स्वीट कॉर्न की खेती से यहाँ के किसान कर रहे हैं लाखों रुपये की कमाई, सरकार खेती के लिए दे रही है प्रोत्साहन

देश में किसानों की आमदनी को बढ़ाने के लिए सरकार फसलों की विविधिकरण को बढ़ावा दे रही है। इस कड़ी में बिहार सरकार द्वारा राज्य में किसानों को मक्का की खेती में विविधता लाने के उद्देश्य से स्वीट कॉर्न की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके लिए किसानों को कृषि आदानों सहित आवश्यक प्रशिक्षण भी उपलब्ध कराया जा रहा है। बिहार कृषि विभाग द्वारा रबी मौसम 2023–24 में राज्य के विभिन्न जिलों में स्वीट कॉर्न को बढ़ावा देने के उद्देश्य से विशेष कार्यक्रम चलाये गये।

इसके लिए आत्मा योजना के माध्यम से किसानों के साथ संवाद स्थापित किया गया तथा पूर्णिया पूर्व प्रखंड के चाँदी पंचायत में ऐसे किसान जो पहले गेहूं की खेती करते थे, उनके द्वारा 2.5 एकड़ में स्वीट कॉर्न की खेती की गई। जिसमें किसान ने लाखों रुपये का मुनाफा कमाया।

स्वीट कॉर्न की खेती से कमाई

कृषि विभाग द्वारा राज्य के विभिन्न जिलों में किसानों को आत्मा योजना के अंर्तगत प्रशिक्षण के साथ–साथ बीज उपलब्ध कराये गए थे। किसानों को स्वीट कॉर्न के प्रभेद सुगर -75 बीज उपलब्ध कराया गया था। कृषि विभाग के मुताबिक अक्टूबर में बोये गये स्वीट कॉर्न की फसल 90 दिनों में विपणन के लिए तैयार हो गई। जिसमें किसानों को स्वीट कॉर्न की एक एकड़ खेती में कुल लागत 40 हजार रूपये तक आई। एक एकड़ में किसानों द्वारा औसतन 20 हजार उत्पादित स्वीट कॉर्न के भुट्टे को बाजार में 10 रुपये प्रति भुट्टे की दर से बेचा गया, जिससे किसानों को एक एकड़ की खेती में लगभग 1 लाख 60 हजार रूपये का शुद्ध मुनाफा प्राप्त हुआ।

आत्मा योजना के माध्यम से किया जा रहा है प्रोत्साहित

आत्मा के प्रसार कार्यकर्ता तथा कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से किसानों को समय–समय पर स्वीट कॉर्न की खेती से संबंधित प्रशिक्षण दिया गया। आत्मा योजना से किसानों को बीज के अतिरिक्त आवश्यक उपादान तथा पौधा संरक्षण संबंधी उपादान एवं जानकारी उपलब्ध कराई गई। स्वीट कॉर्न का पौधा हरा होने के कारण इसे पशु चारे के रूप में भी इस्तेमाल किया गया। चूँकि स्वीट कॉर्न 90 से 100 दिन में तैयार हो जाता है, इस तरह किसान एक ही खेत में फसल चक्र में तीन फसल आसानी से ले सकते हैं।

खरीफ मौसम में स्वीट कॉर्न की खेती के तरफ उत्साह को देखते हुए विभाग द्वारा वित्तीय वर्ष 2024–25 में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत बिहार राज्य में स्वीट कॉर्न के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए 54.99 लाख रूपये की स्वीकृति प्रदान की गई है। इस योजना के अंतर्गत राज्य में स्वीट कॉर्न के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए खरीफ मौसम में बीज वितरण किया जाएगा।

किसान पम्पसेट, पाइपलाइन, स्प्रिंकलर, ड्रिप सिस्टम आदि सिंचाई यंत्र सब्सिडी पर लेने के लिए अभी आवेदन करें

कृषि यंत्र अनुदान Subsidy हेतु आवेदन

फसलों के उत्पादन में सिंचाई का अत्यधिक महत्व है खासकर आजकल जब किसान खेत में एक साल में कई फसलों की खेती करते हैं। ऐसे में किसान समय पर विभिन्न फसलों की सिंचाई कर सकें इसके लिए सरकार द्वारा किसानों को विभिन्न सिंचाई यंत्रों पर भारी सब्सिडी दी जाती है। इस कड़ी में मध्य प्रदेश कृषि विभाग द्वारा राज्य के किसानों को विभिन्न योजनाओं के तहत स्प्रिंकलर सेट, ड्रिप सिस्टम, पम्पसेट (डीजल एवं बिजली चालित), पाइप लाइन सेट, रेनगन आदि सिंचाई यंत्रों पर अनुदान हेतु आवेदन माँगे गये हैं।

मध्य प्रदेश के कृषि विभाग द्वारा जारी लक्ष्यों के विरुद्ध योजनाओं का लाभ लेने के लिए किसान ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। कृषि विभाग द्वारा वर्ष 2024-25 में अलग–अलग ज़िलों के तहत किसानों को यह सिंचाई यंत्र अनुदान पर उपलब्ध कराने के लिए विभिन्न योजनाओं के तहत आवेदन माँगे गये हैं। किसान इन सिंचाई उपकरणों हेतु दिनांक 8 अप्रैल 2024 से 15 मई 2024 के दौरान पोर्टल पर अपने आवेदन प्रस्तुत कर सकेंगे। प्राप्त आवेदनों में से लक्ष्यों के विरूद्ध ऑनलाइन लॉटरी निकाली जाएगी जिसके बाद चयनित किसान इन यंत्रों पर सब्सिडी का लाभ ले सकेंगे।

इन योजनाओं के तहत दिये जाएंगे अनुदान Subsidy पर कृषि यंत्र

सरकार द्वारा किसानों को सब्सिडी पर कृषि यंत्र उपलब्ध कराने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों के द्वारा अलग-अलग योजनाएँ चलाई जा रही हैं। इन योजनाओं के तहत अलग-अलग जिलों के किसानों को अलग-अलग सिंचाई यंत्रों पर अनुदान उपलब्ध कराया जाएगा। यह योजनाएँ इस प्रकार हैं:-

