ग्रामीण क्षेत्रों में युवाओं को स्वरोजगार उपलब्ध कराने के लिए सरकार मशरूम की खेती को बढ़ावा दे रही है। इसके लिए कृषि वैज्ञानिकों और कृषि विश्वविद्यालयों के द्वारा कई प्रयास किए जा रहे हैं। इस कड़ी में छत्तीसगढ़ के महंत बिसाहू दास उद्यानिकी महाविद्यालय में मशरूम उत्पादन पर सफल प्रयोग किया गया। प्रयोग में छात्र-छात्राओं को कम लागत और कम समय में मशरूम उत्पादन की जानकारी दी गई।
उद्यानिकी महाविद्यालय में धान के भूसे का उपयोग करके मशरूम के बैग तैयार किए। मशरूम उत्पादन के लिए सबसे पहले बैग भरने से एक दिन पहले ओएस्टर मशरूम के बीजों को गर्म पानी और फार्मलिन प्लस बाविस्टीन से निर्जलीकरण किया गया। बता दें कि महंत बिसाहू दास उद्यानिकी महाविद्यालय जीपीएम के प्रथम वर्ष के छात्र-छात्राओं ने मशरूम उत्पादन के क्षेत्र में एक उल्लेखनीय प्रयास किया है।
ओएस्टर मशरूम लगाने की दी गई जानकारी
प्राप्त जानकारी के अनुसार ओएस्टर मशरूम का जीवन चक्र लगभग 25 से 30 दिन का होता है और इसका आदर्श तापमान 23 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड होता है। धान का भूसा 4 रुपए प्रति किलो की दर पर मिलता है और प्रत्येक बैग में लगभग 50 ग्राम मशरूम बीज डाला जाता है। इस तरह से प्रति बैग की लागत 20 रुपये से भी कम आता है। एक बैग से लगभग डेढ़ से दो किलो मशरूम प्राप्त होते हैं।
महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. नारायण साहू के मार्गदर्शन और विषय अध्यापिका डॉ. चेतना जांगड़े के सहयोग से मशरूम उत्पादन का सफल प्रयोग किया गया। सर्वप्रथम छात्रों ने ओएस्टर मशरूम (मशरूम का एक प्रमुख प्रकार) की खेती की, जिसमें सफेद और गुलाबी आयस्टर मशरूम की किस्मों का चयन किया गया। मशरूम उत्पादन आर्थिक रूप से लाभकारी व्यवसाय साबित हो सकता है। यह पहल न केवल छात्रों को कृषि विज्ञान में व्यावहारिक अनुभव प्रदान कराती है, बल्कि उनके लिए आर्थिक रूप से लाभकारी और पर्यावरणीय दृष्टि से भी अनुकूल है। महाविद्यालय की यह पहल आने वाले समय में युवाओं को मशरूम उत्पादन के लिए स्वरोजगार से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाने में सहायक होगा।