हरी खाद : एक वरदान
हरी खाद बनाने की विधी
- अप्रैल मई माह में गेंहु की कटाई के बाद जमीन की सिंचाई कर लें | खेत में खड़े पानी में 50 की.ग्राम. प्रति है. की दर से ढेंचा का बीज छितरा लें |
- जरुरत पड़ने पर 10 से 15 दिन में ढेंचा फसल की हल्की सिंचाई कर लें |
- 20 दिन की अवस्था पर नत्रजन खाद छितराने से नोड्यूल बनने में सहायता मिलती है |
- 55 से 60 दिन की अवस्था में हल चला कर हरी खाद को पुन: खेत में मिला दिया जाता है | इस तरह लगभग 10.15 टन प्रति हे. की दर से हरी खाद उपलब्ध हो जाती है |
- जिससे 60 से 80 किलो ग्राम नाईट्रोजन प्रति हे. प्राप्त होता है | मिटटी में ढेंचे के पौधों के गलने – सड़ने से बैक्टीरिया द्वारा नियत सभी नाईट्रोजन जैविक रूप में लम्बे समय के लिए कार्बन के साथ मिटटी को वापिस मिल जाते है |
हरी खाद बनाने के लिए अनुकूल फसले –
- ढेंचा, लोबिया, उड़द, मूंग, ग्वार बरसीम, कुच्छ मुख्य फसलें है | ढेंचा इनमें से अधिक लिया जाता है |
- ढैचा की मुख्य किस्में सस्बेनीया एजिप्टिका, एस रोस्टेटा तथा एक्वेलेटा अपने त्वरित खनिज करण पैटर्न, उच्च नाईट्रोजन मात्र तथा अल्प C:N अनुपात के कारण बाद में बोई गई मुख्य फसल की उत्पादकता पर उल्लेखनीय प्रभाव डालने में सक्षम है |
आदर्श हरी खाद की निम्नलिखित गुण होनी चाहिए –
- उगाने का न्यूनतम खर्च
- न्यूनतम सिंचाई आवश्यकता
- विपरीत परिस्थिति में भी उगने की क्षमता हो
- खरपतवार विरोधी हो
- जो उपलब्ध वातावरण का प्रयोग करते हुए अधिकतम उपज दे |
हरी खाद को मिटटी में मिलाने की अवस्था
- हरी खाद के लिए बोई गयी फसल 55 से 60 दिन बाद जोत कर मिटटी में मिलाने के लिए तैयार हो जाती है |
- इस अवस्था पर पौधों की लम्बाई व हरी शुष्क सामग्री अधिकतम होती है 55 से 60 दिन की फसल अवस्था पर तना नर्म व नाजुक होता है जो आसानी से मिटटी में कट कर मिल जाता है |
- इस अवस्था में कार्बन नाईट्रोजन अनुपात कम होता है | पौधे रसीले और जैविक पदार्थ से भरे होते है इस अवस्था पर नाईट्रोजन की मात्र की उपलब्धता बहुत अधिक होती है |
- जैसे – जैसे हरी खाद के लिए लगाई गयी फसल की अवस्था बढती है कार्बन – नाईट्रोजन अनुपात बढ़ जाता है | जीवाणु हरी खाद के पौधों को गलाने सडाने के लिए मिटटी की नाईट्रोजन इस्तेमाल करते है | जिससे मिटटी में अस्थाई रूप से नाईट्रोजन की कमी हो जाती है |
हरी खाद के लाभ
- मिटटी में मिलाने से मिटटी की भौतिक शरीरिक स्थिति में सुधार होता है |
- मृदा उर्वरता की भरपाई होती है
- पोषक तत्वों की उपलब्धता को बढाता है
- सूक्ष्म जीवाणुओं की गतिविधियों को बढाता है
- भूमि की संरचना में सुधार होने के कारण फसल की जड़ों का फैलाव अच्छा होता है |हरी खाद के लिए उपयोग किये गये फलीदार पौधे वातावरण से नाईट्रोजन व्यवस्थित करके नोड्यूल्ज में जमा करते है जिससे भूमि ककी नाईट्रोजन शक्ति बढती है |
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