  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (माइक्रो इरीगेशन)– स्प्रिंकलर सेट, ड्रिप सिस्टम,
  • राष्ट्रीय मिशन ऑन ईडिबल ऑइल तिलहन – स्प्रिंकलर सेट, पंपसेट (डीजल/विद्युत), पाईप लाईन सेट
  • खाद्य एवं पोषण सुरक्षा दलहन – स्प्रिंकलर सेट, पाईप लाईन सेट, पंपसेट(डीजल/विद्युत)
  • खाद्य एवं पोषण सुरक्षा गेहूँ – स्प्रिंकलर सेट, पाईप लाईन सेट, पंपसेट (डीजल/विद्युत), रेनगन सिस्टम 
  • खाद्य एवं पोषण सुरक्षा टरफा – स्प्रिंकलर सेट, पाईप लाईन 
  • खाद्य एवं पोषण सुरक्षा धान– पाइपलाइन सेट, पंपसेट (डीजल/विद्युत) 
  • बुंदेलखंड विशेष पैकेज दलहन– स्प्रिंकलर सेट, पाईप लाईन सेट, पंपसेट(डीजल/विद्युत)

सिंचाई यंत्रों पर कितना अनुदान Subsidy दिया जाएगा?

मध्यप्रदेश में किसानों को अलग–अलग योजनाओं के तहत सिंचाई यंत्रों पर किसान वर्ग एवं जोत श्रेणी के अनुसार अलग–अलग सब्सिडी दिए जाने का प्रावधान है, जो 40 से 55 प्रतिशत तक है। इसमें किसान जो सिंचाई यंत्र लेना चाहते हैं वह किसान ई–कृषि यंत्र अनुदान पोर्टल पर उपलब्ध सब्सिडी कैलकुलेटर पर सिंचाई यंत्र की लागत के अनुसार उनको मिलने वाली सब्सिडी की जानकारी देख सकते हैं।

आवेदन के लिए कौन से दस्तावेज चाहिए?

किसानों को आवेदन के समय एवं लॉटरी में चयन के बाद फील्ड अधिकारी द्वारा सत्यापन के समय कुछ दस्तावेज अपने पास रखना होगा। जो इस प्रकार है:-

  • आधार कार्ड की कॉपी,
  • बैंक पासबुक के प्रथम पृष्ठ की कॉपी,
  • सक्षम अधिकारी द्वारा जारी जाति प्रमाण पत्र (केवल अनुसूचित जाति एवं जनजाति के किसानों हेतु),
  • बी-1 की प्रति,
  • बिजली कनेक्शन का प्रमाण पत्र (जैसे बिजली बिल)

सब्सिडी पर सिंचाई यंत्र लेने के लिए आवेदन कहाँ करें

मध्यप्रदेश में सभी योजनाओं के तहत सिंचाई यंत्र अनुदान पर लेने की प्रक्रिया को ऑनलाइन कर दिया गया है। अतः जो किसान भाई दिये गये सिंचाई यंत्रों पर अनुदान प्राप्त करना चाहते हैं वे किसान ऑनलाइन e-कृषि यंत्र अनुदान पोर्टल पर आवेदन कर सकते हैं। जो किसान पहले से पोर्टल पर पंजीकृत है वे आधार OTP के माध्यम से लॉगिन कर आवेदन प्रस्तुत कर सकते है। वहीं नये किसानों को आवेदन करने से पूर्व बायोमैट्रिक आधार अथेन्टिकेशन के माध्यम से पंजीयन कराना अनिवार्य होगा।

पंजीयन की प्रक्रिया पोर्टल पर प्रारम्भ की जा चुकी है। किसान यह आवेदन नजदीकी MP ऑनलाइन से या CSC सेंटर से जाकर कर सकते हैं। योजना से जुड़ी अधिक जानकारी किसान पोर्टल पर देख सकते हैं या अपने ब्लॉक या जिले के कृषि विभाग कार्यालय से संपर्क करके ले सकते हैं।

सब्सिडी पर सिंचाई यंत्र लेने के लिए आवेदन करने हेतु क्लिक करें

किसान इस समय पर करें कपास की बिजाई, कृषि विभाग ने दी किसानों को सलाह

देश के कई इलाकों में 20 अप्रैल से कपास की बुवाई का काम शुरू हो जाएगा। पिछले वर्ष कई इलाक़ों में गुलाबी सुंडी से कपास की फसल को काफी नुकसान हुआ था। जिसको देखते हुए कृषि विभाग द्वारा तैयारी शुरू की जा चुकी है। पिछले वर्ष राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में गुलाबी सुंडी के कारण कपास की फसल को बड़े स्तर पर नुकसान हुआ था। इस बार भी नुकसान की आशंका जताई जा रही है। कपास खरीफ सीजन की मुख्य फसल होने के चलते कीट का प्रकोप होने पर अर्थव्यवस्था पर भी इसका असर पड़ता है।

जिसको देखते हुए राजस्थान सरकार खरीफ सीजन 2024 में गुलाबी सुंडी की रोकथाम के लिए किसानों के बीच जागरूकता लाने का काम कर रही है। इसके लिए सरकार किसानों के बीच संगोष्ठी, पंपफ्लेट, सोशल मिडिया का सहारा लेगी। इसके साथ ही यहाँ के किसानों को समय पर बिजाई करने, बिजाई के दौरान उपयुक्त दूरी रखने और बीज की मात्रा आदि की जानकारी किसानों को दी जा रही है।

किसान समय पर करें कपास की बिजाई

कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार कपास की बुवाई 20 अप्रैल से 20 मई के बीच करना फायदेमंद रहता है। अगेती और पिछेती बिजाई हर बार कारगर नहीं होती है। ऐसे में किसानों को उपयुक्त समय पर ही बिजाई करनी चाहिए। सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था नहीं होने की स्थिति में कपास की पिछेती बिजाई करने की बजाए किसान मूंग, मोठ, आदि फसल की बुआई कर सकते हैं। इसके अलावा विभागीय अधिकारी और फील्ड स्टाफ की ओर से किसानों को बिजाई संबंधी विभिन्न तकनीकी जानकारी भी दी जा रही है।

