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मंगलवार, मार्च 19, 2024
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मछली पालक इस तरह अपनी आय को दोगुना कर सकते हैं ?

मछली पलकों के लिए महत्वपूर्ण सुझाव

खेती-किसानी एवं पशुपालन किसान को स्वयं ही करना होता है जिससे वह पूरी प्लानिंग एवं किसी कम्पनी की तरह कार्य नहीं कार्य पाते जिससे उन्हें आय भी कम होती है | यदि किसान अपने कार्य को योजनावद्ध तरीके से करें तो वह अपनी आय को कई अधिक बढ़ा सकतें हैं जैसे एकीकृत मछली पालन अपनी आय बढ़ाने का सबसे अच्छा तरीका है जितने भी लोसेस हैं उन्हें कम किया जाये | इन सभी बातों को ध्यान में रखकर किसान समाधान मछली पलकों के लिए उपयुक्त तकनीक सम्बन्धी सुझाब लेकर आया है जिससे मत्स्य पालक अपनी आय दोगुनी कर सकते हैं |

मत्स्य पालक हेचरी में पुर्न क्षमता के आधार पर ब्रुडरो का चक्र वार प्रजनन करना चाहिए ताकि एक चक्र के जल का पुनर उपयोग हो सके | जल स्तर ऊँचा है तो रिसाव से पानी तालाब की सतह के ऊपर आता है जिससे पानी में उपलब्ध पोषक तत्व हो जाते हैं | तालाब का जल बहाव (overflow) से निकलता है तब तालाब के जल में पोषक तत्व बहार निकल जाते हैं | अत: जल स्तर नियंत्रित रखा जाना चाहिए | मतस्य पलकों के लिए वज्ञानिकों द्वारा बहुत से सुझाब दिए जाते हैं | आइये जानते हैं क्या है वह सुझाब :-

हाईड्रोजन सल्फाईड गैस (H.S.) पर नियंत्रण

यह अवायवीय दशा में बनती है एवं इसकी मात्रा तालाब में बढने से मछली की औसत वृद्धि दर घटने, उत्तरजिवित्ता दर कम एवं मत्स्य आहार रुपान्तरण दर (FCR) बढने से उत्पादन लागत बढने का कारण है |

गहरे तालाब

गहरे तालाब में कम घुलित आक्सीजन अवायवीय परिस्थिति उत्पन्न करती है तथा तैरते हुये कार्बनिक तत्व जब सतह में बैठते है तब हाईड्रोजन सल्फाईडगैस उत्पन्न होती है इसके अतिरिक्त अधिक मात्रा में पूरक आहार देने से, अप्रयुक्त पूरक आहार से प्लवक टूट जाते हैं |

रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग में सावधानी

मिट्टी में उपलब्ध पोषक तत्वों के आधार पर ही रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए ताकि रासायनिक उर्वरकों के क्रय पर अनावश्यक व्यय न हो एवं उर्वरक का दुरपयोग न हो |

तालाब में अम्लीयता का बढ़ना

तालाब में अम्लीयता बढ़ाने पर पी. एच. कम होता है तथा इसमें पानी में घुली फास्फोरस अघुलनशील अवस्था में तेजी से रूपांतरित होती है | तालाब में फास्फोरस उपलब्ध रहते हुये भी निष्क्रिय रहता है | इससे मछली की वृद्धि प्रभावित होती है | अम्लीयता बढने पर मछली के भोजन की उपाचय दर कम हो जाति है | इससे मछली को भूख कम लगती है | परिणाम स्वरूप तालाब में भोजन होते हुये भी उसका उपयोग नहीं हो पाता है |

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आक्सीजन की मात्रा

जिस तालाब में अत्यधिक मछलियाँ है वहाँ आक्सीजन की प्रचुर मात्रा आवाश्यक होती हैं | आइये जानते हैं मत्स्य पालक किस तरह आक्सीजन को नियंत्रित कर सकते हैं |

जल प्रवाह की उपलब्धता

  1. जल प्रवाह की उपलब्धता के अनुसार आगणन कर तालाब निर्माण कराना चाहिए ताकि जल आभाव में तालाब निर्माण की लागत से हानि न हो |
  2. तालाब निर्माण से पूर्व मिटटी की श्रेणी, जल सीपेज, जल प्रवाह दर :-
  3. तालाब निर्माण से पूर्व मिट्टी की श्रेणी उसमें जल सीपेज, जल प्रवाह दर एवं कितने जल की प्रतिपूर्ति आवश्यक है, ज्ञात होना चाहिए | इसी आधार पर तालाब के निर्माण हेतु क्षेत्रफल ज्ञात कर मात्र उतने ही क्षेत्रफल का तालाब निर्माण कराना श्रेयस्कर है तथा जल पूर्ति के आभाव में तालाब निर्माण लागत की हानि रोकी जा सकती है |

