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शुक्रवार, अप्रैल 19, 2024
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कृषि क्षेत्र को केन्द्रीय बजट 2023-24 में उच्च प्राथमिकता से किसानों में बढ़ती आत्मनिर्भरता

किसानों को आत्मनिर्भरता की ओर ले जाता बजट

देश को कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने एवं किसानों की आय दुगनी करने के लिये हमारी सरकार वर्ष 2015-16 से 2022-23 में लगातार कृषि मंत्रालय एवं किसान कल्याण एवं कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग को उच्च प्राथमिकता दे रही है। वर्ष 2015-16 के दौरान कृषि एवं किसान कल्याण के लिए बजट आवंटन 24,460.51 करोड़ रुपये था जबकि कृषि क्षेत्र के लिए 2023-24 में कुल 1.25 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जबकि वित्त वर्ष 2022-23 में लगभग 1.24 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था। सरकार ने खेती और किसानों के लिए कई योजनायें शुरू की है। सरकार ने किसानों की आय बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं।

फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्यों (MSP) को बढ़ाकर इसमें दलहन, तिलहन फसलों को शामिल किया गया। उत्पादन खर्च कम करने के लिए उन्नत बीजों, उर्वरकों, बेहतर सिंचाई एवं कृषि को समय से निष्पादन के लिये फ़ार्म मशीनरी के लिये 30-50 प्रतिशत तक अनुदान उपलब्ध है। सरकार बजट में प्राकृतिक एवं ऑर्गनिक खेती को बढ़ाबा दे रही है जिससे एक करोड़ किसानों को लाभ होगा एवं कार्बन उत्सर्जन कम करने में मदद मिलेगी। पोषण एवं रोजगार की दृष्टिकोण से बागवानी, पशु-पालन और मछली-पालन इस क्षेत्र में भी कई विशेष योजनाओं को शुरू किया गया है। किसानों की आय दुगनी करने के लिये सरकार ने ढांचागत एवं अवसंरचनात्मक सुधार हेतु विभिन्न कृषि योजनाओं को लागू किया।

1 अप्रैल से लागू होगा बजट

केन्द्रीय बजट भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 के तहत वार्षिक वित्तीय विवरण के रूप में प्रत्येक वर्ष निर्दिष्ट किया जाता है जिसे प्रत्येक वर्ष फरवरी के पहले कार्य-दिवस को भारत के वित्त मंत्री द्वारा संसद में पेश किया जाता है। इससे पहले इसे फरवरी के अंतिम कार्य-दिवस को पेश किया जाता था। भारत के वित्तीय वर्ष की शुरूआत, अर्थात 1 अप्रैल से इसे लागू करने से पहले बजट को सदन द्वारा पारित करना आवश्यक होता है।

बजट 2023-24 में कृषि क्षेत्र के लिए किया गया 1.25 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान

वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण 5वीं बार केन्द्रीय बजट 2023-24 का प्रस्तुत किया है। केंद्र सरकार ने साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का प्रावधान रखा था। हालांकि, सरकार ने खेती-किसानी को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएँ शुरू की गयी हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि यूनियन बजट 2023 में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा किसानों की आय बढ़ाने के लिए बजट में कई प्रावधान किये गये। वित्त वर्ष 2022-23 के लिए कृषि क्षेत्र के लिए सरकार ने 1.24 लाख करोड़ रुपये का आबंटन किया था। यह वित्त वर्ष 2023-24 के 1.25 लाख करोड़ रुपये के आबंटन किया।

कोरोना महामारी के कारण वर्ष 2021-22 आर्थिक गतिविधियां ठप हो गई थी। इसका सीधा असर इकोनॉमिक ग्रोथ पर पड़ा था। जीडीपी बढ़ने के बजाय घट गई थी। ऐसे समय में भी कृषि क्षेत्र ने अच्छी ग्रोथ दिखाई थी। पिछले दो वर्षों में कृषि क्षेत्र में विकास देखा गया। देश के कुल मूल्यवर्धन (जीवीए) में महत्वपूर्ण 18.8 प्रतिशत (2021-22) की वृद्धि हुई, इस तरह 2020-21 में 3.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई और 2021-22 में 3.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नीति का उपयोग फसलों के विविधिकरण को प्रोत्साहित करने में मदद मिलेगी । सरकार ने खेती और किसानों के लिए कई योजनाएँ शुरू की है।

बजट में मोटे अनाज को बढ़ावा देने के लिए किए गए प्रावधान

केंद्र सरकार ने बजट (Budget 2023-24) में मोटे अनाजों के उत्पादन (Millet Food) पर किसानों को विशेष प्रोत्साहन दे सकती है। यह प्रोत्साहन मोटे अनाजों के उत्पादन पर न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी और फसलों के बीज-खाद में छूट के रूप में हो सकती है। मोटे अनाज का उपयोग कर प्रोसेस्ड फूड बनाने वाली कंपनियों को भी बजट में प्रोत्साहन दिया। सरकार का अनुमान है कि मोटे फसलों के उत्पादन को बढ़ोतरी देकर न केवल किसानों की आय बढ़ाई जा सकती है, बल्कि इससे कुपोषण और जल संकट जैसी समस्याओं से निबटने में मदद भी मिल सकती है। इस बार बजट में किसानों की आय को दोगुना बढ़ाने के लिए सरकार ने कई नई योजनाओं का प्रावधान किया है।

बजट में कृषि अनुसंधान के लिए 9,504 करोड़ रुपए का प्रावधान

इस बजट में कृषि अनुसंधान और शिक्षा के लिए वर्ष 2023-24 के लिए 9,504 करोड़ दिए गए हैं। इससे उच्च गुणवत्ता उपज, जैविक खेती के साथ बीज गुणवत्ता और फसलों में लगने वाले रोगों की रोकथाम करने, नए बीजों की उन्नत किस्मों पर शोध और प्रसंस्करण पर काम किया जाएगा। इसके अलावा बजट में केंद्र सरकार ने किसानों के लिए और भी कई लाभकारी योजनाओं की घोषणा की है।