गुलाबी सुंडी से कपास को हुआ था 80 फीसदी नुकसान

हनुमानगढ़ जिले में पिछले साल 2 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में बीटी कॉटन की बिजाई की गई थी। जिसमें से गुलाबी सुंडी के प्रकोप से 80 प्रतिशत से अधिक फसलें नष्ट हो गई थी,  इसलिए किसान इस बार ऐसे बीज की तलाश में है जिनमें गुलाबी सुंडी का प्रकोप न हो। सोशल मिडिया पर बीटी 4 तक किस्म के बीज होने का दावा किया जा रहा है और इसमें यह भी बताया जा रहा है कि गुलाबी सुंडी का प्रकोप नहीं होता है। इसलिए  किसान भी नकली कंपनियों के झांसे में आ जाते हैं। जबकि कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अब तक बीटी-2 किस्म का बीज ही उपलब्ध है, इस किस्म में गुलाबी सुंडी की प्रतिरोधी क्षमता नहीं है। अब तक इसको लेकर रिसर्च में नहीं हुई है।

किसान इस तरह करें कपास की बुआई

कृषि विभाग के मुताबिक जिले में कपास की बुवाई का समय 20 अप्रैल से 20 मई उपयुक्त माना जाता है। बुवाई से पहले अच्छे बीज का चुनाव जरुरी है। बीटी कॉटन का एक बीघा में एक पैकेट (475 ग्राम) बीज ही उपयोग में लेने की सलाह दी गई है। वहीं प्रति बीघा 2 से 3 पैकेट डालना फायदेमंद नहीं होता है। बुआई के लिए बीटी कॉटन की ढाई फीट वाली बुआई मशीन को 108 सेमी. (3 फीट) पर सेट करना चाहिए। किसी भी हालत में 3 फीट से कम दुरी पर बीजाई नहीं करनी चाहिए।

प्रथम सिंचाई के बाद में पौधों से पौधे की दुरी 2 फीट रखने के लिए विरलीकरण आवश्यक रूप से करना चाहिए। बीजाई के समय सिफारिश उर्वरक बैसल में अवश्य देना चाहिए, क्योंकि बैसल में दिए जाने वाले उर्वरक खड़ी फसल में देने से अधिक कारगर परिणाम नहीं देते हैं।

वहीं कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार पिछले वर्ष जिले में बीटी कॉटन की मार्च के अंत से बिजाई शुरू हो गई थी जो मई अंत तक चली थी। गुलाबी सुंडी का प्रकोप, बॉल सड़ने के रोग तथा बॉल के अपरिपक्व रहने से आशा अनुरूप कॉटन का उत्पादन नहीं मिला। ऐसे में किसानों को बिजाई से पहले अपने खेतों में भंडारित की गई कॉटन बनछटियों के ढेर का निस्तारण कर देना चाहिए।

पौधों को जमीन के पास से काटकर नुकसान पहुंचाता है कटुआ कीट, किसान ऐसे करें इसका नियंत्रण

देश में हर साल कुछ हानिकारक कीटों के प्रकोप से विभिन्न फसलों को काफी नुकसान होता है, जिसके चलते उन फसलों के उत्पादन में गिरावट आ जाती है। इनमें कुछ कीट ऐसे होते हैं जो फसलों को 30 प्रतिशत तक का नुकसान पहुंचा सकते हैं ऐसे में उन कीटों का समय पर नियंत्रण करना अतिआवश्यक है। कटुआ भी उन कीटों में से एक है जो पौधों को तने के पास से काटकर काफी नुकसान पहुँचता है।

कटुआ कीट दलहन, अनाज और सब्जी फसलों ख़ासकर आलू, गोभी, मटर, भिंडी, शिमला मिर्च, बैंगन, टमाटर, खीरा, मक्का, चना तथा सरसों को अत्याधिक नुकसान पहुंचाता है। यह कीट पूरे भारत में मैदानी क्षेत्रों से लेकर ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों तक पाया जाता है। इस कीट की इल्लियाँ दिन के समय मिट्टी की ऊपरी सतह में छिपकर रहती हैं। रात के समय वे जमीन के बाहर आकर छोटे पौधों को जमीन की सतह के थोड़ा ऊपर से काट देती हैं। ये पत्तों और कोमल तनों को खाती हैं। इसके कारण खेत में पौधों की संख्या प्रत्यक्ष रूप से कम हो जाती है। इनके इसी व्यवहार की वजह से इनकों ‘कटुआ कीट’ का नाम दिया गया है।

कटुआ कीट का वैज्ञानिक नाम क्या है?

इस कीट की मुख्यतः दो प्रजातियाँ होती हैं इसमें से एक है एग्रोटिस सेटिजम आम कटुआ कीट और दूसरी एग्रोटिस इपसिलोन- काला कटुआ कीट। दोनों ही प्रजातियाँ विभिन्न प्रकार की सब्जियों, फूलों और फसलों को नुकसान पहुंचाती है। पहली प्रजाति एग्रोटिस सेजिटम ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती है और दूसरी एग्रोटिस इपसिलोन- काला कटुआ मध्य पर्वतीय और मैदानी क्षेत्रों में पाया जाता है। यह दोनों प्रजातियाँ ही विभिन्न फसलों को लगभग 30 प्रतिशत तक का नुकसान पहुँचा सकती हैं।

कटुआ कीट का जीवन चक्र

इस कीट के पतंगों की संख्या मई-जून और सितम्बर-अक्टूबर के दौरान बहुत अधिक होती है। वयस्क पतंगों का शरीर 18 से 22 मिमी. लम्बा और फैले हुए पंखों की चौड़ाई 40 से 45 मिमी. होती है। मादा के अगले पंख पीले–भूरे तथा काले रंग के होते हैं। एक मादा 400 से 1000 अंडे तक दे सकती है। अंडे का विकास 3 से 5 दिनों में होता है। अंडे शुरू में सफ़ेद लेकिन समय के साथ भूरे रंग में बदल जाते हैं।

सुंडी अवस्था 24 से 40 दिनों की होती है। पूर्ण विकसित सुंडी 40 से 45 मिमी. लम्बी हो जाती है। सुंडी शुरू में हरे-स्लेटी रंग की होती है। पूर्ण विकसित होने के बाद सुंडी मिट्टी में 3 से 10 सेंटीमीटर गहराई पर प्यूपा बनाती है। यह प्यूपा 10 से 15 दिनों के बाद वयस्क में परिवर्तित हो जाता है। इसका पूर्ण जीवन चक्र 40 से 45 दिनों का होता है।

