरा- 30 से 40 दिन
- खरबूजा- 30 से 40 दिन
उपयुक्त स्थान
यह तकनीक उत्तर भारत के मैदानों तथा खासकर बडे शहरों के आसपास सब्जीं की खेती करने वाले किसानो के लिए बहुत लाभदायक है। इस तकनीक को अपनाने से पूर्व किसानो को इन बेल वाली सब्जीयों की पौध का भी संरक्षित क्षेत्र मे ही तैयार करना होगा। यह तकनीक उत्तर भारत के पहाडी क्षेत्रों के लिए भी लाभदायक इस प्रकार किसान प्लास्टिक लो टनल तकनीक से अगेती या बेमौसमी फसल उगाकर अधिक लाभ कमा सकते हैं क्योकि अगेती व बेमौसमी फसलो का बाजार भाव अधिक रहता है।