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गुरूवार, अप्रैल 25, 2024
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बैंगन की फसल में यह कीट या रोग है तो ऐसे करें नियंत्रण

बैंगन में कीट एवं रोग

सब्जियों की खेती में बैंगन एक महत्वपूर्ण फसल है | इसकी खेती बड़े पैमाने पर देश के लगभग सभी राज्यों में की जाती है | इसकी अच्छी खेती करने के लिए किसानों को मुख्यतः  बीज, मिट्टी का चयन के अलावा कीट तथा रोग से बचाव पर ध्यान देना होता है | बैंगन के पौधों के तने तथा फल में तना छेदक कीट का प्रकोप रहता है | यह कीट के व्यस्क का प्रकोप रोपाई के कुछ सप्ताह उपरांत ही हो जाता है एवं व्यस्क कीट पौधों पर अंडे दे देता है, जिससे बाद में उससे लारवा निकलकर पौधे के तनों को बेधकर नुकसान पहुंचाते है , उसके पश्चात् फलों को बेधकर सड़ा देते जिससे काफी आर्थिक क्षति उठानी पड़ी है | किसान समाधान बैंगन  में कीट उसका प्रबंधन तथा रोग और उसका प्रबंधन की जानकारी लेकर आया है |

बैंगन की फसल में एकीकृत कीट प्रबंधन

  • खेत को साफ सुथरा रखें
  • जिस खेत में बैंगन की फसल पिछले वर्ष ली हो उसमें बैंगन कदापि न लगाएं |
  • बैंगन की दो कतारों के बाद एक कतार धनिया या सौंफ की लगाएं |
  • रोपाई के 2 सप्ताह बाद फेरोमोन ट्रैप 4 से 5 प्रति एकड़ लगाएं यदि आवश्यक लगे तो 10 से 12 फेरोमोन ट्रैप प्रति एकड़ 10–10 मीटर की दुरी पर लगाएं तथा ल्योर को 15 दिन उपरांत बदलते रहे और रोगग्रस्त कल्लो को काटकर खेत से हटते रहे या गड्ढे में दबा दें |
  • ट्राईकोकार्ड 1 प्रति एकड़ 21 दिन उपरांत 4–5 मीटर की दुरी पर फसल के अंत तक लगाते रहे |
  • तीन किलो सडी गोबर की खाद में 250 ग्राम ट्राइकोडर्मा विराडी मिलाकर पौधों के संवर्धन के लिए लगभग सात दिनों के लिए छोड़ दें। सात दिनों के बाद मिट्टी में 3 वर्ग मीटर के बेड में मिला दें।
  • F1-321 जैसे लोकप्रिय संकरों की बेड में बुवाई जुलाई के पहले हफ्ते में होनी चाहिए। बुवाई से पहले, बीज को ट्राइकोडर्मा विराडी 4 ग्राम / किलोग्राम बीज की दर से उपचार किया जाना चाहिए। निराई समय-समय पर की जानी चाहिए और संक्रमित पौधों को नर्सरी से बाहर कर देना चाहिए।

बैंगन में तना और फल छेदक कीट

आरंभिक चरणों में, लार्वा तने में छेद कर देते हैं जिससे विकास का बिन्दु मर जाता है। मुर्झाये, झुके हुए तने का दिखाई देना इसका प्रमुख लक्षण है। बाद में लार्वा फल में छेद कर देते हैं जिससे वह खपत के लिए अयोग्य हो जाता है।

नियंत्रण के लिए क्या करें

  • एजाडिरेकटिन 1% ईसी (10000 पीपीएम) की 400 से 600 मिली लिटर मात्रा को 400 लिटर पानी में प्रति एकड़ छिडकाव करें |
  • कीटरोगजंक सूत्रकृमि (स्टाइनरनीम) 1 करोड़ अभेध किशोर प्रति एकड़ प्रयोग करें |
  • इमामेकटिन बेंजोएट 80 ग्राम 200 ली पानी में मिलकर या क्लोरांट्रानीलीप्रोल 80 मिली 200 मी पानी में मिलाकर प्रति एकड़ प्रयोग करें |

जैसिड्स कीट 

ये हरे रंग के कीट पत्तियोंकी निचली सतह से लगकर रस चूसते हैं। जिसके फलस्वरूप पत्तियां पीली पद जाती हैं और पौधे कमजोर हो जाते हैं। इनके नियंत्रण हेतु रोपाई से पूर्व पौधों की जड़ों को काँनफीडर दवा के 1.25 मि.ली./ली. की दर से बने घोल में 2 घंटे तक डूबोयें ।