कटुआ कीट के फसलों पर प्रकोप के लक्षण

यह कीट अपने जीवनकाल में केवल सुंडी (इल्ली) वाली अवस्था में ही फसलों को नुकसान पहुंचाता है। सुंडी की पांचवी एवं छठी अवस्थाएँ अत्यधिक नुकसानदायक होती है। यह कीट साधारणत: रात के समय फसलों को क्षति पहुंचाते हैं। सुंडियाँ पौधों को जमीन की सतह से काटकर पूरी तरह से अलग या आधा काटती हैं। इससे पौधे लटक जाते हैं और पीले पड़ जाते हैं। ये पौधों की पत्तियों को खाकर छेड़ कर देती हैं।

यह कीट कटे हुए पौधों के अवशेषों को जमीन के अंदर ले जाता है और दिन के समय उन्हें खाते है। खेत में कटे हुए पौधे और पत्ती को देखकर किसान अंदाजा लगा सकते हैं कि कटुआ कीट का प्रकोप शुरू हो गया है। कीट का प्रकोप अलग-अलग फसलों और क्षेत्रों में अलग-अलग तरीके से देखने को मिलता है।

कटुआ कीट से फसल को बचाने के लिए क्या करें?

  • किसानों को नई फसल लगाने से पहले खेत से खरपतवार और पुरानी फसल के अवशेष खेत से निकाल देना चाहिए नहीं तो कीट की इल्लियाँ खेत में रहकर इन अवशेषों को खाती रहेंगी।
  • खेत की अच्छे से जुताई कर लेनी चाहिए, जिससे दूसरे कीट एवं पक्षी इन्हें खा सकें।
  • इस कीट के वयस्क शाम के समय सक्रिय होते हैं और रौशनी की तरफ आकर्षित होते हैं। इस प्रकार इन्हें प्रकाश प्रपंच के उपयोग से पकड़कर नष्ट किया जा सकता है।
  • खेत के चारों तरफ सूरजमुखी की फसल लगानी चाहिए, सूरजमुखी कटुआ कीट को आकर्षित करते हैं और फसल तक पहुँचने से पहले ही इन्हें नियंत्रित किया जा सकता है।
  • जब कटुआ कीट छोटे होते हैं उसी समय इनका नियंत्रण करना सही रहता है, खेतों में फसल बुआई अथवा पौध रोपण के तुरंत बाद नियमित निगरानी करनी चाहिए। इस दौरान सुबह के समय कटे हुए छोटे पौधों के आसपास की जमीन में सुंडियां छुपी होती है। ऐसे में उनको निकालकर नष्ट कर लेना चाहिए। यदि पांच प्रतिशत से ज्यादा पौधे कटे हुए पाये गये हों, तो फिर कीट को नियंत्रित करना आवश्यक है। कुछ फसलों जैसे – टमाटर, मिर्च में निगरानी फसल तोड़ने तक करनी चाहिए।
  • फसल में डेल्टामेथ्रिन 2.8 ई.सी. 750 मिलीग्राम प्रति हेक्टेयर या क्लोरपाइरिफाँस 20 ई.सी. 2.25 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
  • ये कीट रात्रि के समय सक्रिय होते हैं ऐसे में कीटनाशकों का इस्तेमाल शाम के समय करना चाहिए और इनका छिड़काव पौधों के तने की तरफ ही करना चाहिए।
  • यदि रसायनों का प्रयोग न करना हो तो किसान रोगजनक फफूंद जैसे – मेटाराइजियम एनीसोप्ली तथा ब्युवेरिया बेसियाना का इस्तेमाल कर सकते हैं। रोगजनक सूत्रकृमि जैसे – हैटरोरेहबडाइटिस बैक्टिरियओफोरा एवं वायरस जैसे एनपीवी भी कटुआ कीट की रोकथाम के लिए काफी प्रभावी हैं। जैविक नियंत्रण के लिए जमीन में पर्याप्त नमी होनी चाहिए।

अब किसानों से 30 प्रतिशत तक चमक विहीन गेहूं भी समर्थन मूल्य पर खरीदेगी सरकार

इस वर्ष बेमौसम बारिश एवं ओला वृष्टि से कई स्थानों पर गेहूं की फसल को काफी नुकसान हुआ है जिसका असर उसके दानों की गुणवत्ता पर पड़ा है। ऐसे में किसानों को किसी प्रकार का नुकसान न हो इसके लिए मध्य प्रदेश सरकार ने किसानों से 30 प्रतिशत तक का चमक विहीन गेहूं न्यूनतम समर्थन मूल्य MSP पर खरीदने का निर्णय लिया है। ख़ास बात यह है कि चमक विहीन गेहूं बेचने वाले किसानों को भी गेहूं पर बोनस का लाभ दिया जाएगा।

इस कड़ी में जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना ने यह जानकारी देते हुए बताया कि किसानों से समर्थन मूल्य पर 30 प्रतिशत तक चमक विहीन गेहूँ खरीदने का निर्णय लिया गया है। इस बारे में खाद्य, नागरिक आपूर्ति विभाग एवं संरक्षण विभाग द्वारा दिशा-निर्देश जारी कर दिये गये हैं। बता दें कि इस वर्ष सरकार द्वारा घोषित गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2275 रुपये प्रति क्विंटल है जिस पर राज्य सरकार किसानों को 125 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बोनस देगी।

30 प्रतिशत तक चमक विहीन गेहूं खरीदेगी सरकार

जबलपुर कलेक्टर ने उपार्जन व्यवस्था से जुड़े सभी अधिकारियों तथा उपार्जन केंद्र एवं भंडारण केंद्र प्रभारियों को किसानों से 0 से 30 प्रतिशत तक चमक विहीन गेहूँ खरीदने के बारे में खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने की हिदायत दी है।

कलेक्टर सक्‍सेना ने बताया कि किसानों से बारिश से प्रभावित हुई गेहूँ की फसल 125 रुपये बोनस राशि सहित पूर्ण समर्थन मूल्य पर खरीदी जायेगी। किसानों से खरीदे गये 30 प्रतिशत तक चमक विहीन गेहूं के बोरों पर “Z” मार्क लगाकर पृथक से स्टेकिंग की जायेगी। इसके साथ ही उपार्जन केन्द्र के लॉगिन से चमक विहीन गेहूँ की मात्रा एवं प्रतिशत की जानकारी पोर्टल पर दर्ज की जायेगी तथा किसानवार चमक विहीन गेहूँ के प्रतिशत का रिकार्ड भी रखा जायेगा।