सकल पूंजी निर्माण 

वर्ष 2020-21 में स्थिर मूल्य (2011-12) पर वास्तविक जीडीपी 134.40 लाख करोड़ रुपए रहने का अनुमान है। जबकि 2019-20 में जीडीपी का शुरुआती अनुमान 145.66 लाख करोड़ रुपए रहा था। एनएसओ की रिपोर्ट के अनुसार कोरोना महामारी और लॉक डाउन के दौरान कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है। ऐसे में चालू वित्त वर्ष में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 3.5 फीसदी रहने का अनुमान है जबकि अन्य क्षेत्रों में वृद्धि दर कोरोना विश्व व्यापी महामारी के कारण निचले स्तर पर संकुचित रही।

राष्ट्रीय आय का पहला अग्रिम अनुमान, वित्तीय वर्ष 2022-23 में स्थिर (2011-12) कीमतों पर वास्तविक जीडीपी 157.60 लाख करोड़ रुपये अनुमानित है, जबकि 2021-22 के लिए अनंतिम अनुमान 147.36 लाख करोड़ रुपये था। यानी 2022-23 में वास्तविक जीडीपी में वृद्धि 7% अनुमानित है 2021-22 में 8.7 प्रतिशत थी वित्त वर्ष 2023 में कृ​षि क्षेत्र का प्रदर्शन बेहतर रहने की उम्मीद है। 

प्राकृतिक जैविक खेती को बढ़ावा 

वित्त मंत्री जी ने प्राकृतिक खेती के लिए अगले तीन वर्षों में 10,000 भारतीय प्राकृतिक खेती जैव-इनपुट संसाधन केंद्र स्थापित करने की भी घोषणा की। उन्होंने कहा अगले तीन वर्षों में 1 करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने की सुविधा प्रदान करेंगे। इसके लिए 10,000 जैव-इनपुट संसाधन केंद्र स्थापित किए जाएंगे, जो राष्ट्रीय स्तर पर माइक्रो-उर्वरक और कीटनाशक वितरण के नेटवर्क का निर्माण करेंगे।

भारत में अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष 2023 

केंद्र सरकार ने पिछले बजट के दौरान ही वर्ष 2023 को मिलेट वर्ष के रूप में मनाने की घोषणा कर दी थी। इसके बाद  संयुक्त राष्ट्र के स्तर पर 2023 को मिलेट ईयर घोषित किया गया। इस प्रस्ताव को 70 देशों का समर्थन भी मिला था। केंद्र सरकार बजट (Budget 2023-24) में मोटे अनाजों के उत्पादन (Millet Food) पर किसानों को विशेष प्रोत्साहन दे सकती है। यह प्रोत्साहन मोटे अनाजों के उत्पादन पर न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी और फसलों के बीज-खाद में छूट के रूप में हो सकती है।

मोटे अनाज का उपयोग कर प्रोसेस्ड फूड बनाने वाली कंपनियों को भी बजट में प्रोत्साहन दिया जा सकता है। मोटे अनाजों से किसानों की आय बढ़ाई जा सकती है तथा खाद्य सुरक्षा एवं कुपोषण और जल संकट जैसी समस्याओं के समाधान में मदद भी मिल सकती है।

बाजरा के क्षेत्र में लाए किए जाएँगे बड़े सुधार

बाजरा उत्पादक बड़े पैमाने पर छोटे और सीमांत किसान लोग करते हैं जो कि ज्यादातर कम वर्षा वाले क्षेत्रों में हैं । यहां एकीकृत मूल्य श्रृंखलाओं का विकास सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण होगा, जिसमें एक विविध बाजार बनाना, व्यवस्थित प्रशिक्षण देना और सबसे महत्वपूर्ण, अभी तक अछूते वैश्विक बाजार की मांग को पूरा करने के लिए बाजरा का प्रसंस्करण और ब्रांडिंग करना आवश्यक होगा। वर्ष 2023 का बजट केंद्र सरकार को बाजरा के क्षेत्र में बड़े सुधार लाने के लिए एक बड़ा अवसर प्रदान करता है।

जनवरी 2023 के महीने में भारत सरकार और उसके मंत्रालय राज्य सरकार के सहयोग से अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष मनाने के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं। केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय आंध्र प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में बाजरा मेला-सह-प्रदर्शनियों का आयोजन किया। कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के साथ केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय बेल्जियम में बाजरा पर एक व्यापार शो में भाग लेंगे।

खाद्य एवं पोषण सुरक्षा में बाजरे की सक्रिय भूमिका 

देश में खाद्य एवं पोषण सुरक्षा में छोटे और सीमांत किसानों की आय में बढ़ोतरी करने की आवश्यकता पर ध्यान आकर्षित किया है और बाजरा इसके लिए सबसे अच्छे विकल्पों में से एक साबित हो सकता है। बाजरा हमारे देश की जलवायु अनुकूल फसल है जिसका उत्पादन पानी की कम खपत, कम कार्बन उत्सर्जन और सूखे से निपटने की क्षमता होती है। बाजरा सूक्ष्म पोषक तत्वों, विटामिन और खनिजों का भंडार है। 

अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष 2023, खाद्य सुरक्षा और पोषण के लिए बाजरे के योगदान में जागरूकता फैलाएगा, बाजरे का उत्पादन निरंतर करने और इसकी गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए हितधारकों को प्रेरित करेगा और अनुसंधान तथा विकास कार्यों में निवेश को बढ़ावा देने के लिए ध्यान आकर्षित करेगा। एशिया और अफ्रीका बाजरे के प्रमुख उत्पादन और उपभोग करने वाले क्षेत्र हैं। भारत बाजरा का प्रमुख उत्पादक देश है जिसमें ज्वार, बाजरा, रागी और छोटे बाजरा के साथ-साथ कंगनी, कुटकी या छोटा बाजरा, कोदों, गंगोरा या बार्नयार्ड, चीना और ब्राउन टॉप शामिल हैं।