नर्सरी में मत्स्य हानि रोकना

  1. नर्सरी एवं संचय से पूर्व अस्थायी रूप से रखे गए स्थल के पानी की भौतिक – रासायनिक अवस्थाओं में अन्तर |
  2. स्पान हेतु भोजन उचित मात्रा में न होना |
  3. परभक्षी मछलियों की फ्राई का नर्सरी में उपस्थित होना |
  4. विभिन्न आकार का स्पान एक ही नर्सरी में संचित करना |
  5. नर्सरी में जब जल की मात्रा कम हो व पानी का तापमान बढ़ता – घटता है, जिसका सीधा प्रभाव जल में घुली आक्सीजन की कमी हो जाती है |
  6. फाइटोप्लैन्कटन की अधिक मात्रा रात्रि में आक्सीजन की कमी होने का कारण बनती है |
  7. मानक से अधिक संख्या में स्पाम नर्सरी में संचित होना |
  8. अंगुलिका संचय1 हेक्टयर के जल क्षेत्र में 70 – 100 मि.मी. तक की लम्बाई की 10,000 स्वस्थ अन्गुलिकाएंसंचित की जा सकती है | संचय का अनुपात उनके आकार पर निर्भर रहता है | 6 प्रकार की देशी व अभ्यागत मछलियों को निम्न अनुपात में संचय कर सकते हैं |
  9. कतला 10 प्रतिशत, रोहू 10 प्रतिशत, नैन 10 प्रतिशत, सिल्वर कार्प 25 प्रतिशत, ग्रास कार्प 20 प्रतिशत, कामन कार्प 25 प्रतिशत
  10. रोहू 25 प्रतिशत,कतला 30 प्रतिशत, , नैन 20 प्रतिशत, कमान कार्प 25 प्रतिशत |
  11.  नैन 30 प्रतिशत, कतला 40 प्रतिशत, रोहू 30 प्रतिशत, |
  12. संचय करते समय 10 प्रतिशत की हानि की संभवना मानते हुये अधिक संचय करना चाहिए |सिल्वर कार्प के बीज का संचय के एक माह बाद करना चाहिए क्योंकि सिल्वर कार्प की भोजन ग्रहण करने की प्रवृत्ति कतला से तेज होती है और प्रतिस्पर्धा में कतला द्वारा भोजन कम ग्रहण किया जाता है |
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कृत्रिम आहार देने में सावधानियाँ

  1. तालाब में कृत्रिम आहार देते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए |
  2. कृत्रिम आहार निश्चित समय व स्थान पर सुबह देना चाहिए |
  3. जब मछलियाँ पहले दिए गये आहार बांस की ट्रे में देना चाहिए |
  4. यदि पानी की स्थ पर काई आ जाये तो कुछ समय के लिए कृत्रिम आहार देना बंद कर देना चाहिए | इसके अतिरिक्त तालाब की तली की सफाई के साथ ही समय – समय पर तालाब से जलीय कीट व जीव निकलते रहना चाहिए एवं जल का परीक्षण कर उसका पीएच स्थिर रखना चाहिए |

अन्य सुझाव

  1. तालाब के पानी में जाने पर खुजली होना तालाब में एक लीटर प्रति एकड़ की दर से फर्मलीन का प्रयोग | क्योंकि यह मछली पर परजीवी का प्रमाण हैं |
  2. मछली 400 ग्राम वजन तक भर प्राप्त कर लेती है तब एक टन मत्स्य आहार के साथ lvermetacin की मात्र 100 ग्राम , पूरक आहार के साथ मिश्रण कर देने से मछली की वृद्धि दर प्रभावित नहीं होती है |
  3. मछली के पेट को साफ रखने के लिए 3 माह में एक बार एक लीटर अंडी का तेल 1000 कि.ग्रा. पूरक आहार में मिश्रण कर प्रयुक्त करने से मछली द्वारा आहार ग्रहण न करने की समस्या से निदान मिलता है |
  4. मछलीयों  की मृत्यु का यदि कारण ज्ञात न हो रहा हो तो 30 प्रतिशत एल्कोहल 1 लीटर प्रति एकड़ की दर से तालाब में प्रयोग करना लाभदायक है |
  5. कहने का सोडा 1.5 कि.ग्रा. [प्रति 1000 कि.ग्रा. पूरक आहार के साथ माह में एक बार प्रयोग करने से मछली की पाचन शक्ति एवं पेट का पी – एच सही रहता है |
  6. नाईट्रोजन उर्वरकों के प्रयोग से हरी काई (एल्गल ब्लूम) की अधिकता में पानी का रंग हरा हो जाता है | सूक्ष्म एल्गी मछलियों के श्वासनांगों को अवरुद्ध कर देती है जो उसकी मृत्यु का कारण बनती है | एसी स्थिति में नाइट्रोजन उर्वरकों का प्रयोग बंद कर 1 से 3 कि.ग्रा. प्रति हे.प्रति मी. की दर से गोबर के घोल के प्रयोग से तिन सप्ताह में इसका प्रभाव लगभग समाप्त हो जाता है |

मछली पालन के लिए महीनेवार सामान्य जानकारी

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