सुपर सीडर मशीन से बुआई करने पर पैसे और समय की बचत के साथ ही मिलते हैं यह फायदे

कृषि विभाग द्वारा आजकल विभिन्न फसलों की बुआई के लिए सुपर सीडर मशीन के उपयोग पर जोर दिया जा रहा है क्योंकि इसकी मदद से बुआई करने पर किसानों को बहुत से फायदे मिलते हैं। पराली की समस्या से निजात पाने के लिए सुपर सीडर मशीन वरदान की तरह है। इस मशीन से बुआई कम समय व कम खर्चे में की जा सकती है। इसके अतिरिक्त सुपर सीडर मशीन से बुआई करने पर अधिक उत्पादन भी प्राप्त किया जा सकता है।

सुपर सीडर मशीन का उपयोग धान, गन्ना, गेहूं, मक्का आदि की जड़ों डंठलों को हटाने के लिए भी किया जा सकता है। सुपर सीडर को ट्रैक्टर के साथ जोड़कर इस्तेमाल किया जाता है। यह मशीन धान या गेहूं की कटाई के बाद फसल अवशेषों को खेत में ही दबाकर अगली फसल की बुआई कर देती है जिससे खाद बनती है। और यह मशीन मिट्टी में नमी का संरक्षण भी करती है जिससे सिंचाई जल की भी बचत होती है।

सुपर सीडर मशीन क्या काम करती है?

किसान सुपर सीडर मशीन का उपयोग कर धान, गेहूं आदि फसलों के डंठलों को हटाकर मिट्टी में मिला सकते हैं। यह मशीन सभी किस्मों के बीज बोते हुए जमीन तैयार करती है। यह मशीन 35 से 65 हॉर्स पॉवर के ट्रैक्टर की मदद से चलाई जा सकती है। इस मशीन से बुआई के समय किसान बीजों की दूरी और गहराई भी सुनिश्चित कर सकते हैं। इस मशीन में धान के अवशेषों को कुतरने के लिए रोटावेटर और गेहूं बोने के लिए एक जीरोटिल सीड ड्रिल यंत्र लगा होता है। यह यंत्र बुआई के समय पराली को काटने/ दबाने/ हटाने में सहायक होता है।

सुपर सीडर कृषि यंत्र की विशेषताएँ क्या है?

  • बीजों की बुआई में मददगार है।
  • फसल अवशेषों को इसकी मदद से प्रभावी ढंग से मिट्टी में मिला सकते हैं।
  • एक बार की जुताई में ही फसलों की बुआई की जा सकती है।
  • बुआई करने पर फसल उत्पादन में लगभग 5 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी होती है।
  • इससे बुआई करने पर लागत में लगभग 50 प्रतिशत की कमी की जा सकती है।
  • सिंचाई जल की बचत होती है, जिससे गेहूं की कटाई के बाद ग्रीष्मकालीन फसलों की बुआई में भी अधिक लाभ मिलता है।
  • सुपर सीडर मशीन से बुआई करने पर खरपतवारों में कमी आती है।
  • यह मशीन 10-12 इंच तक की ऊँचाई की धान की पराली को जोतकर गेहूं की बुआई करने में सक्षम है।

गेहूं को कीटों से बचाने के लिए इस तरह करें उसका भंडारण

देश में अधिकांश स्थानों पर गेहूं कटाई का काम या तो चल रहा है या पूरा हो गया है। ऐसे में सभी के मन में एक ही सवाल रहता है कि कटाई के बाद गेहूं का सुरक्षित भंडारण कैसे करें? जिससे उसकी गुणवत्ता पर असर ना पड़े या उसमें घुन आदि कीटों का प्रकोप ना हो। गेहूँ का भंडारण पारम्परिक संरचनाओं जैसे कोठी, कुठला, बुखारी, पूसा बिन, पंतनगर बिन, लुधियाना बिन, हापुड़ बिन, धूसी, खानिकी, लकड़ी से बनी संदूक, बोरियाँ एवं भूमिगत भंडारगृह आदि में किया जाता है।

सही तरीक़े से गेहूं का भंडारण नहीं करने पर उसमें कीट एवं रोगों का हमला हो जाता है। भंडारित गेहूं पर लगने वाले कीटों की लगभग 50 प्रजातियाँ हैं, जिनमें से करीब आधा दर्जन प्रजातियाँ ही आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। लेकिन, इन सभी कीटों के प्रभावी प्रबंधन के उपाय एक जैसे ही हैं। इन उपायों को अपनाकर गेहूं को भंडारण के दौरान लगने वाले कीटों से बचाया जा सकता है।

गेहूं के सुरक्षित भंडारण के लिए करें यह काम

गेहूं के भंडारण के समय दानों में 10-12 प्रतिशत से अधिक नमी नहीं होनी चाहिए, इसलिए गेहूं को भंडारण से पहले अच्छी तरह से सूखा लेना चाहिए। इसके अलावा गेहूं के भंडारण से पहले कोठियों तथा कमरों को भी अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए। छत या दीवारों पर यदि दरारें है तो इन्हें भरकर ठीक कर लें। वहीं गेहूं के दानों को कीट रोगों से बचाने के लिए दीवारों एवं फर्श पर मैलाथियान 50 प्रतिशत के घोल को 3 लीटर प्रति 100 वर्गमीटर की दर से छिड़काव करें।

अनाज की बुखारी कोठियों या कमरे में रखने के बाद एल्युमिनियम फॉस्फाइड 3 ग्राम की दो गोली प्रति टन की दर से रखकर बंद कर देना चाहिए। वहीं यदि भंडारगृह में चूहों की समस्या हो तो जिंक फॉस्फाईड की गोलियाँ अथवा रैट किल को इनके बिलों के पास रखकर प्रभावी प्रबन्धन किया जा सकता है।

इसके अलावा किसान जिन बोरियों में गेहूं को भरकर रखना चाहते हैं उन बोरियों को 5 प्रतिशत नीम तेल के घोल से उपचारित करें। बोरियों को धूप में सुखाकर रखें। जिससे कीटों के अंडे तथा लार्वा तथा अन्य बीमारियाँ आदि नष्ट हो जाएं। वहीं जहां तक संभव हो किसान नई बोरियों का ही इस्तेमाल करें। यदि किसान पुरानी बोरियों का प्रयोग करते हैं तो उन बोरियों को मेलाथियान और 100 भाग पानी के घोल में 10 से 15 मिनट तक भिगो कर छाया में सुखा कर उपयोग कर सकते हैं।