केंद्रीय बजट 2023-24 में कृषि क्षेत्र एवं किसानों सौगात

  • किसानों को 20 लाख क्रेडिट कार्ड : केंद्र सरकार ने किसानों की सहूलियत के लिए ऋण का दायरा बढ़ा दिया है। इस साल 20 लाख करोड़ तक किसानों को क्रेडिट कार्ड के जरिए ऋण बांटने का लक्ष्य रखा गया है। इससे लाखों किसानों को फायदा होगा।
  • पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन : चालू वित्त वर्ष 2022-23 के लिए कृषि ऋण लक्ष्य 18 लाख करोड़ रुपये है। वित्त वर्ष 2023-24 को यूनियन बजट में पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन पर ध्यान देने के साथ वित्त वर्ष 2023-24 के लिए कृषि ऋण लक्ष्य में 11 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर 20 लाख करोड़ रुपये करने की घोषणा की है।
  • किसान डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर : किसानों के लिए अब किसान डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर प्लेटफॉर्म तैयार किया जाएगा। यहां किसानों के लिए उनकी जरूरत से जुड़ी सारी जानकारी उपलब्ध होगी।
  • एग्री स्टार्टअप को बढ़ावा : केंद्र सरकार ने कृषि के क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा स्टार्टअप शुरू करवाने पर फोकस किया है। कृषि स्टार्टअप के लिए डिजिटल एक्सीलेटर फंड बनेगा जिसे कृषि निधि का नाम दिया गया है। इसके जरिए कृषि के क्षेत्र में स्टार्टअप शुरू करने वालों को सरकार की तरफ से मदद दी जाएगी।
  • मोटे अनाज को बढ़ावा : सरकार ने इस बार मोटे अनाज को बढ़ावा देने के लिए अलग से योजना की शुरुआत की है। इसे श्री अन्न योजना नाम दिया गया है। इसके जरिए देशभर में मोटे अनाज के उत्पादन और उसकी खपत को बढ़ावा दिया जाएगा।
  • बागवानी को बढ़ावा: सरकार ने इस बार बजट में बागवानी की उपज के लिए 2,200 करोड़ की राशि आवंटित की है। इसके जरिए बागवानी को बढ़ावा देने का फैसला लिया गया है। आत्‍मनिर्भर स्‍वच्‍छ पादप कार्यक्रम पर उच्च मूल्य वाली बागवानी फसलों के लिए सामग्री की उपलब्धता को बढ़ावा देने के लिए ‘आत्मनिर्भर स्वच्छ संयंत्र कार्यक्रम’ शुरू करेगी।
  • मछली पालन को बढ़ावा : केंद्र सरकार ने मत्स्य संपदा की नई उपयोजना में 6000 करोड़ के निवेश का फैसला लिया है। इसके जरिए मछुआरों को बीमा कवर, वित्तीय सहायता और किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा भी प्रदान की जाती है। इसका उद्देश्य ग्रामीण संसाधनों का उपयोग करके ग्रामीण विकास और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को तेज़ी से बढ़ावा देना है।
  • सहकारी समितियों, प्राथमिक मत्स्य एवं डेयरी सहकारी समितियों की स्थापना : बजट में 2,516 करोड़ रुपये के निवेश से 63,000 प्राथमिक कृषि ऋण समितियों का कम्प्यूटरीकरण किया जा रहा है, इनके लिए राष्ट्रीय डेटाबेस तैयार किया जा रहा है, इसके साथ बड़े पैमाने पर विकेंद्रीकृत भंडारण क्षमता स्थापित की जाएगी, इससे किसानों को अपनी उपज को स्टोर करने और अपनी उपज के लिए बेहतर मूल्य प्राप्त करने में मदद मिलेगी। 
  • प्राकृतिक खेती के लिए सरकार द्वारा मदद: सरकार, अगले 3 वर्षों में एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए मदद मुहैया कराएगी। देश में 10,000 जैव इनपुट संसाधन केंद्र स्थापित किए जाएंगे।
  • डिजिटल जन-अवसंरचना को एग्री-टेक उद्योग : कृषि के लिए डिजिटल जन-अवसंरचना को एग्री-टेक उद्योग और स्‍टार्टअप्‍स को बढ़ावा देने के लिए आवश्‍यक सहयोग प्रदान करने और किसान केन्द्रित समाधान उपलब्‍ध कराने के उद्देश्‍य से तैयार किया जाएगा।
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कृषि ऋण में बढ़ोत्तरी 

किसानों को कम अवधि के लिए आसानी से लोन (ऋण) उपलब्ध करवाने के लिए कृषि में बढ़ते लागत खर्च तथा वैज्ञानिक तरह से खेती करने के लिए पूंजी की जरुरत होती है। इसके लिए किसान के पास समय पर वित्तीय सुविधा मौजूद नहीं होती है जिससे किसान समय पर बीज, उर्वरक कीटनाशक, तथा जुताई, श्रमिकों के लिए धन उपलब्ध नहीं हो पाता, इससे फसलों के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। योजना से किसान 4 प्रतिशत के ब्याज पर ऋण प्राप्त कर सकते हैं। कृषि क्षेत्र में डिजिटल इंडिया महत्वपूर्ण योगदान से इससे संस्थागत ऋण में वृद्धि हुई है।krishi kshetra me kisan loan

वर्ष 2015-16 किसानों को लघु अवधि या फसली ऋण 85 लाख करोड़ रुपए, मध्यम एवं दीर्घ अवधि ऋण जो बढ़कर क्रमश: वर्ष 2018-19 में 116 लाख करोड़ करोड़ हो गया एवं वर्ष 2022-23 में बढ़कर 186 लाख करोड़ बढ़ा जिससे किसानों को समय की बचत एवं सीधा उनके खाते में पैसे जमा हुये (चित्र.1)। वर्ष 2020-21 में 15 लाख करोड़ रुपये का पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन पर ध्यान देने के साथ ऋण प्रदान करने का लक्ष्य रखा गया था। 

चालू वित्त वर्ष 2022-23 के लिए कृषि ऋण का लक्ष्य 18 लाख करोड़ रुपये है। वित्त वर्ष 2023-24 को यूनियन बजट में वित्त वर्ष 2023-24 के लिए कृषि ऋण लक्ष्य में 11 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर 20 लाख करोड़ रुपये करने की घोषणा की। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना की एक नई उप-योजना 6,000 करोड़ रुपये के लक्षित निवेश के साथ शुरू की जाएगी, ताकि मछुआरों, मछली विक्रेताओं को रोजगार के बेहतर अवसर और सूक्ष्म और लघु उद्यमों की गतिविधियों को और सक्षम बनाया जा सके, मूल्य श्रृंखला क्षमता में सुधार किया जा सके।

