खेजड़ी जिसे रेगिस्तान का राजा भी कहा जाता है यह मनुष्यों, किसानों और पशुओं के साथ ही फसलों के लिए भी लाभकारी है। जिसको देखते हुए चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में खेजड़ी के संरक्षण और बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक बैठक का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने की। बैठक में नलवा के विधायक रणधीर पनिहार, विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बी.आर. काम्बोज व अन्य अधिकारी उपस्थित रहे।
हरियाणा के राज्यपाल व विश्वविद्यालय के कुलाधिपति बंडारू दत्तात्रेय ने कहा कि खेजड़ी शुष्क क्षेत्र का बहुत महत्वपूर्ण वृक्ष है। इसका सम्पूर्ण भाग मनुष्य और पशुओं के लिए लाभदायक है तथा पर्यावरण को संतुलित करने में अहम भूमिका निभाता है। खेजड़ी एक नाइट्रोजन-फिक्सिंग पेड़ है जो मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाता है। खेजड़ी का उपयोग आयुर्वेद और अन्य पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों का उपयोग लंबे समय से विभिन्न बीमारियों के इलाज में किया जाता रहा है।
खेजड़ी के पेड़ों के संरक्षण को दिया जाएगा बढ़ावा
खेजड़ी के औषधीय और अन्य गुणों के चलते इसके वृक्षों का संरक्षण व इसको बढ़ावा दिया जाएगा। इसके लिए विश्वविद्यालय द्वारा शोध कर किसानों को पौधे उपलब्ध कराए जाएँगे। इसके लिए किसानों और युवाओं को प्रोत्साहित किया जाएगा। साथ ही सामाजिक संगठनों व कार्यकर्ताओं को भी इस मुहिम से जोड़ा जाएगा ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को प्रोत्साहित किया जा सके। विधायक रणधीर पनिहार ने इस अवसर पर कहा कि किसान खेतों की बाउंड्री पर खेजड़ी के पेड़ जरूर लगाएं। साथ ही विश्वविद्यालय को शोध के लिए ज़मीन व अन्य प्रकार की सहायता देने का भी आश्वासन दिया।
खेजड़ी के पेड़ों से बढ़ता है फसलों का उत्पादन
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी. आर. काम्बोज ने बताया कि खेजड़ी जिसे रेगिस्तान का राजा भी कहा जाता है, पारंपरिक वानिकी प्रणालियों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। हरियाणा में मुख्य रूप से सिरसा, फतेहाबाद, हिसार, भिवानी, महेंद्रगढ़, रेवाड़ी और चरखी दादरी जिलों में पाया जाता है। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वानिकी विभाग द्वारा किए गए परीक्षण में पाया गया है कि खेजड़ी के साथ जो फसलें बोई जाती है उस फसल की उत्पादकता सामान्य से अधिक होती है। यह मिट्टी की उर्वरा क्षमता को बढ़ाता है।
इस वृक्ष की फलियाँ स्थानीय रूप से सांगरी के रूप में जानी जाती है, जिसमें पोषक तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं। खेजड़ी की फलियाँ जिनका मूल्य संवर्धन करके सब्जी, आचार, लड्डू, चटनी, बिस्किट इत्यादि खाद्य उत्पाद निर्मित करके पोषण सुरक्षा व उद्यमिता को बढ़ावा मिल सकता है। इस पेड़ की छाल का अर्क का उपयोग बिच्छु और सांप के काटने के लक्षणात्मक उपचार में किया जाता रहा है, यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि खेजड़ी थार रेगिस्तान के नाजुक पारिस्थितिक तंत्र में एक आधारशिला प्रजाति है।