इस तकनीक से कपास की खेती करने पर किसानों को मिलेगा 30 फीसदी अधिक उत्पादन

देश में किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा खेती की नई-नई तकनीकों का विकास किया जा रहा है। इन तकनीकों का लाभ किसानों तक पहुँचाने के लिए कृषि विभाग द्वारा कई प्रयास किए जा रहे हैं। इस कड़ी में गुरुवार के दिन खंडवा जिले में आगामी खरीफ सीजन को देखते हुए कपास उत्पादन बढ़ाने को लेकर उच्च घनत्व पौध रोपण तकनीक एवं विपणन पर कार्यशाला का आयोजन किया गया।

कार्यशाला में जिले के कलेक्टर अनूप कुमार सिंह, प्रगतिशील किसान, जिनिंग मिल व्यवसायी, एफ़पीओ, एनजीओ स्वयं सहायता समूह के प्रतिनिधि एवं कृषि विस्तार अधिकारी मौजूद रहे। कार्यशाला में उच्च घनत्व पौध रोपण तकनीक से कपास की खेती करने पर होने वाले लाभों के बारे में बताया गया। इसके अलावा किसानों जैविक कपास की खेती करने पर सरकार की ओर से दी जाने वाली सहायता के बारे में भी जानकारी दी गई।

कपास उत्पादन में होती है 30 प्रतिशत तक की वृद्धि

कार्यशाला में कृषि वैज्ञानिक डॉ. डी.के.श्रीवास्तव ने जानकारी देते हुए बताया कि परम्परागत रूप से की जा रही खेती में कपास फसल को कतार से कतार की दूरी 90 से 100 से.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 60 से.मी. रखी जाती है, जिसमें पौधों की संख्या 10 हजार से 20370 पौधे प्रति हेक्टेयर आती है। जबकि उच्च घनत्व पौध रोपण तकनीक में कतार से कतार की दूरी 90 से.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 से.मी. रखी जाती है, जिसमें पौधों की संख्या लगभग 75,925 से 1,12,962 पौधे प्रति हेक्टेयर आती है, जिसमें परम्परागत रूप से की जाने वाली खेती की तुलना में उच्च घनत्व पौध रोपण तकनीक से 25 से 30 प्रतिशत अधिक उत्पादन प्राप्त होता है।

जैविक तरीके से कपास की खेती करने पर दी जायेगी सहायता

इस अवसर पर किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग के संयुक्त संचालक जी. एस. चौहान ने किसानों को बताया कि जैविक तरीक़े से कपास की खेती करने वाले किसानों को जैविक प्रमाणीकरण के लिए लगने वाले शुल्क में 80 प्रतिशत की छूट दी जाएगी। इसके अलावा जो भी किसान लगातार 3 वर्षों तक जैविक पद्धति से कपास की खेती करेगा उन किसानों को प्रति हेक्टेयर 2,000 रुपये हर साल दिए जाएँगे।

कार्यशाला में उपस्थित किसानों एवं अन्य सदस्यों के द्वारा कपास उत्पादन की उच्च घनत्व तकनीक से संबंधित पूछे गये सवालों का जबाब कृषि वैज्ञानिक डॉ. डी.के. श्रीवास्तव के द्वारा दिया गया। बैठक में कलेक्टर ने कपास उत्पादन में वृद्धि हेतु आवश्यक कदम उठाये जाने एवं जैविक उत्पाद का विभागीय अमले द्वारा कृषकों में प्रचार-प्रसार कराये जाने के निर्देश उप संचालक कृषि को दिए।

किसान इस तरह करें सफेद लट कीट का नियंत्रण

देश में हर साल विभिन्न कीटों के द्वारा रबी एवं खरीफ सीजन की फसलों को भारी नुकसान पहुँचाया जाता है। जिसका सीधा असर फसलों की पैदावार पर पड़ता है। इन कीटों में सफेद लट भी शामिल है। सफेद लट मुख्य रूप से मूंगफली, अरहर, ज्वार, कपास, अमरूद, तम्बाकू, धान, बाजरा, नीम, बेर, शीशम, शहतूत, बबूल, आलू एवं नारियल आदि फसलों को नुकसान पहुंचाती है।

इस कीट के ग्रब और व्यस्क दोनों ही फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। वयस्क कीट विभिन्न पौधों एवं झाड़ियों को खाते हैं तथा ग्रब फसल को ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। कीट के ग्रब फसलों की जड़ों को काटकर उसे क्षति पहुंचाते हैं जिससे पौधे मुरझाने के बाद सुख जाते हैं। इसकी ग्रब व शंखी अवस्था मृदा के अंदर पाई जाती है। किसान गर्मी में ख़ाली पड़े खेतों में इसके नियंत्रण के लिए उपाय कर सकते हैं।

सफेद लट का जीवन चक्र

इस कीट की मुख्य प्रजातियों में व्हाइट ग्रब, सफ़ेद गिडार, गोजा लट एवं सफ़ेद सुंडी, गोबर कीट, गोबरिया कीट शामिल हैं। वहीं इस कीट के जीवन चक्र की बात की जाये तो इसके अंडे 6 से 12 दिनों तक रहते हैं जिनका रंग सफेद और आकार गोलाकार होता है। इसके लार्वा का जीवन काल 54 से 76 दिनों की तथा युवा ग्रब मांसल, पारदर्शी, सफ़ेद, पीले रंग के और अक्सर ‘C’ आकर के होते हैं। प्यूपा का जीवनकाल 12–15 दिनों का होता है। इस कीट का वयस्क गहरे भूरे रंग का तथा लंबाई 15–20 मि.मी. और चौडाई 6–8 मि.मी. होती है।