किसान क्रेडिट कार्ड

किसानों को आसानी से ऋण प्रदान कराने के लिये सरकार ने किसान क्रेडिट कार्ड किसानों को जारी किये गए । वर्ष  2014-15 में 7.41 करोड़ किसान क्रेडिट कार्ड्स किसानों को जारी किये गए एवं उनके द्वारा 5.20 लाख करोड़ ऋण बकाया है जो बढ़कर वर्ष 2016-17 में किसानों को सबसे अधिक 17.66 करोड़ किसान क्रेडिट कार्ड्स जारी किये गए एवं किसानों का 6.86 लाख करोड़ ऋण बकाया है। जबकि वर्ष 2018-19 में किसानों को कम 15.05 करोड़ किसान क्रेडिट कार्ड्स पैकेज के हिस्से के रूप में डेढ़ करोड़ डेयरी उत्पादकों और दुग्ध निर्माता कंपनियों को किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) प्रदान करने का लक्ष्य रखा गया था।

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स्त्रोत: एग्रीकल्चर एट ए ग्लैन्स 2018-19

आंकड़ों के अनुसार मध्य जनवरी, 2021 तक कुल 44,673 किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) मछुआरों और मत्स्य पालकों को उपलब्ध कराए गए थे, जबकि इनके अतिरिक्त मछुआरों और मत्स्य पालकों के 4.04 लाख आवेदन बैंकों में कार्ड प्रदान करने की प्रक्रिया के विभिन्न चरणों में हैं। किसानों को 6.76 करोड़ किसान क्रेडिट कार्ड्स जारी किये गए। किसानों को वित्तीय वर्षों 2022-23 और 2023-24 के दौरान 4% प्रति वर्ष की दर से अल्पावधि फसल ऋण /या पशुपालन, डेरी, मत्स्य पालन, मधुमक्खी पालन आदि सहित संबद्ध गतिविधियों के लिए अल्पावधि ऋण मिलेगा।

प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना चतुर्थ 

वित्त वर्ष 2023-24 के बजट में रोजगार के लिए वित्त मंत्री ने प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना 4.0 का ऐलान किया है, जिसके तहत देश के युवाओं को नए जमाने की टॉप टेक्नोलॉजी के बारे में प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसके लिए देश भर में 30 स्किल इंडिया इंटरनेशनल सेंटर बनाए जाएंगे। इतना ही नहीं, वित्त मंत्री ने स्किल इंडिया डिजिटल प्लेटफॉर्म भी शुरू करने की घोषणा की है जो 3 वर्ष में लाखों युवाओं को कौशल विकास योजना प्रदान करने के लिए प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना 4.0 की शुरुआत की जाएगी। 

नई पीढ़ी के आर्टीफिशियल इंटेलिजेंस, रोबो-टिक्‍स, मेकाट्रॉनिक्‍स, आई ओ टी, 3 डी प्रिंटिंग  ड्रोन और सॉफ्ट स्किल जैसे पाठ्यक्रम शामिल किए जाएंगे। एमएसएमई योजना के लिए ऋण गारंटी योजना को नवीनीकृत किया गया है। यह पहली अप्रैल 2023 से धनराशि 9,000 करोड़ रुपये जोड़कर क्रियान्वित होगी। इसके अतिरिक्‍त इस योजना के माध्‍यम से 2 लाख करोड़ रुपये का संपार्श्विक मुक्‍त गांरटीयुक्‍त ऋण संभव हो पाएगा। इसके अलावा ऋण की लागत में करीब 1 प्रतिशत की कमी आएगी।

कोडिंग, रोबोटिक्स पाठ्यक्रम 

वित्त मंत्री ने कहा कि ये योजना इंडस्ट्री 4.0 जैसे कोडिंग, एआई (artificial intelligence), रोबोटिक्स, मेकाट्रॉनिक्स, आईओटी, 3डी प्रिंटिंग, ड्रोन और सॉफ्ट स्किल जैसे नये दौर के पाठ्यक्रमों को शामिल करेगी। युवाओं को अंतरराष्ट्रीय अवसरों के लिए कौशल प्रदान करने के लिए अलग-अलग राज्यों में 30 स्किल इंडिया इंटरनेशनल सेंटर की स्थापना की जाएगी। 

स्किल इंडिया डिजिटल प्लेटफॉर्म

वित्त मंत्री ने कहा कि डिमांड बेस्ड औपचारिक कौशलवर्द्धन सक्षम करने, एमएसएमई सहित नियोक्ताओं के साथ जोड़ने और उद्यमिता (Entrepreneurship) योजनाओं की सुलभता सुगम करने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए एकीकृत स्किल इंडिया डिजिटल प्लेटफॉर्म की शुरुआत की जाएगी। स्किल इंडिया डिजिटल प्लेटफॉर्म की मदद से कौशलवर्द्धन के लिए डिजिटल इकोसिस्टम को और विस्तार प्रदान किया जाएगा।

राष्ट्रीय प्रशिक्षुता प्रोत्साहन योजना

अखिल भारतीय राष्ट्रीय प्रशिक्षुता प्रोत्साहन योजना (National Apprenticeship Promotion Scheme) के तहत 3 सालों में 47 लाख युवाओं को स्टाइपेंड सपोर्ट देने के लिए डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर शुरू किया जाएगा । अगले तीन वर्षों में लाखों युवाओं को कौशल सम्‍पन्‍न बनाने के लिए शुरू की जाएगी और इसमें उद्योग जगत 4.0 कृषि के लिए डिजिटल जन-अवसंरचना को एग्री-टेक उद्योग और स्‍टार्टअप्‍स को बढ़ावा देने के लिए आवश्‍यक सहयोग प्रदान करने और किसान केन्द्रित समाधान उपलब्‍ध कराने के उद्देश्‍य से तैयार किया जाएगा। 

क्या कृषि क्षेत्र आत्मनिर्भर बनेगा?

