सतावर की खेती कैसे करें
सतावर एक औषधीय पौधा है जिसका उपयोग सिद्धा तथा होम्योपैथिक दवाईयों में होता है | यह आकलन किया गया है की भारत में विभिन्न औषधीयों को बनाने के लिए प्रति वर्ष 500 टन सतावर की जड़ों की जरुरत पड़ती है | सतावर की उत्पादन एक एकड़ में 2 से 3 किवंटल होती है | इसकी अभी बाजार कीमत 50,000 रु. से लेकर 1 लाख रुपया तक है | इसलिए प्रति एकड़ 1.5 लाख से लेकर 3 लाख रु. तक कीमत मील सकती है | यह सभी प्रकार की मिटटी तथा उत्तर भारत में ज्यादा होता है |
औषधीय उपयोग
- सतावर (शतावरी) की जड़ का उपयोग मुख्य रूप से ग्लैक्टागोज के लिए किया जाता है जो स्तन दुग्ध के स्राव को उतेजित करता है |
- इसका उपयोग शरीर से कम होते वजन में सुधार के लिए किया जाता है तथा इसे कामोत्तेजक के रूप में भी जाना जाता है |
- शतावरी जद का उपयोग दस्त, क्षय रोग (ट्यूबरक्लोसिस) तथा मधुमेह के उपचार में भी किया जाता है |
- सामान्य टूर पर इसे स्वस्थ रहने तथा रोगों के प्रतिरक्षक के लिए उपयोग में लाया जाता है |
- इसे कमजोर शरीर प्रणाली में एक बेहतर शक्ति प्रदान करने वाला पाया गया है |
उत्पादन प्रोधोगिकी
मृदा
- सामान्यत: इस फसल के लिए लैटेराइट, लाल दोमट मृदा जिसमें उचित जल निकासी सुविधा हो, उसे प्राथमिकता दी जाती है |
- चूंकि रुटीड फसल उथली होती है अत: एस प्रकार की उथली तथा पठारी मृदा के तहत जिसमें मृदा की गहराई 20 – 30 से.मी. की है उसमें आसानी से उगाया जा सकता है |
- जलवायु यह फसल विभिन्न कृषि मौसम स्थितियों के तहत उग सकती है जिसमें शीतोष्ण (टैम्परेट) से उष्ण कटिबंधी पर्वतीय क्षेत्र शामिल हैं |
- इसे मामूली पर्वतीय जैसे शेवरोज, कोली तथा कालरेयान पर्वतों तथा पश्चिमी घाट माध्यम ऊँचाई वाले क्षेत्रों में जहां क्षेत्र की ऊँचाई समुंद्र ताल से 800 से 1500 मी. के बीच स्थित है, उनमें भी उगाया जा सकता है | यह सूखे के साथ – साथ न्यूनतम तापमान के प्रति भी वहनीय है |
किस्में
जे.एस.1 इसकी किस्म है परन्तु इस फसल में अब तक कोई नामित किस्म विकसित नहीं की गई |
लागत
क्र.सं. | सामग्री | प्रति एकड़ | प्रति हैक्टेयर |
1. | पादपों की संख्या | 10,000 | 25,000 |
2. | फार्म यार्ड खाद (टन) | 8
| 20
|
3. | उर्वरक (कि.ग्रा.) N P2O5 K2O | वर्तमान समय में फसल को मुख्यत: जैविक रूप से उगाया जा रहा है और इसके उर्वरक अनुप्रयोग पर कोई सुचना उपलब्ध नहीं है |
कृषि तकनीक
रोपाई
- इसे जड़ या बीजों द्वारा किया जाता है | व्यावसायिक खेती के लिए, बीज की तुलना में जड चूषकों को बरीयता दी जाती है |
- मृदा को 15 से.मी. की गहराई तक अच्छी तरह खोदा जाता है | खेत को सुविधाजनक आकार के प्लांटों में बाटा जाता है और आपस में 60 से.मी. की दुरी पर रिज बनाए जाते हैं |
- अच्छी तरह विकसित जड़ चूषकों को रिज में रोपित किया जाता है |
सिंचाई
- रोपण के तुरंत बाद खेत की सिंचाई की जाती है | इसे एक माह तक नियमित रूप से 4 – 6 दिन के अंतराल पर किया जाए और इसके बाद साप्ताहिक अंतराल पर सिंचाई की जाए |
- वृद्धि के आरंभिक समय के दौरान नियमित रूप से खरपतवार निकाली जाए |
- खरपतवार निकालते समय एस बात का ध्यान रखा जाय की बढने वाले प्ररोह को किसी बात का नुकसान न हो | फसल को खरपतवार निकालने की जरुरत होती है |
- लता रूपी फसल होने के कारण इसकी उचित वृद्धि के लिए इसे सहायता की जरूरत होती है | इस प्रयोजन हेतु 4 – 6 फीट लम्बे स्टेक का उपयोग सामान्य वृद्धि की सहायता के लिए किया जाता है |
- व्यापक स्तर पर रोपण में पौधों को यादृच्छिक पंक्ति में ब्रश वुड पैगड पर फैलाया जाता है |
पौध सुरक्षा
इस फसल में कोई भी गंभीर नाशीजीव और रोग देखने में नहीं आए है |
कटाई, प्रसंस्करण एवं उपज
रोपण के 12 – 14 माह बाद जड़ परिपक्व होने लगती है जो मृदा और मौसम स्थितियों पर निर्भर करती है |एकल पौधे से तजि जड़ की लगभग 500 से 600 ग्राम पैदावार प्राप्त की जा सकती है | औसतन रूप में प्रति हैक्टेयर क्षेत्र से 12,000 से 14,000 किलोग्राम तजि जड़ प्राप्त की जा सकती है जिसे सुखाने के बाद लगभग 1000 से 1200 किलोग्राम शुष्क जड़ प्राप्त की जा सकती है |
Sir hamari shatavari tayar ho chuki hai kaha par bechu
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kis sabji ki kheti m aacha munafa ho skta h kripya hame bataye
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Sir Meri satavar tyar ho gyi ha keha bachu 9812021676 sonipat
सर दिल्ली की मंडी में पता करें |
hello sir mujhe shatawari ki kheti kis samay karna chahye
Stavri bij kha milenge mandsour k pas Me
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