यह कीट मुख्यतः रात्रिचर प्रकृति के होते हैं जो पहली वर्षा के बाद शाम 7 बजे के बाद मिट्टी से निकलकर सुबह 5 बजे तक बाहर दीखता है। इस दौरान ही यह कीट फसलों को अधिक क्षति पहुँचाते हैं। मानसून या इससे पहले की भारी वर्षा एवं कुछ क्षेत्रों में खेतों में पानी लगने पर ज़मीन से भृंगों का निकलना शुरू हो जाता है। भृंग रात के समय जमीन से निकलकर परपोषी वृक्षों जैसे खेजड़ी, बेर, नीम, अमरूद एवं आम आदि पर बैठते हैं। भृंग निकलने के तीन दिन बाद अंडे देना शुरू कर देते हैं इसलिए इनका जल्द नियंत्रण करना चाहिए।

कैसे करें सफेद लट के ग्रब का नियंत्रण

किसानों को सफेद लट के ग्रब के नियंत्रण के लिए खेतों की गर्मी में गहरी जुताई करनी चाहिए साथ ही गोबर की सड़ी हुई खाद का उपयोग करना चाहिए। इसके अलावा खेत में जब भी खाद डालें उसमें नीम की खली का प्रयोग अवश्य करें। वहीं इसके रासायनिक नियंत्रण के लिए क्लोरोपायरीफाँस 20 ई.सी. की 1–2 मि.ली. मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर ग्रसित पौधों के तने के क्षेत्र के आसपास 15–20 से.मी. के दायरे की मिट्टी में छिड़काव करना चाहिए। खेत में ब्युबेरिया बेसियाना और मेटेरिजियम एनिसोपाली 2.5 से 3 किलोग्राम को 50 किलोग्राम गोबर में मिलाकर 7 दिनों के लिए किसी छायादार स्थान पर सुखाने के बाद खेत में छिड़काव करना चाहिए।

सफेद लट के व्यस्क का नियंत्रण

किसान सफेद लट के वयस्क के नियंत्रण के लिए पौधों और खेतों के आसपास की भूमि को साफ़ रखें। मानसून की पहली बारिश आते ही खेतों पर शाम 6:30 से रात 10:30 बजे के बीच लाइट ट्रैप लगायें। कीटों को अपने खेत से बाहर रखने का एक बहुत ही प्रभावी तरीका यह है कि कच्ची खाद का खेत के बाहर ढेर लगा कर रखें। इसके अलावा अरंडी के पौधों का खेत के चारों ओर ट्रैप फसल के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। व्यस्क कीटों के लिए खेत के आसपास के पेड़ों पर कीटनाशकों का छिड़काव करें साथ ही जिन पेड़ों पर यह कीट बैठते हैं उनकी छटाई करें। किसान सफेद लट को आश्रय देने वाले वृक्षों पर भी कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करें।

सफेद लट के पौढ़ के नियंत्रण के लिए किसान पहली, दूसरी या तीसरी वर्षा होने के बाद (उसी दिन या एक दिन बाद) खेतों में लगे प्रभावित पौधों पर 0.04 प्रतिशत मोनोक्रोटोफ़ॉस 36 एस.एल. या 0.05 प्रतिशत क्विनलफ़ॉस ई.सी.का छिड़काव करें।

मौसम चेतावनी: 13 से 15 अप्रैल के दौरान इन जिलों में हो सकती है बारिश एवं ओलावृष्टि

Weather Update: 13 से 15 अप्रैल के लिए वर्षा का पूर्वानुमान

बीते कुछ दिनों से मध्य भारत के कई हिस्सों में बारिश एवं ओला वृष्टि का दौर जारी है। इस बीच नये पश्चिमी विक्षोभ के सक्रिय हो जाने से देश के कई हिस्सों में आगामी दिनों के दौरान बारिश एवं ओला वृष्टि का एक नया दौर शुरू होने वाला है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग IMD के अनुसार देश में एक नया पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय होने जा रहा है, साथ ही कुछ अन्य चक्रवाती परिसंचरण भी अलग-अलग क्षेत्रों में बने हुए हैं। जिसके प्रभाव से उत्तर भारत के कई राज्यों में बारिश एवं ओलावृष्टि होने की संभावना है।

मौसम विभाग के मौजूदा सिस्टम से 13 से 15 अप्रैल के दौरान जम्मू कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान एवं मध्य प्रदेश के कई हिस्सों में तेज हवाओं (30 से 60 किलोमीटर/घंटे) एवं गरज-चमक के साथ बारिश हो सकती है। वहीं इस दौरान कई क्षेत्रों में ओलावृष्टि की भी संभावना है।

मध्यप्रदेश के इन जिलों में हो सकती है बारिश एवं ओला वृष्टि

मौसम विभाग के भोपाल केंद्र के द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार 13 से 15 अप्रैल के दौरान राज्य के भोपाल, विदिशा, रायसेन, सीहोर, राजगढ़, नर्मदापुरम, बैतूल, हरदा, बुरहानपुर, खंडवा, इंदौर, देवास, शाजापुर, आगर–मालवा, नीमच, गुना, अशोक नगर, शिवपुरी, ग्वालियर, दतिया, भिंड, मुरैना, श्योंपुर कला, सिंगरौली, सीधी, रीवा, मऊगंज, सतना, अनुपपुर, शहडोल, उमरिया, डिंडोरी, कटनी, जबलपुर, नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, सिवनी, मंडला, बालाघाट, दमोह, सागर, छत्तरपुर, टीकमगढ़, निवाड़ी, मैहर एवं पांडुरना जिलों में तेज हवाओं एवं गरज–चमक के साथ बारिश हो सकती है। वहीं कुछ इलाकों में ओले गिरने की भी संभावना है।

राजस्थान के इन जिलों में हो सकती है बारिश एवं ओलावृष्टि

मौसम विभाग के जयपुर केंद्र के द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार 13 से 15 अप्रैल के दौरान अजमेर, अलवर, बारां, भरतपुर, भीलवाड़ा, बूँदी, चित्तौड़गढ़, दौसा, धौलपुर, जयपुर, झालावाड़, झुंझुनू, करौली, कोटा, राजसमंद, सवाई–माधोपुर, सीकर, सिरोही, उदयपुर, टोंक, बाड़मेर, बीकानेर, चूरु, हनुमानगढ़, जैसलमेर, जालौर, जोधपुर, नागौर, पाली एवं श्रीगंगानगर जिलों में कई स्थानों पर तेज हवाओं एवं गरज चमक के साथ वर्षा होने की संभावना है। वहीं इस दौरान कई स्थानों पर ओला वृष्टि की भी प्रबल संभावना है।