कृषि क्षेत्र के लिए केंद्र सरकार से संसाधनों का प्रावधान राज्यों की संसाधन आवश्यकताओं का पूरक होना चाहिए । वित्त वर्ष 2023-24  में अमृत काल में प्रवेश कर रहा बजट 2023 अगले 25 वर्षों के लिए कृषि क्षेत्र की दिशा तय करेगा। 2023 का बजट यह तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा कि क्या कृषि क्षेत्र आत्मनिर्भर बनेगा। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने विपणन सीजन 2023-24 के लिए सभी अनिवार्य रबी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि को मंजूरी दे दी है।

सरकार ने रबी फसलों के विपणन सीजन 2023-24 के लिए एमएसपी में वृद्धि की है, ताकि उत्पादकों को उनकी उपज के लिए लाभकारी मूल्य सुनिश्चित किया जा सके। मसूर के लिए 500/- रुपये प्रति क्विंटल और इसके बाद पीली सरसों व सरसों के लिए 400/-रुपये प्रति क्विंटल एमएसपी में पूर्ण रूप से उच्चतम वृद्धि को मंजूरी दी गई है । कुसुंभ के लिए 209/- रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि को मंजूरी दी गई है। गेहूं, चना और जौ के लिए क्रमशः 110 रुपये प्रति क्विंटल और 100 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि को मंजूरी दी गई है ।

विभिन्न फसलों की उत्पादन लागत

फसलों के लागत के संदर्भ में किराए पर नियुक्त किए गए श्रमिक के लिए खर्च की गई लागत के साथ सभी भुगतान की गई लागतें शामिल होती हैं। इनमें श्रम, बैल श्रम/ मशीन श्रम, भूमि में पट्टे के लिए भुगतान किया गया किराया बीज उर्वरक, किराया, बीज, खाद, सिंचाई शुल्क, उपकरणों और कृषि भवनों पर मूल्यह्रास, कार्यशील पूंजी पर ब्याज, डीजल/बिजली के संचालन के लिए सामग्री के उपयोग पर किए गए खर्च पंप सेट आदि, विविध, पारिवारिक श्रम का खर्च और इम्प्यूटिट मूल्य भी शामिल है।

विपणन सीजन 2023-24 के लिए रबी फसलों के लिए एमएसपी में वृद्धि केंद्रीय बजट 2018-19 की घोषणा के अनुरूप है, जिसमें एमएसपी को अखिल भारतीय औसत उत्पादन लागत के 1.5 गुना के स्तर पर तय किया गया है। जिसका लक्ष्य किसानों के लिए उचित पारिश्रमिक तय करना है। पीली सरसों और सरसों के लिए अधिकतम रिटर्न की दर 104 प्रतिशत है, इसके बाद गेहूं के लिए 100 प्रतिशत, मसूर के लिए 85 प्रतिशत है, चने के लिए 66 प्रतिशत, जौ के लिए 60 प्रतिशत और कुसुम के लिए 50 प्रतिशत है (तालिका 1.)। 

तालिका 1. वर्ष 2023-24 के लिए रबी फसलों के लिए MSP (रुपये प्रति क्विंटल)
rabi crop msp 2023
रबी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2023-24

दलहन तिलहन के उत्पादन को दिया जा रहा है बढ़ावा

वर्ष 2014-15 से तिलहन और दलहन के उत्पादन को बढ़ाने पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित किया गया है। इन प्रयासों के अच्छे परिणाम मिले हैं। तिलहन उत्पादन 2014-15 में 27.51 मिलियन टन से बढ़कर 2021-22 में 37.70 मिलियन टन (चौथा अग्रिम अनुमान) हो गया है। दलहन उत्पादन में भी इसी तरह की वृद्धि की प्रवृत्ति दर्ज की गई है। बीज मिनीकिट कार्यक्रम किसानों के खेतों में बीजों की नई किस्मों को पेश करने का एक प्रमुख साधन है और बीज प्रतिस्थापन दर को बढ़ाने में सहायक है। वर्ष 2014-15 के बाद से दलहन और तिलहन की उत्पादकता में काफी वृद्धि हुई है। 

दलहन के मामले में उत्पादकता 728 किग्रा/हेक्टेयर (2014-15) से बढ़ाकर 892 किग्रा/हेक्टेयर हो गया है जिसमें में 22.53 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसी प्रकार तिलहन फसलों में उत्पादकता 1075 किग्रा/हेक्टेयर (2014-15) से बढ़ाकर 1292 किग्रा/हेक्टेयर (चौथा अग्रिम अनुमान, 2021-22) कर दी गई है। अधिक उपज वाली किस्मों (एचवाईवी) क्षेत्र के विस्तार, एमएसपी समर्थन और खरीद के माध्यम से उत्पादन बढ़ाने के लिए रणनीतियां तैयार की गई हैं।

स्मार्ट फ़ार्मिंग को बढ़ावा

साइबर-भौतिक फार्म प्रबंधन में (एआई) कृत्रिम बुद्धिमत्ता कंप्यूटर विज्ञान की एक ऐसी शाखा है, जिसका काम बुद्धिमान मशीन बनाना है। हाल ही में सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग और गूगल के बीच इस बात पर सहमति बनी है कि दोनों भारत की उदीयमान कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence-AI) और मशीन लर्निंग (Machine Learning-ML) के पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कई पहलों पर मिलकर एक साथ काम करेंगे, जिससे देश में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का पारिस्थितिक तंत्र निर्मित करने में मदद मिलेगी। 

smart farming

नीति आयोग को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी प्रौद्योगिकियाँ विकसित करने और अनुसंधान के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। सरकार देश में कृषि क्षेत्र में प्रौद्योगिकी और नवाचार के उपयोग के माध्यम से स्मार्ट खेती के तरीकों को अपनाने को भी बढ़ावा दे रही है। सरकार एक डिजिटल कृषि मिशन (डीएएम) लागू कर रही है, जिसमें भारत कृषि का डिजिटल इकोसिस्टम (आईडीईए), किसान डेटाबेस, एकीकृत किसान सेवा इंटरफेस (यूएफएसआई) सूचना प्रौद्योगिकी से आकड़ों प्रबंधन करेगी (चित्र.3)। 

नई तकनीक पर राज्यों को वित्त पोषण (एनईजीपीए), महालनोबिस राष्ट्रीय फसल पूर्वानुमान केंद्र (एमएनसीएफसी), मृदा स्वास्थ्य, उर्वरता और प्रोफाइल मैपिंग में सुधार करना शामिल है। एनईजीपीए कार्यक्रम के तहत उभरती प्रौद्योगिकियों जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग (एआई/एम एल), इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी), ब्लॉक चेन आदि का उपयोग करके डिजिटल कृषि परियोजनाओं के लिए राज्य सरकारों को वित्त पोषण दिया जाता है।