एपीलेकना बीटल कीट

ये कीट पौधों की प्रारंभिक अवस्था में बहतु हानि पहुंचाते हैं। ये पत्तियों को खार छलनी सदृश बना देते हैं। अधिक प्रकोप की दशा  में पूरी फसल बर्बाद हो जाती है। इनकी रोकतम के लिए कार्बराइल (2.0 ग्रा./ली.) अथवा पडान (1.0 ग्रा. ली.) का 10 दिन के अंतर पर प्रयोग करें।

डैम्पिंग ऑफ़ या आर्द्र गलन रोग

यह पौधशाला का प्रमुख फुफुदं जनित रोग है इसका प्रकोप दो अवस्थाओं में देखा गया है। प्रथम अवस्था में, पौधे जमीन की सतह से बाहर निकलने के पहले ही मर जाते हैं एवं द्वितीय अवस्था में, अंकुरण के बाद पौधे जमीन की सतह के पास गल कर मर जाए हैं। इसकी रोकथाम के लिए बाविस्टिन (2 ग्रा./कि.ग्रा. बीज) नामक फफुन्दनाशी दवा से बीजों का उपचार करें। साथ ही अंकुरण के बाद ब्लूकॉपर-50 ( 3 ग्रा./ली.) या रिडोमिल एम् जेड अथवा इंडोफिल एम्-45(2 ग्रा./ली.) से क्यारी की मिट्टी को भिगो दें।

फ़ोमोब्सिस झुलसा रोग

बैंगन का फफूंद उत्पन्न होने वाला बीजजनित रोग है | रोग की प्रारम्भिक अवस्था में पौधशाला में पट्टियों पर मरे – काले धब्बे दिखाई देने लगते हैं तथा बाद में पत्तियाँ पीली होकर गिर जाती है | रोग ग्रस्त फलों में गोल धब्बे बनते हैं जो सदन पैदा करते हैं | बैंगन की फसल के लिए यह घातक बीमारी है | पौधा से पौधा तथा पंक्ति से पंक्ति की दुरी कम होने की स्थिति में इस बिमारी का प्रकोप ज्यादा होता है |

रोकथाम :-

मैंकोजेब 75 डब्लू पी की 02 ग्राम प्रति लिटर पानी या कोबेंडाजिम 25 प्रतिशत + मैंकोजेब 50 प्रतिशत डबल एस को 600 – 700 ग्राम प्रति हे. 500 लिटर पानी में मिला कर छिडकाव करना चाहिए |

जीवाणु –जनित मुरझा रोग

यह सोलेनेसी परिवार की सब्जियों की प्रमुख बीमारी है। इसके प्रकोप से पौधे मर जाते हैं। इसके बचाव हेतु प्रतिरोधी किस्में जैसे-स्वर्ण प्रतिभा, स्वर्ण श्यामली लगाएं। लगातार बैंगन, टमाटर, मिर्च एक स्थान पर न लगा कर अन्य सब्जियों का फसल चक्र में समावेश करें। खेत में 10 क्वि./हे. की दर से करंज  की खली का प्रयोग रोपाई से 15 दिन पूर्व करने से रोग के प्रभाव में कमी आती है। रोपाई के पूर्व पौधों की जड़ों को स्ट्रेप्टोसाइक्लिन (500 मि.ग्रा./ली.) के घोल में आधे घंटे तक डुबोएं।

जैविक नियंत्रण

फल छेदक, तना छेदक एवं अन्य कीड़ों के नियन्त्रण के लिए बैसीलस थुरिनजेनसिस (डीपील -8, डेलफिन) एन.पी.भी.-4 मिली. प्रति लीटर पानी में मिलाकर नीम पर आधारित कीटनाशकों का प्रयोग करना चाहिए । बाभेरिया बासियाना, या फफूंद आधारित कीटनाशक है का प्रयोग 4 मिग्रा. प्रति लीटर पानी में घोलकर करना चाहिए। लाल मकड़ी से बचाव के लिए सल्फर का प्रयोग करना चाहिए।

इन तमाम रोगों एवं कीटों से बचाव हेतु समेकित रोग एवं कीट प्रबन्धन पद्धति अपनाना चाहिए ताकि कम लागत में अच्छी और रसायन-रहित बैंगन का उत्पादन किया जा सके। कोई भी रासायनिक कीटनाशक का छिड़काव करने से पहले आर्थिक क्षति स्तर का आकलन कर लेना चाहिए और इसका प्रयोग तभी करना चाहिए जब इसकी आवश्यकता आ पड़े।

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