छत्तीसगढ़ के इन जिलों में हो सकती है बारिश

मौसम विभाग के रायपुर केंद्र के द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार 12 से 13 अप्रैल के दौरान सरगुजा, जशपुर, कोरिया, पेंड्रा रोड, बिलासपुर, रायगढ़, मूंगेली, कोरबा, जाँजगीर, रायपुर, बलोदाबाजार, गरियाबंद, धमतरी, महासमुंद, दुर्ग, बालोद, बेमतारा, कबीरधाम, राजनंदगाँव, कांकेर, बीजापुर एवं नारायणपुर जिलों में गरज–चमक एवं तेज हवाओं के साथ बारिश हो सकती है।

हरियाणा एवं पंजाब के इन जिलों में हो सकती है बारिश एवं ओलावृष्टि

भारतीय मौसम विभाग के चंडीगढ़ केंद्र के द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार 12 से 15 अप्रैल के दौरान पंजाब राज्य के पठानकोट, गुरुदासपुर, अमृतसर, तरण-तारण, होशियारपुर, नवाँशहर, कपूरथला, जालंधर, फिरोजपुर, फाजिल्का, फरीदकोट, मुक्तसर, मोगा, भटिंडा, लुधियाना, बरनाला, मनसा, संगरूर, मलेरकोटला, फतेहगढ़ साहिब, रूपनगर, पटियाला एवं सास नगर जिलों में अधिकांश स्थानों पर तेज तेज हवाओं एवं गरज-चमक के साथ बारिश हो सकती है। वहीं कुछ स्थानों पर ओला वृष्टि होने की सम्भावना है।

वहीं हरियाणा राज्य में 12 से 15 अप्रैल के दौरान चंडीगढ़, पंचकुला, अम्बाला, यमुनानगर, कुरुक्षेत्र, कैथल, करनाल, महेंद्र गढ़, रेवारी, झज्जर, गुरुग्राम, मेवात, पलवल, फरीदाबाद, रोहतक, सोनीपत, पानीपत, सिरसा, फतेहाबाद, हिसार, जिंद, भिवानी, चरखी दादरी जिलों में अनेक स्थानों पर गरज-चमक के साथ बारिश एवं ओला वृष्टि होने की सम्भावना है।

बिहार के इन जिलों में हो सकती है बारिश

मौसम विभाग के पटना केंद्र के द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार 12 एवं 13 अप्रैल के दौरान सीतामढ़ी, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, वैशाली, शिवहर, समस्तीपुर, सुपौल अररिया, किशनगंज, मधेपुरा, सहरसा, पूर्णिया, कटिहार, रोहतास, भभुआ एवं औरंगाबाद जिलों में कुछ स्थानों पर गरज-चमक के साथ बारिश होने की संभावना है वहीं 14 अप्रैल के दिन सुपौल अररिया, किशनगंज, मधेपुरा, सहरसा, पूर्णिया, कटिहार जिलों में बारिश हो सकती है।

उत्तर प्रदेश के इन जिलों में हो सकती है बारिश

भारतीय मौसम विभाग के लखनऊ केंद्र के द्वारा जारी पूर्वानुमान के अनुसार 13 से 15 अप्रैल के दौरान आगरा, मथुरा, मैनपुरी, फ़िरोज़ाबाद, अलीगढ़, एटा, हाथरस, कासगंज, अयोध्या, सुल्तानपुर, अमेठी, बरेली, बंदायू, पीलभीत, शाहजहांपुर, चित्रकूट, बाँदा, हमीरपुर, महोबा, झाँसी, जालौन, ललितपुर, कानपुर नगर, कानपुर देहात, इटावा, औरैया, कन्नौज, फ़र्रुखाबाद, लखनऊ, लखीमपुर खीरी, हरदोई, उन्नाव, रायबरेली, सीतापुर, मेरठ, बागपत, बुलंदशहर, गौतम बुद्ध नगर, ग़ाज़ियाबाद, हापुड़, मिर्जापुर, भदोही, सोनभद्र, मुरादाबाद, बिजनौर, रामपुर, अमरोहा, संभल, प्रयागराज, फतेहपुर, कौशांबी, प्रतापगढ़, सहारनपुर, मुज्जफरनगर, शामली, वाराणसी, गाज़ीपुर, जौनपुर एवं चंदौली ज़िलों में अनेक स्थानों पर तेज हवा आंधी के साथ वर्षा हो सकती है वहीं कुछ स्थानों पर ओला वृष्टि होने की संभावना है।

महाराष्ट्र के इन जिलों में हो सकती है बारिश एवं ओलावृष्टि

मौसम विभाग के मुंबई केंद्र के द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार 12 से 14 अप्रैल के दौरान राज्य के जलगाँव, अहमदनगर, सांगली, शोलापुर, औरंगाबाद, जालना, परभणी, बीड, हिंगोली, नांदेड, लातुर, उस्मानाबाद, अकोला, अमरावती, भंडारा, बुलढाना, चन्द्रपुर, गढ़चिरौली, गोंदिया, नागपुर, वर्धा, वॉशिम एवं यवतमाल जिलों में तेज हवाओं एवं गरज–चमक के साथ बारिश हो सकती है। वहीं इस दौरान विदर्भ क्षेत्र के कुछ हिस्सों में ओले गिरने की भी संभावना है।

किसानों के लिए सलाह

बारिश एवं ओला वृष्टि को देखते हुए मौसम विभाग द्वारा किसानों के लिए विशेष सलाह जारी की गई है जिसमें किसानों को कृषि मंडियों में एवं खेतों में रखे खुले अनाज व जिंसों को सुरक्षित स्थान पर भंडारण करने को कहा गया है। वहीं किसान खुले आसमान में पक कर तैयार फसलों को भी ढककर अथवा सुरक्षित स्थानों पर भंडार करके रखें।

इसके अलावा किसान फसलों की सिंचाई तथा किसी भी प्रकार का रासायनिक छिड़काव बारिश की गतिविधियों को ध्यान में रखकर करें यदि जिले में बारिश की संभावना हो तो फसलों में दवाओं का छिड़काव न करें। जानवरों को खुले पानी, तालाब या नदी से दूर रखें। रात में पशुओं को शेड में ही रखें। इसके अलावा दोपहर के समय पशुओं को खेत में खुली चराई की अनुमति ना दें।