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कृषि में ड्रोन का उपयोग

ड्रोन प्रौद्योगिकियों को अपनाने का कार्य किया जा रहा है। स्मार्ट खेती को बढ़ावा देने के लिए, सरकार कृषि क्षेत्र में स्टार्टअप को भी बढ़ावा देती है और कृषि-उद्यमियों का पोषण करती है। सूचना प्रौद्योगिकी तकनीक विभिन्न रिमोट सेंसर को जोड़ने में सक्षम है जैसे रोबोट, ग्राउंड सेंसर और ड्रोन, जैसे यह प्रौद्योगिकी इंटरनेट का उपयोग करके उपकरणों को एक साथ जोड़ने की अनुमति देती है (चित्र 4.)।

बजट 2023-24 में उर्वरक अनुदान में वृद्धि 

केंद्रीय बजट में सिंचाई सुविधाओं और फसल बीमा योजना के विकास के लिए अतिरिक्त बजटीय आवंटन की आवश्यकता हो सकती है। चालू वर्ष में बैंकों को अधिक कृषि ऋण संवितरित करने के लिए भी प्रेरित किया जा सकता है। उर्वरक आदानों की बढ़ती कीमतों और वैश्विक उर्वरक कीमतों में वृद्धि के बीच, वर्तमान केंद्रीय बजट में उर्वरकों के लिए सब्सिडी में तेजी से वृद्धि होने की संभावना है। वित्त वर्ष 23 में उर्वरक क्षेत्र की सब्सिडी के लिए कुल सब्सिडी की आवश्यकता 2.50 ट्रिलियन रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है, जो पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 55% अधिक है। रेटिंग एजेंसी आईसीआरए को उम्मीद है कि वित्त वर्ष 24 में उर्वरक सब्सिडी आवंटन को इन स्तरों से और बढ़ाया जाएगा ताकि उर्वरकों की उच्च कीमत का ध्यान रखा जा सके और यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसान की फसल की पैदावार प्रभावित न हो।

मीठी क्रांति (मधुमक्खी पालन)

देश में मीठी क्रांति (मधुमक्खी पालन) के माध्यम से कृषि क्षेत्र में 4.60 लाख रोजगार सृजित होंगे। बजट में इसका प्रावधान किया गया है। वैसे कृषि मंत्रालय की यह योजना 2022-21 से शुरू हुई थी। इसका मकसद किसानों को आय के वैकल्पिक माध्यम उपलब्ध कराना था। इसके लिए केंद्र सरकार उत्पादन से लेकर गुणवत्ता और विपणन तक के लिए उत्पादकों को मंच उपलब्ध कराती है। इसके तहत 2023 तक शहद के उत्पादन को 16 लाख मीट्रिक टन से बढ़ाकर 42 लाख मीट्रिक टन करना है।

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कृषि-उद्यमियों और एग्रीटेक को प्रोत्साहन 

जब कृषि बिल पहली बार प्रस्तावित किया गया था, तो विचार यह था कि किसानों को अपने उत्पादों को बेचने के लिए अधिक व्यापक छूट दी जाए, ताकि किसानों को एक व्यापक बाजार (पारंपरिक मंडियों से अलग) मिलता और सरकार उन्हें धन और प्रौद्योगिकी का समर्थन करती है, तो इसका परिणाम एक लंबी छलांग हो सकती थी। सरकार को प्रौद्योगिकी और एग्रीटेक उद्यमियों पर ध्यान केंद्रित करने लिए राष्ट्रीय डेटाबेस तैयार किया जा रहा है, इसके साथ बड़े पैमाने पर विकेंद्रीकृत भंडारण क्षमता स्थापित की जाएगी, इससे किसानों को अपनी उपज को स्टोर करने और अपनी उपज के लिए बेहतर मूल्य प्राप्त करने में मदद मिलेगी। 

सरकार महत्वपूर्ण कृषि इनपुट सूचनाओं के अधिक तेजी से साझाकरण को सुनिश्चित करने के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग के साथ शुरुआत कर सकती है। इसमें मौसम की स्थिति, मौसम अनुमान, अखिल भारतीय मूल्य, मंडी स्टॉक आदि जैसे डेटा बिंदु शामिल हो सकते हैं। यह किसानों को रीयल टाइम डेटा के आधार पर बेहतर निर्णय लेने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है। 

सरकार को बाजार में कृषि-स्टार्ट-अप को प्रोत्साहित करने के लिए एक समर्पित नीति बनानी चाहिए। सिंचाई, सूचना साझा करने, आनुवंशिक बीज आदि में कार्यान्वयन विचारों में कई कृषि स्टार्ट-अप हैं। यह किसान और कृषि उद्यमी के बीच एक सहजीवी संबंध बनाने में एक लंबा रास्ता तय कर सकता है। बजट 2023-24 ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि क्षेत्र में स्टार्टअप के जरिये युवा उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के लिए ‘कृषि संवर्धन निधि’ बनाने की घोषणा की गई है। इससे कृषि क्षेत्र में बड़े पैमाने पर नवाचार और प्रौद्योगिकियों को अपनाने में मदद मिलेगी। जो किसानों की कृषि पद्धतियों को बदलने, उत्पादकता तथा लाभप्रदता बढ़ाने में मदद करेगी।

पीपीपी मॉडल से कपास को संजीवनी

कपास की उत्पादकता को और बेहतर बनाने के लिए पीपीपी मॉडल के जरिये क्लस्टर बेस्ड और वैल्यू चेन अप्रोच को अपनाया जाएगा। इसमें किसानों, राज्यों और उद्योगों में आपसी सहयोग स्थापित किया जाएगा। इससे इनपुट सप्लाई, एक्सटेंशन सर्विस और मार्केट लिंकेज में भी मदद मिलेगी। साथ ही कृषि में उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिए आधुनिक तकनीक को बढ़ावा दिया जाएगा, जिससे किसानों को अच्छा मुनाफा कमाने में मदद मिलेगी।

खाद्यान्न एवं बागवानी फसलों के  उत्पादन में वृद्धि

वर्ष 1990 के दशक में खाद्यान्न उत्पादन का प्रदर्शन और भी सराहनीय रहा जिससे प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष उत्पादन 181 किलोग्राम हो गया जबकि 1970 के दशक में मात्र 155 किलोग्राम प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष था । हरित क्रांति की सफलता खासकर गेहूँ और चावल के उत्पादन में विशेष प्रगति देखने को मिली जबकि दलहन एवं तिलहन में साधारण प्रगति देखि गयी । 

खाद्यान्न उत्पादन 2000 दशक के अंत में 210 मिलियन टन से बढ़कर 2021-22 में 316 .74 मिलियन टन हो गया है कृषि बजट 2015-16 से लगातार वृद्धि से हमारे देश खाद्यान्नों का उत्पादन सकारात्मक वृद्धि की है। वर्तमान दशक 2010 से कुल खाद्यान उत्पादन 244.49 मिलियन टन से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 295.67 मिलियन टन एवं वार्षिक वृद्धि दर 1.84 प्रतिशत दर्ज किया गया जबकि गेहूँ में 1.94 एवं चावल में 1.77 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर आंकी गई है।

हमारे किसानों ने इन फसलों के उत्पादन में वृद्धि की है क्योंकि उन्हें उचित मूल्य का आश्वासन दिया गया है। बागवानी फसलों जैसे सब्जियां, फल, फूल और शहद जैसे किसानों उच्च लाभ प्रदान कर सकती हैं। बागवानी फसलों वर्तमान दशक 2011-12 में कुल उत्पादन 257.28  मिलियन टन से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 331.05  मिलियन टन एवं वार्षिक वृद्धि दर 2.92 प्रतिशत दर्ज की गई जबकि कुल फल फसलों में 3.05 प्रतिशत एवं कुल सब्जी फसलों में 2.55 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर आंकी गयी (तालिका 2.)।

विशेष रूप से, उन फसलों का समर्थन करना महत्वपूर्ण है जिनकी अंतरराष्ट्रीय मांग बहुत अधिक है। केरल से लेकर कश्मीर तक हमारी जलवायु विविध है। हमारे लिए ग्लोबल फ्लावर एंड वेजिटेबल हब बनना और साल भर इन वस्तुओं की आपूर्ति करना संभव है। 

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स्त्रोत: एग्रीकल्चर एट ए ग्लैन्स 2021 * चतुर्थ अग्रिम अनुमान

फलों और सब्जियों के उत्पादन एवं निर्यात में बागवानी एक बढ़ता हुआ उप-क्षेत्र है। फलों और सब्जियों के उत्पादन में भारत का दूसरा स्थान है। वर्ष 2016-17 में ताजे फलों का निर्यात 4966.92 करोड़ रुपये के 798.75 हजार टन फलों और 5718.69 करोड़ रुपये मूल्य की 3631.97 हजार टन सब्जियों का निर्यात किया जो बढ़कर क्रमशः वर्ष 2020-21 में 5647.55 करोड़ रुपये के 956.96 हजार टन फल और 5371.85 करोड़ रुपये मूल्य की 2326.53 हजार टन ताजी सब्जियों का निर्यात किया गया।

दुग्ध उत्पादन एवं अंडा उत्पादन में वृद्धि 

वर्तमान में भारत में विश्व में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक है। पशुधन की उत्पादकता बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा उपाय शुरू किए गए हैं जो दुग्ध उत्पादन में पिछले तीन दशकों उल्लेखनीय रूप से वृद्धि हुई है। वर्ष 1991-92 में कुल दुग्ध उत्पादन 55.70 मिलियन टन जो बढ़कर वर्ष 2008-09 में डबल 112.20  मिलियन टन दर्ज किया गया । दुग्ध उत्पादन में निरंतर नए आयाम हासिल किये एवं वर्ष 2020-21 में 210  मिलियन टन दर्ज किया गया (चित्र.5) जिससे  प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता लगभग 427 ग्राम/दिन हो गयी । 

वर्ष 2010 के दशक में दुग्ध उत्पादन में वार्षिक चक्रवृद्धि विकास दर 4.42 प्रतिशत थी जो बढकर 5.90 प्रतिशत वर्ष 2020 के दशक में सार्थक वृद्धि दर्ज की गई। वर्तमान में भारत में कुक्कुट उत्पादन  का  बड़ा उत्पादक है । अंडों के व्यावसायिक उत्पादन के लिए कृषि पद्धतियां अत्याधुनिक तकनीकी के साथ प्रणाली में हस्तक्षेप से वर्तमान में 20 वी लाइव स्टॉक सेंसस के कुल पोल्ट्री की संख्या 851.81 मिलियन है। दुग्ध उत्पादन की तरह अंडा उत्पादन में पिछले तीन दशकों में उल्लेखनीय रूप से वृद्धि हुई है। वर्ष 1991-92  में कुल अंडा उत्पादन संख्या  21.98 बिलियन   जो बढ़कर  वर्ष 2003-04  में संख्या डबल 45.20 बिलियन दर्ज किया गया।

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स्त्रोत: एग्रीकल्चर एट ए ग्लैन्स 2020-21

देश में अंडा उत्पादन में उत्पादन में निरंतर नए आयाम हासिल किये एवं वर्ष 2020-21 में 122.05 बिलियन दर्ज किया गया, (चित्र 5.) जिससे प्रति व्यक्ति अंडों की उपलब्धता लगभग 90/प्रति वर्ष  हो गयी। वर्ष 2010 के दशक में दुग्ध उत्पादन में  वार्षिक चक्रवृद्धि विकास  दर5.92   प्रतिशत थी जो बढकर 7.01 प्रतिशत वर्ष 2020 के दशक में दर्ज की गई।

भारत में माँस मछली का उत्पादन 

भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है जिसका योगदान वैश्विक उत्पादन में 7.56% है । मत्स्य पालन और जलीय कृषि लाखों लोगों के लिए भोजन, पोषण, आय और आजीविका का एक महत्वपूर्ण स्रोत बना हुआ है। मत्स्य पालन क्षेत्र को ‘सनराइज सेक्टर’ के रूप में मान्यता प्रदान की गई है, वर्ष 2001-02 मछली उत्पादन 5.96 मिलियन टन से बढ़कर वर्ष 2014-15 लगभग दुगना 10.26 मिलियन टन एवं  उत्कृष्ट  10.87 प्रतिशत औसत वार्षिक वृद्धि दर का प्रदर्शन किया है। जबकि  वर्ष 2020-21 में रिकॉर्ड मछली उत्पादन 15.02 मिलियन  टन  और इसमें विकास की अपार संभावनाएं मौजूद हैं ।

इसके अलावा, इसने भारत में 28 मिलियन से ज्यादा लोगों की आजीविका को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, विशेष रूप से वंचित और कमजोर समुदाय के लोगों के लिए और सामाजिक-आर्थिक विकास को प्रोत्साहन प्रदान करने की दिशा में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

2019-20 के दौरान मत्स्य पालन क्षेत्र में निर्यात से प्राप्त आय 46.66 हजार करोड़ रुपये रही है एवं इस क्षेत्र में अपने निर्यात को दोगुना करने की अपार संभावनाएं हैं। पिछले दो दशकों ( 2001-02 से 2020-21) में मत्स्य पालन क्षेत्र में वार्षिक औसत वृद्धि दर 5.10 प्रतिशत रही है। मछली पशु प्रोटीन से सस्ता और समृद्ध स्रोत है जिसके कारण यह भूखमरी और पोषक तत्वों की कमी को कम करने के लिए सबसे ज्यादा स्वास्थ्यप्रद विकल्पों में से एक है। इसके विकास में तेजी लाने के लिए नीति और वित्तीय सहायता के माध्यम से मत्स्य पालन क्षेत्र पर लगातार ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष

कृषि ऋण लक्ष्य में 20 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि की जाएगी, एक ऐसी पहल जिससे हमारे देश के लाखों किसानों को लाभ होगा। यह आधुनिक कृषि तकनीकों को अपनाने में उनकी सहायता करेगा। इससे कृषि मांग बढ़ाने में सहायक सिद्ध होगी, सरकार उच्च मूल्य वाली बागवानी में 2,200 करोड़ रुपये का निवेश करने का इरादा रखती है। यह तकनीकी रूप से उन्नत तरीकों का उपयोग करके बागवानी क्षेत्र के विकास में सहायता करेगी जिसके परिणामस्वरूप उच्च गुणवत्ता वाली उपज होती है। इसके अलावा, भारत में कृषि उत्पादन में सुधार किया जाएगा। 

बाजरा और स्टार्ट-अप फंड की घोषणा से फसल विविधीकरण और कृषि उत्पादकता और उपज बढ़ाने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा, “ऋण की बढ़ती उपलब्धता, स्वच्छ संयंत्र कार्यक्रम के माध्यम से बेहतर गुणवत्ता वाले इनपुट की सुविधा, डिजिटल बुनियादी ढांचे में निवेश और कौशल विकास सभी कृषि-स्तरीय उत्पादकता बढ़ाने में मदद करेंगे । 

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना की एक नई उप-योजना 6,000 करोड़ रुपये के लक्षित निवेश के साथ शुरू की जाएगी, ताकि मछुआरों, मछली विक्रेताओं और सूक्ष्म और लघु उद्यमों की गतिविधियों को और सक्षम बनाया जिससे इस क्षेत्र मे अधिक रोजगार का सृजन हो सके। मत्स्य पालन क्षेत्र को ‘सनराइज सेक्टर’ के रूप में मान्यता प्रदान की गई है , वर्ष 2001-02 मछली उत्पादन 5.96 मिलियन टन से बढ़कर वर्च  2014-15 लगभग दुगना 10.26 मिलियन टन एवं  उत्कृष्ट  10.87 प्रतिशत औसत वार्षिक वृद्धि दर का प्रदर्शन किया है। जबकि  वर्ष 2020-21 में रिकॉर्ड मछली उत्पादन 15.02 मिलियन  टन  और इसमें विकास की अपार संभावनाएं मौजूद हैं।

सरकार ने इस बार बजट में बागवानी की उपज के लिए 2,200 करोड़ की राशि आवंटित की है। इसके जरिए बागवानी को बढ़ावा देने का फैसला लिया गया है। आत्‍मनिर्भर स्‍वच्‍छ पादप कार्यक्रम पर उच्च मूल्य वाली बागवानी फसलों के लिए सामग्री की उपलब्धता को बढ़ावा देने के लिए ‘आत्मनिर्भर स्वच्छ संयंत्र कार्यक्रम‘ शुरू करेगी। फलों और सब्जियों के उत्पादन में भारत का दूसरा स्थान है। वर्ष 2016-17 में ताजे फलों  का निर्यात 4966.92 करोड़ रुपये के 798.75 हजार टन फलों और 5718.69 करोड़ रुपये मूल्य की 3631.97 हजार टन सब्जियों का निर्यात किया जो बढ़कर क्रमशः वर्ष 2020-21 में 5647.55 करोड़ रुपये के 956.96 हजार टन फल और 5371.85 करोड़ रुपये मूल्य की 2326.53 हजार टन ताजी सब्जियों का निर्यात  किया गया।

बाजरा की खेती, खपत और निर्यात, मत्स्य पालन में उच्च निवेश और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना, ये सभी फसल विविधीकरण, स्थिरता और पोषण के दृष्टिकोण से सहायक हैं। छोटे किसानों, नागरिकों की सेहत को मजबूत करने के लिए श्रीअन्न ने बड़ी भूमिका निभाई है। सरकार कपास की प्रोडक्टिविटी बढ़ाने के लिए पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप को बढ़ावा देगी। इससे किसानों, सरकार और उद्योगों को साथ लाने में मदद मिलेगी।

संदर्भ 
  1. एग्रीकल्चर एट ए ग्लांस 2020, 2021 । 
  2. आर्थिक समीक्षा वर्ष  2022-23 
  3. केन्द्रीय बजट वित्त वर्ष  2023-24 
  4. आर्थिक मामलों की मंत्रिमण्‍डलीय समिति (सीसीईए)https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1868799
आभारोक्ति

लेखक इस अनुसंधान पत्र के लिखने में निदेशक, आईसीएआर-राष्ट्रीय कृषि आर्थिकी एवं नीति अनुसंधान संस्थान से प्राप्त समर्थन एवं संसाधन के लिए आभार प्रकट करता है।

-प्रेम नारायण

मुख्य तकनीकी अधिकारी,पद पर आई.सी.ए.आर.-राष्ट्रीय कृषि आर्थिकी एवं नीति अनुसंधान संस्थान, डी.पी.एस. रोड, पूसा, नई दिल्ली -110012 में कार्यरत है ।  ई-मेल: [email protected]

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